प्यारे भारतवासियों,
मैं आपका अपना राष्ट्रध्वज बोल रहा हूं। गुलामी की काली स्याह रात के अंतिम प्रहर जब स्वतंत्रता का सूर्य निकलने का संकेत प्रभात बेला ने दिया, तब 22 जुलाई 1947 को भारत की संविधान सभा के कक्ष में पं. जवाहरलाल नेहरू ने मुझे विश्व एवं भारत के नागरिकों के सामने प्रस्तुत किया, यह मेरा जन्म-पल था।
मुझे भारत का राष्ट्रध्वज स्वीकार कर सम्मान दिया गया। इस अवसर पर पं. नेहरू ने बड़ा मार्मिक भाषण भी दिया तथा माननीय सदस्यों के समक्ष मेरे दो स्वरूप- एक रेशमी खादी व दूसरा सूती खादी से बना- प्रस्तुत किए। सभी ने करतल ध्वनि के साथ मुझे स्वतंत्र भारत के राष्ट्रध्वज के रूप में स्वीकार किया।
इससे पहले 23 जून, 1947 को मुझे आकार देने के लिए एक अस्थायी समिति का गठन हुआ, जिसके अध्यक्ष थे डॉ. राजेन्द्रप्रसाद तथा समिति में उनके साथ थे मौलाना अबुल कलाम आजाद, के.एम. पणिक्कर, श्रीमती सरोजिनी नायडू, के.एम. मुंशी, चक्रवर्ती राजगोपालाचारी और डॉ. बी.आर. आम्बेडकर। विस्तृत विचार-विमर्श के बाद मेरे बारे में स्पष्ट निर्णय लिया गया।