जिज्ञासा मिश्रा
जब पास तुम्हारे होता हूँ, सब कुछ भूलकर खो जाता हूँ तुममें,
चन्द लम्हों में सिमट जाता है जीवन सारा,
तुम्हारी मुस्कुराहट से महकती है हर साँस मेरी,
तुम्हारी आँखों की गहराई में झाँक लेता हूँ
और चुरा लेता हूँ थोड़ा सा काजल,
एक हलचल सी मच जाती है जब हौले से पास आकर
तुम समा जाती हो मेरे ज़ेहन में.......
एहसास बन रोम रोम में उतर जाती हो,
जब तुम नहीं होती तब भी तुम होती हो आस पास,
तुम्हारी वही खुशबू जो मेरी साँसों में बसी है,
तुम्हारी आँखों का काजल, तुम्हारी कोमल हँसी....
भीगे हुए बालों की छुअन, तुम्हारे कदमों की आहट,
तुम्हारी खामोश निगाहें, उठकर झुक जाती पलकें,
एक उम्मीद, एक बेकरारी और फिर मिलने का इंतज़ार.......