Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

'बलराम' क्यों नहीं शामिल हुए थे महाभारत युद्ध में?

हमें फॉलो करें 'बलराम' क्यों नहीं शामिल हुए थे महाभारत युद्ध में?

अनिरुद्ध जोशी

महाभारत को ‘पंचम वेद’ कहा गया है। यह ग्रंथ हमारे देश के मन-प्राण में बसा हुआ है। यह भारत की राष्ट्रीय गाथा है। इस ग्रंथ में तत्कालीन भारत (आर्यावर्त) का समग्र इतिहास वर्णित है। अपने आदर्श स्त्री-पुरुषों के चरित्रों से हमारे देश के जन-जीवन को यह प्रभावित करता रहा है। इसमें सैकड़ों पात्रों, स्थानों, घटनाओं तथा विचित्रताओं व विडंबनाओं का वर्णन है। प्रत्येक हिन्दू के घर में महाभारत होना चाहिए।

महाभारत युद्ध में देश-विदेश की सेना ने भाग लिया था। माना जाता है कि कौरवों के साथ कृष्ण की सेना सहित यवन, ग्रीक, रोमन, अमेरिका, मेसिडोनियन आदि जगहों के योद्धा शामिल थे, तो पांडवों के साथ सिर्फ कृष्ण और उनके मित्र राजाओं की सेना थी।

महाभारत युद्ध के समय सारे भारतवर्ष में सिर्फ दो ही राजा युद्ध में शामिल नहीं हुए थे, बल्कि एक बलराम और दूसरे भोजकट के राजा और रुक्मणि के बड़े भाई रुक्मी थे।

 

अगले पन्ने पर, बलराम ने क्यों नहीं लिया युद्ध में भाग...

 


भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलराम ने श्रीकृष्ण को कई बार समझाया कि हमें युद्ध में शामिल नहीं होना चाहिए, क्योंकि दुर्योधन और अर्जुन दोनों ही हमारे मित्र हैं। ऐसे धर्मसंकट के समय दोनों का ही पक्ष न लेना उचित होगा।

कहते हैं कि कभी-कभी हरेक मनुष्य को धर्मसंकट जैसी स्थितियों का सामना करना पड़ता है। ऐसे अवसर पर लोग दुविधा में फंस जाते हैं, लेकिन कृष्ण को किसी भी प्रकार की कोई दुविधा नहीं थी। उन्होंने इस समस्या का भी हल निकाल लिया था। उन्होंने दुर्योधन से ही कह दिया था कि तुम मुझे और मेरी सेना दोनों में से किसी एक का चयन कर लो। दुर्योधन ने कृष्ण की सेना का चयन किया।

जब पांडव शिविर में पहुंच गए बलराम, अगले पेज पर...


महाभारत में वर्णित है कि जिस समय युद्ध की तैयारियां हो रही थीं और उधर एक दिन भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम, पांडवों की छावनी में अचानक पहुंचे। दाऊ भैया को आता देख श्रीकृष्ण, युधिष्ठिर आदि बड़े प्रसन्न हुए। सभी ने उनका आदर किया। सभी को अभिवादन कर बलराम, धर्मराज के पास बैठ गए।

फिर उन्होंने बड़े व्यथित मन से कहा कि कितनी बार मैंने कृष्ण को कहा कि हमारे लिए तो पांडव और कौरव दोनों ही एक समान हैं। दोनों को मूर्खता करने की सूझी है। इसमें हमें बीच में पड़ने की आवश्यकता नहीं, पर कृष्ण ने मेरी एक न मानी। कृष्ण को अर्जुन के प्रति स्नेह इतना ज्यादा है कि वे कौरवों के विपक्ष में हैं।

अब जिस तरफ कृष्ण हों, उसके विपक्ष में कैसे जाऊं? भीम और दुर्योधन दोनों ने ही मुझसे गदा सीखी है। दोनों ही मेरे शिष्य हैं। दोनों पर मेरा एक जैसा स्नेह है। इन दोनों कुरुवंशियों को आपस में लड़ते देखकर मुझे अच्छा नहीं लगता अतः में तीर्थयात्रा पर जा रहा हूं।

अगले पन्ने पर कौन थे बलराम...


कृष्ण को विष्णु तो बलराम को शेषनाग का अवतार माना जाता है। कहते हैं कि जब कंस ने देवकी-वसुदेव के छ: पुत्रों को मार डाला, तब देवकी के गर्भ में भगवान बलराम पधारे। योगमाया ने उन्हें आकर्षित करके नन्द बाबा के यहां निवास कर रही श्री रोहिणी जी के गर्भ में पहुंचा दिया। इसलिये उनका एक नाम संकर्षण पड़ा।

बलराम जी का विवाह रेवती से हुआ था।

बलवानों में श्रेष्ठ होने के कारण उन्हें बलभद्र भी कहा जाता है। इनके नाम से मथुरा में दाऊजी का प्रसिद्ध मंदिर है। यह गदा धारण करते हैं। यदुवंश के संहार के बाद बलराम ने समुद्र तट पर आसन लगाकर देह त्याग दी। जरासन्ध को बलराम जी ही अपने योग्य प्रतिद्वन्द्वी जान पड़े। यदि श्रीकृष्ण ने मना न किया होता तो बलराम जी प्रथम आक्रमण में ही उसे यमलोक भेज देते।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi