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यम द्वितीया पर ब्रजभूमि आएंगे लाखों श्रद्धालु

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, मंगलवार, 21 अक्टूबर 2014 (14:31 IST)
दीपावली के बाद आनेवाली यम द्वितीया पर देश के कोने-कोने से श्रद्धालु ब्रजभूमि आते हैं। वैसे तो मथुरा-वृंदावन में तीर्थयात्रियों का जमघट धनतेरस से ही शुरू हो जाता है, लेकिन दीपावली में यह और अधिक इसलिए बढ़ जाता है कि ऐसा विश्वास है कि ठाकुरजी मंदिर में यदि दीपावली मनाई जाए तो उनकी कृपा की वर्षा साल भर होती रहती है।
 
दीपावली के बाद गोवर्धन पूजा में तीर्थयात्रियों को गोवर्धन महाराज की पूजा का अवसर उसी प्रकार मिल जाता है, जिस प्रकार से ब्रजवासियों को द्वापर युग में श्रीकृष्ण के साथ पूजा करने को मिला था। गोवर्धन पूजा पर लाखों श्रद्धालुओं के आने के कारण जिला प्रशासन के लिए यह मेला सम्पन्न कराना चुनौतीपूर्ण होता है।
 
गिर्राज शिला के महत्व का वर्णन करते हुए गोवर्धन पीठाधीश्वर कृष्णदास कंचन महाराज ने बताया कि एक बार उत्तराखंड के एक विद्वान ब्राह्मण यात्रा करते हुए दक्षिण जा रहे थे। रास्ते में उन्होंने जब गोवर्धन पर्वत की मनोहारी छटा देखी तो उन्हें यह अनुभव हुआ कि यह तो बैकुंठ के समान रमणिक है। इसके बाद अचानक आंधी आई तो उनकी आंख बंद हो गई।
 
जब उनकी आंख खुली तो एक विशालकाय राक्षस को उन्होंने अपने सामने खडा़ पाया, जो यह कह रहा था कि आज उसे उसकी इच्छा के अनुसार स्वादिष्ट आहार मिला है। अपने जीवन का अंतिम समय समझकर ब्राह्मण ने हताशा में एक शिलाखंड उठाकर उस दैत्य के ऊपर दे मारा, तो वह भूमि पर गिर पडा़ और उसकी देह से एक देव पुरुष उत्पन्न हो गया, जो विष्णु भांति ही दिव्य था। ब्राह्मण के चरणस्पर्श कर वह उनसे बोला कि उन्होंने लम्बे समय से चल रही दैत्य योनि से उसे मुक्त कराया है।
 
देव पुरुष ने कहा कि उसे नारद जी ने बताया था कि गिर्राज महाराज के शिलाखण्ड के स्पर्श से ही उसकी मुक्ति होगी। आपने गोवर्धन नाथ का स्पर्श कराकर मेरी मुक्ति कराई है। कंचनदास महाराज का कहना था कि यदि गोवर्धन के शिलाखंड के स्पर्श से उस गंधर्व की मुक्ति हो सकती है तो, जो व्यक्ति गिर्राज महाराज की पूजा कर उनकी सप्तकोशी परिक्रमा करते है उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होगी इसमें संदेह नहीं है।
 
गोवर्धन पूजा के दिन दानघाटी मंदिर, गिर्राज मुकुट, मुखारबिन्द मंदिर, गिर्राज मुखारबिन्द मंदिर मे गोवर्धन महाराज का पंचामृत अभिषेक करने की होड़ लग जाती है। विदेशी कृष्ण भक्त इस दिन अपने सिर पर पकवान या व्यंजन रखकर गाजे-बाजे के साथ गिर्राज महाराज की पूजा करने के लिए जाते हैं। इस दिन गोवर्धन के मंदिर में खिचडी़ का प्रसाद मिलता है।
 
सनत कुमार संहिता के अनुसार राजा बलि ने प्रजा को बहुत परेशान कर रखा था तथा लक्ष्मी को अपने राजकोष में डाल दिया था। जब जनता बहुत अधिक त्रस्त हो गई तो भगवान विष्णु वामन रूप धारण कर राजा बलि के पास गए थे और उनसे तीन पग भूमि दान में मांगी थी। इसे आसान दान मानकर राजा बलि ने जब दान देने पर अपनी सहमति दे दी तो भगवान विष्णु ने दो पग में ही तीनों लोकों को नाप लिया था। इसके बाद उन्होंने राजा बलि से पूछा था कि वे अपना तीसरा कदम कहां पर रखे।
 
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राजा बलि ने तीसरा पग अपने सिर पर रखने को कहा तो उसकी दानशीलता से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु राजा बलि के द्वारपाल बने। वैसे जब तीनों पग में भगवान विष्णु ने सबकुछ नाप लिया, तो उन्होंने खजाने में बंद लक्ष्मी को बाहर निकाला। तभी से इस खुशी में दीपावली मनाई जाती है। इस दिन मानसी नदी के चारों तरफ आयोजित होने वाला दीपदान देखते ही बनता है। ऐसा प्रतीत होता है कि मानसी नदी को सहस्त्रों दीपों की माला पहना दी गई हो।
 
गर्ग संहिता के अनुसार इंद्र का मान-मर्दन करने और इंद्र के कोप से ब्रजवासियों की रक्षा करने के लिए श्यामसुन्दर ने इस दिन गोवर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी उंगली पर धारण किया था। जब भारी वर्षा भी ब्रजवासियों का कुछ भी नहीं बिगाड़ सकी और जब इन्द्र को असलियत का पता चला तो उन्होंने श्रीकृष्ण से क्षमा याचना की थी।
 
बाद में सुरभि गाय ने उनका दुग्धाभिषेक किया था। इसी कारण इस दिन गोवर्धन की दुग्ध परिक्रमा या धारा परिक्रमा करने का बहुत अधिक महत्व है तथा इस दिन सपरिवार धारा परिक्रमा करने की होड़-सी लग जाती है और सप्तकोशी परिक्रमा मार्ग मानवमाला का रूप धारण कर लेता है। धारा परिक्रमा लक्ष्मी नारायण मंदिर से शुरू होती है और प्राय: इसी मंदिर के सेवायत धारा परिक्रमा की व्यवस्था भी कर देते हैं।
 
इस दिन दानघाटी मंदिर मे भक्तों को सकडी़ प्रसाद का वितरण किया जाता है। सकडी़ प्रसाद में दाल, चावल, बाजरा, सब्जी, कढी़, लड्डू आदि पकवानों का प्रयोग किया जाता है।
 
वृन्दावन के राधाश्यामसुन्दर मंदिर में इस दिन गोवर्धन लीला भी होती है। यहां द्वापरकालीन गोवर्धन पूजा पद्धति पर आधारित अन्नकूट के दर्शन होते है और विभिन्न प्रकार के व्यंजन से ठाकुर का भोग लगाते है। इस दिन मथुरा, वृन्दावन, गोवर्धन, नन्दगांव और बरसाने में भी वृहद अन्नकूट एवं गोवर्धन पूजा करने का महत्व है किंतु सबसे अधिक हुजूम गोवर्धन में जुटता है।
 
देश के अन्य भागों में घर-घर गोबर के गोवर्धन बनाकर पूजन करने की परम्परा है। वहीं ब्रज में मोहल्लेवार सामूहिक रूप से गोवर्धन बनाकर पूजन करने की परम्परा है। कुल मिलाकर समूचे ब्रजमंडल में गोवर्धन पूजा विशुद्ध कृष्ण भक्ति का प्रतीक बन जाती है।
 

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