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हिन्दुओं के मसीहा के बारे में विस्तार से जानिए

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जिस तरह जैन के महावीर, बौद्धों के बुद्ध, यहूदियों के मूसा, पारसियों के जरथुष्ट्र, ईसाइयों के ईसा, मुसलमानों के ह. पैगंबर मुहम्मद अलै. और सिखों के गुरुनानक ईशदूत माने जाते हैं- क्या उसी तरह से हिन्दुओं का भी कोई ईशदूत है?

जिस तरह जैन धर्म का जिनवाणी ग्रंथ, बौद्धों का धम्मपद, यहूदियों का तनख, पारसियों का जेंद अवेस्ता, ईसाइयों का बाइबिल, मुसलमानों का कुरआन शरीफ और सिखों का गुरुग्रंथ साहिब धर्मंग्रंथ है- क्या उसी तरह हिन्दुओं का भी कोई एक ग्रंथ है?

अधिकतर हिन्दू यह जानते नहीं हैं कि हमारा ईशदूत कौन है और हमारा एकमात्र धर्मग्रंथ कौन-सा और उस धर्मग्रंथ के रचयिता कौन हैं। कुछ ही जानते हैं उनमें भी मतभेद हैं, क्योंकि वे सभी अपने-अपने मतों से बंधे हैं और उन्होंने शास्त्र पूरी तरह से शायद पढ़े नहीं हैं। यदि पढ़े भी हैं तो उनमें से ज्यादातर पुराणपंथी लोग हैं।

अगले पन्ने पर ईशदूत का अर्थ जानिए...


ईशदूत का अर्थ : वह व्यक्ति जो ईश्वर का संदेश लेकर जनसाधारण तक पहुंचाए, जैसे हजरत मुहम्मद अलै. ने फरिश्तों के माध्यम से अल्लाह के संदेश को जनसाधारण तक पहुंचाया।

उनसे पहले ईसा और मूसा ने परमेश्वर के संदेश को फैलाया। उनसे भी पहले ऋषभदेव और बुद्ध ने ईश्वर के संदेश को फैलाया अत: सिद्ध हुआ कि ईश्वर का दूत ही ईशदूत कहा जाता है।

अगले पन्ने पर जानिए हिन्दुओं के धर्मग्रंथ का खुलासा...


वेद ही है एकमात्र धर्मग्रंथ : सबसे पहले ऋग्वेद की उत्पत्ति हुई। ऋग्वेद ही हजारों वर्षों तक हिन्दुओं का धर्मग्रंथ बना रहा और आज भी है। ऋग्वेद से ही फिर यजुर्वेद, सामवेद की उत्पत्ति हुई। इस तरह ये तीन वेद ही पहले विद्यमान थे जिसे वेदत्रयी कहा जाता था। सबसे बाद में ऋग्वेद के कुछ श्लोकों को निकालकर और अनुभव पर आधारित कुछ श्लोकों को जोड़कर अथर्ववेद की रचना हुई।

उल्लेखनीय है कि पारसियों का धर्मग्रंथ भी ऋग्वेद पर आधारित है। दुनिया के सारे धर्मग्रंथ वेद पर आधारित ही हैं। अलग-अलग सिद्धपुरुषों ने अपने-अपने क्षे‍त्र में वेद की वाणी का अपनी-अपनी भाषा में प्रचार-प्रसार किया। इसके ऐतिहासिक प्रमाण मौजूद हैं।

वेदों के इतिहास को जानिए...

वेद हैं श्रुति ग्रंथ : वेदों को श्रुति कहा जाता है। श्रुति अर्थात जिसे ईश्वर से सुनकर लिखा गया। ठीक उसी तरह जिस तरह हज. मुहम्मद ने कुरआन को सुना था। श्रुति ग्रंथों में वेदों के अलावा संहिता, ब्राह्मण-ग्रंथ, आरण्यक और उपनिषद आते हैं। श्रुति ग्रंथों को छोड़कर सभी ग्रंथ स्मृति के अंतर्गत माने गए हैं।

गीता है वेदों का निचोड़ : वेद तो एक ही है, लेकिन उसके चार भाग हैं- ऋग, यजु, साम और अथर्व। वेद के सार या निचोड़ को वेदांत व अरण्यक कहा जाता है और उसके भी सार को 'ब्रह्मसूत्र' कहते हैं। वेदांत को उपनिषद भी कहते हैं। वेदांत अर्थात वेदों का अंतिम भाग या दर्शन।

वेद के कुछ श्लोकों का अध्ययन जंगल में ही किया जाता था इसीलिए उसे अरण्यक ग्रंथ कहते हैं। दोनों का सार गीता है। गीता में वेद के संपूर्ण इतिहास, दर्शन और धर्म को संक्षिप्त में भगवान कृष्ण ने समझाया।

स्मृति ग्रंथ : वेद और उपनिषद के बाद नंबर आता है स्मृति ग्रंथों का। स्मृति का शाब्दिक अर्थ है- 'याद किया हुआ'। इसके अंतर्गत रामायण, महाभारत, 18 पुराण, गीता, मनुस्मृति, 31 सूत्रग्रंथ, धर्मसूत्र, योगसूत्र, धर्मशास्त्र, आगम ग्रंथ आदि ग्रंथ आते हैं उनमें भी वेदों के बाद सबसे पहले मनु स्मृति, आपस्तम्ब स्मृति, दक्ष स्मृति, पराशर स्मृति, विश्वामित्र स्मृति, व्यास स्मृति, लघुविष्णु स्मृति, शंख स्मृति, वशिष्ठ स्मृति, वैवस्वत मनु स्मृति, बृहस्पति स्मृति, बृहत्पराशर स्मृति और शंख स्मृति आदि।

इतिहास ग्रंथ : 18 पुराण, रामायण और महाभारत को इतिहास ग्रंथों में शामिल किया गया है। ये इतिहास ग्रंथ हिन्दुओं के धर्मग्रंथ नहीं हैं, लेकिन अक्सर पुराण को हिन्दुओं का धर्मग्रंथ माना जाता था। वेदव्यास ने तो 4 ही पुराण लिखे थे लेकिन उसके बाद में कई पुराणों की रचना होने लगी। उनमें से कुछ पुराण बौद्धकाल में और कुछ मध्यकाल में लिखे गए जिनका धर्म से कोई संबंध नहीं।

अगले पन्ने पर ईश्वर ने सर्वप्रथम वेद किसे सुनाए...



विश्‍व के प्रथम धर्मग्रंथ : वेद की वाणी को ईश्वर की वाणी कहा जाता है। वेद संसार के सबसे प्राचीन धर्मग्रंथ हैं। वेद को 'श्रुति' भी कहा जाता है। 'श्रु' धातु से 'श्रुति' शब्द बना है। 'श्रु' यानी सुनना। कहते हैं कि इसके मंत्रों को ईश्वर (ब्रह्म) ने प्राचीन तपस्वियों को अप्रत्यक्ष रूप से सुनाया था, जब वे गहरी तपस्या में लीन थे।

सर्वप्रथम ईश्वर ने चार ऋषियों को वेद ज्ञान दिया:- अग्नि, वायु, अंगिरा और आदित्य। ये चार ऋषि ही हिन्दुओं के सर्वप्रथम ईशदूत हैं।

प्रथम ईशदूत:- अग्नि, वायु, अंगिरा और आदित्य।
मध्य में : स्वायम्भु, स्वरोचिष, औत्तमी, तामस मनु, रैवत, चाक्षुष।
वर्तमान ईशदूत:- वैवश्वत मनु।

ऋषि-मुनि भी हैं ईशदूत : अग्नि, आयु, अंगिरा और आदित्य के ज्ञान को जिन्होंने संभाला उन ऋषियों को हिन्दु धर्म में सबसे महान माना जाता है। ऋग्वेद की ऋचाओं में लगभग 414 ऋषियों के नाम मिलते हैं जिनमें से लगभग 30 नाम महिला ऋषियों के हैं। इस तरह वेद सुनने और वेद संभालने वाले ऋषि और मनु ही हिन्दुओं के ईशदूत हैं।

वैवस्वत मनु मूल रूप से हिन्दुओं के कलिकाल के ईशदूत हैं। जलप्रलय के बाद उन्होंने ही वेद की वाणी को बचाकर उसको पुन: स्थापित किया था।

गीता में अवतारी श्रीकृष्ण के माध्यम से ईश्वर कथन:- मैंने इस अविनाशी ज्ञान को सूर्य (आदित्य) से कहा था, सूर्य ने अपने पुत्र वैवस्वत मनु से कहा और मनु ने अपने पुत्र राजा इक्ष्वाकु से कहा। इस प्रकार परंपरा से प्राप्त इस योग ज्ञान को राजर्षियों ने जाना, किंतु उसके बाद वह योग बहुत काल से इस पृथ्वी लोक में लुप्तप्राय हो गया।

कृष्ण के इस वचन से यह सिद्ध हुआ कि ईश्वर ने कृष्ण के माध्यम से ईश्वर ने वेद की वाणी को पुन: स्थापित किया अत: भगवान कृष्ण ही हैं हिन्दुओं के अंतिम ईशदूत

ईशदूत को छोड़ अन्य की ओर भागने वाले हिन्दू...


हिन्दुओं के भटकाव के कारण :

पहला कारण : यह सही नहीं है कि सभी हिन्दू भटके हुए हैं। पुराणों और ज्योतिष ग्रंथों पर आधारित अपना जीवन जीने वाला हिन्दू पूर्णत: भटका हुआ और भ्रमित है। हजारों देवी-देवताओं, पितरों, यक्षों, पिशाचों आदि को पूजने वाला हिन्दू राक्षस धर्म का पालन करने वाला माना गया है।

पुराणों और पुराणकारों के कारण वेदों का ज्ञान खो गया। वेदों के ज्ञान के खोने से वेद के संदेशवाहक भी खो गए। तथाकथित विद्वान लोग वेदों की मनमानी व्याख्याएं करने लगे और पुराण ही मुख्य धर्मग्रंथ बन गए।

दूसरा कारण : जैन और बौद्ध काल के उत्थान के दौर में जैन और बौद्धों की तरह हिन्दुओं ने भी देवताओं की मूर्तियां स्थापित कर उनकी पूजा-पाठ और आरतियां शुरू कर दीं। नए-नए पुराण लिखे गए। सभी लोग वैदिक प्रार्थना, यज्ञ और ध्यान को छोड़कर पूजा-पाठ और आरती जैसे कर्मकांड करने लगे। उसी काल में ज्योतिष विद्या को भी मान्यता मिलने लगी थी जिसके कारण वैदिक धर्म का ज्ञान पूर्णत: लुप्त हो गया।

तीसरा कारण : एक हजार वर्ष की मुस्लिम और ईसाई गुलामी ने हिन्दुओं को खूब भरमाया और उनके धर्मग्रंथ, धर्मस्थल, धार्मिक रस्म, सामाजिक एकता आदि को नष्ट कर उन्हें उनके गौरवशाली इतिहास से काट दिया।

धर्मांतरण के लिए इस एक हजार साल की गुलामी ने हिन्दुओं को पूरी तरह से जातियों और कुरीतियों में बांटकर उसे एक कबीले का धार्मिक समूह बनाकर छोड़ दिया, जो पूरी तरह आज वेद विरुद्ध है। यही कारण रहा कि धर्मांतरण तेजी से होने लगा।

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