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हिन्दू धर्म की ओर बढ़ाएं 5 सरल कदम, कैसे जानिए...

हमें फॉलो करें हिन्दू धर्म की ओर बढ़ाएं 5 सरल कदम, कैसे जानिए...
, शुक्रवार, 22 जुलाई 2016 (11:49 IST)
हिन्दू धर्म के संबंध में अधिक से अधिक जानना जरूरी है, लेकिन हमारा यह जानना स्पष्‍ट हो विरोधाभासिक और भटकाने वाला न हो, इसके लिए कुछ आधारभूत जानकारी जरूरी है। अधिकतर हिन्दुओं में वैचारिक भिन्नता है तो इसका कारण है धर्म का सही ज्ञान नहीं होना।

कोई राम-राम कहता है, तो कोई श्याम-श्याम, कोई जय शिव तो कोई जय हनुमान। यह सभी अज्ञान के कारण है। आजकल तो लोग राधे-राधे और जय साई राम भी कहने लगे हैं। खैर... आओ हम जानते हैं कि कितने कम समय में और कितने सरल तरीके से हिन्दू धर्म को अच्छे से समझकर उस पर चलने का प्रयास कर सकते हैं।
 
अगले पन्ने पर पहला कदम...
 

गीता पढ़ें और समझें :  हिन्दू ग्रंथों के दो भाग है श्रुति और स्मृति। श्रुति धर्मग्रंथ है और स्मृति इतिहास और नियमों का ग्रंथ है। वेदों को श्रुति कहा जाता है। श्रुति का अर्थ उस परमेश्वर से सुनकर कहा गया ज्ञान। सर्वप्रथम ईश्वर ने चार ऋषियों को इसका ज्ञान दिया:- अग्नि, वायु, अंगिरा और आदित्य। वेदों को पढ़ने का आम हिन्दुओं के पास समय नहीं है। वेदों का सार है उपनिषद। उपनिषदों में से प्रमुख 108 उपनिषद है। उनमें भी मुख्य उपनिषद हैं- ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुंडक, मांडूक्य, तैत्तिरीय, ऐतरेय, छांदोग्य, बृहदारण्यक और श्वेताश्वर। उक्त संपूर्ण उपनिषदों का सार है गीता।
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गीता की व्याख्‍या करने वाले किसी भी व्यक्ति की किताब पढ़ने से अच्‍छा है कि गीता पढ़ना और समझना। गीता में उस एक परमेश्वर और पूर्व में हुए उसके संदेशवाहकों के बारे में बताया गया है। गीता हमें धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की शिक्षा भी देती है। गीता में वह सब कुछ है जो हमारे धर्म और जीवन से संबंधित है। गीता एक बार पढ़ने से समझ में नहीं आती इसलिए इसे बार बार पढ़ें।
 
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हिन्दू इतिहास : हिन्दू धर्म कितना प्राचीन है यह जानने से ज्यादा जरूरी है कि हिन्दू इतिहास के घटनाक्रमों का तिथि क्रम क्या है। इसे चार युगों से जानने से अच्छा है कि हम इसे विक्रम संवत पूर्व और विक्रम संवत बाद के मान से जानें। यदि हम युगों की बात करेंगे तो 6 मन्वंतर अपनी संध्याओं समेत निकल चुके, अब 7वां मन्वंतर काल चल रहा है जिसे वैवस्वत: मनु की संतानों का काल माना जाता है। 27वां चतुर्युगी बीत चुका है। और, वर्तमान में यह 28वें चतुर्युगी का कृतयुग भी बीत चुका है और यह कलियुग चल रहा है।
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यह कलियुग ब्रह्मा के द्वितीय परार्ध में वराह कल्प (महत्, हिरण्यगर्भ, ब्रह्म और पद्म कल्प बीत चुका है) के श्‍वेतवराह नाम के कल्प में और वैवस्वत मनु के मन्वंतर में चल रहा है। इसके चार चरण में से प्रथम चरण ही चल रहा है। इसलिए इत‍ने युगों का इतिहास बताया हमारे बस की बात नहीं लेकिन वैवस्वत: मनु के मन्वंतर से ही हम हिन्दू धर्म की पुन: शुरुआत मानकर इसके इतिहास की गणना करते हैं। इतिहास में शिव, स्वायंभुव मनु, ययाति, वैवस्वत मनु, ऋषि कश्यम, राम और श्रीकृष्ण के जीवन और उनके कुल खानदान के बारे में विस्तार से जानना चाहिए। चार धाम सहित सप्तपुरी का इतिहास भी पढ़ें।
 
1. ब्रह्म काल : (सृष्टि उत्पत्ति से प्रजापतियों की उत्पत्ति तक)
2. ब्रह्मा काल : (वराह कल्प प्रारंभ : ब्रह्मा, विष्णु और शिव का काल लगभग 14,00 ईसा पूर्व)
2. स्वायम्भुव मनु काल : (9057 ईसा पूर्व से प्रारंभ)
4. वैवस्वत मनु काल : (6673 ईसा पूर्व से) :
5. राम का काल : (5114 ईस्वी पूर्व से 3000 ईस्वी पूर्व के बीच) :
6. कृष्ण का काल : (3112 ईस्वी पूर्व से 2000 ईस्वी पूर्व के बीच) :
7. सिंधु घाटी सभ्यता का काल : (3300-1700 ईस्वी पूर्व के बीच) :
8. हड़प्पा काल : (1700-1300 ईस्वी पूर्व के बीच) :
9. आर्य सभ्यता का काल : (1500-500 ईस्वी पूर्व के बीच) :
10. बौद्ध काल : (563-320 ईस्वी पूर्व के बीच) :
11, मौर्य काल : (321 से 184 ईस्वी पूर्व के बीच) :
12. गुप्तकाल : (240 ईस्वी से 800 ईस्वी तक के बीच) :
13. मध्यकाल : (600 ईस्वी से 1800 ईस्वी तक) :
14. अंग्रेजों का औपनिवेशिक काल : (1760-1947 ईस्वी पश्चात)
15. आजाद और विभाजित भारत का काल : (1947 से प्रारंभ)
 
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हिन्दू नियम : नियम ही धर्म और जीवन है। इस सत्य को जानना जरूरी है। नियम का अर्थ कानून नहीं। जीवन में किसी भी प्रकार का यम-नियम नहीं है तो जीवन अराजक और अनिश्‍चित भविष्‍य की ओर गमन करेगा। नियम का पालन नहीं करोगे तो... 
 
किसी भी धर्म, समाज या राष्ट्र में नीति-नियम और व्यवस्था नहीं है तो सब कुछ अव्यवस्थित और मनमाना होगा। उसमें भ्रम और भटकाव की गुंजाइश ज्यादा होगी इसलिए व्यवस्थाकारों ने व्यवस्था दी। लेकिन कितने लोग हैं जो नीति और नियम का पालन करते हैं?
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आश्रम से जुड़ा धर्म : हिंदू धर्म आश्रमों की व्यवस्था के अंतर्गत धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की शिक्षा देता है। इसी में समाहित है धार्मिक नियम और व्यवस्था के सूत्र। जैसे कैसा हो हिंदू घर, हिंदू परिवार, हिंदू समाज, हिंदू कानून, हिंदू आश्रम, हिदू मंदिर, हिंदू संघ, हिंदू कर्त्तव्य और हिंदू सि‍द्धांत आदि। 
 
प्रमुख 10 नियम : 1.ईश्वर प्राणिधान, 2.संध्यावंदन, 3.श्रावण व्रत मास, 4.चार धाम तीर्थ यात्रा, 5.दान, 6.संक्रांति उत्सव, 7.पंच यज्ञ कर्म, 8.सेवा, 9. सोलह संस्कार और 10.धर्म प्रचार। इसके अलाव दैनिक कार्यों के नियम भी समझें जैसे कैसे नहाना, शौचादि कार्य करना, जल ग्रहण, भोजन और नींद के नियम समझना। वार्तालाप और व्यवहार को समझना। 
 
इन नियमों को मानें :
1. ग्रह-नक्षत्र पूजा, प्रकृति-पशु पूजा, समाधी पूजा, टोने-टोटके और रात्रि के अनुष्ठान से दूर रहें।
2. प्रतिदिन मंदिर जाएं। नहीं तो कम से कम गुरुवार को मंदिर जरूर जाएं।
3. प्रतिदिन संध्यावंदन करें करें। नहीं तो कम से कम गुरुवार को ऐसा करें।
4. आश्रमों के अनुसार जीवन को ढालें। 
5. वेद को ही साक्षी मानें और जब भी समय मिले गीता पाठ करें।
6. धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की धारणा को समझें।
7. संयुक्त परिवार का पालन करें आदि।
8. धर्म विरोधी विचारों से दूर रहें।
9. धार्मिक एवं सामाजिक कार्यों में हिस्सा लें। संघठन से जुड़ें रहें।
10. वहमपरस्त ज्योतिष, जादू-टोना, स्थानीय संस्कृति, स्थानीय विश्वास, तंत्र-मंत्र, सती प्रथा, दहेज प्रथा, छुआछूत, वर्ण व्यवस्था, अवैदिक ग्रंथ, मनमाने मंदिर और पूजा, मनमाने व्रत और त्योहार आदि सभी का हिन्दू धर्म से कोई नाता नहीं।
 
अगले पन्ने पर चौथा कदम...
 

हिन्दू दर्शन को जानें : सत्य को सभी एंगल से जानना होता है। इसका यह मतलब नहीं की इनमें से कोई एक ही दर्शन सत्य है। हिन्दू दर्शन मुख्‍यत: छह दर्शनों पर आधारित है:-1.न्याय 2.वैशेषिक, 3.सांख्य, 4.योग, 5.मीमांसा, 6.वेदांत। आखिर क्या है यम, नियम, आसान, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधी और आखिर क्या है वेदांत का मूल। जहां तक दर्शन का सवाल है तो यह इसलिए जानना जरूरी है क्योंकि इससे हमारी अंतरदृष्‍टि (विचार नहीं) गहरी होती है। दर्शन में षड्दर्शन को समझें। 
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षड्दर्शन : हिन्दू धर्म में इस ब्रह्म को जानने के लिए कई तरह के मार्गों का उल्लेख किया गया है। वेदों के इन मार्गों के आधार पर ही 6 तरह के दर्शन को लिखा गया जिसे षड्दर्शन कहते हैं। वेद और उपनिषद को पढ़कर ही 6 ऋषियों ने अपना दर्शन गढ़ा है। ये 6 दर्शन हैं- 1.न्याय, 2.वैशेषिक, 3.सांख्य, 4.योग, 5.मीमांसा और 6.वेदांत। हालांकि पूर्व और उत्तर मीमांसा मिलाकर भी वेदांत पूर्ण होता है। उक्त दर्शन के आधार पर ही दुनिया के सभी धर्मों की उत्पत्ति हुई फिर वह नास्तिक धर्म हो या आस्तिक अर्थात अनीश्‍वरवादी हो या ईश्‍वरवादी। इसका यह मतलब नहीं कि वेद दोनों ही तरह की विचारधारा के समर्थक हैं। वेद कहते हैं कि भांति-भांति की नदियां अंत में समुद्र में मिलकर अपना अस्तित्व खो देती हैं उसी तरह 'ब्रह्म दर्शन' को समझकर सभी तरह के विचार, संदेह, शंकाएं मिट जाती हैं। वेद और उपनिषद के ज्ञान को किसी एक आलेख के माध्यम से नहीं समझाया जा सकता।
 
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हिन्दू संत धारा को जानिए : स्वयंभू संतों की संख्‍या तो हजारों हैं उनमें से कुछ सचमुच ही संत हैं बाकी सभी दुकानदारी है। यदि हम हिन्दू संत धारा की बात करें तो इस संत धारा को शंकराचार्य, गुरु गोरखनाथ और रामानंद ने फिर से पुनर्रगठित किया था। जो व्यक्ति उक्त संत धारा के नियमों अनुसार संत बनता है वहीं हिंदू संत कहलाने के काबील है।

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हिंदू संत बनना बहुत कठिन है ‍क्योंकि संत संप्रदाय में दीक्षित होने के लिए कई तरह के ध्यान, तप और योग की क्रियाओं से व्यक्ति को गुजरना होता है तब ही उसे शैव या वैष्णव साधु-संत मत में प्रवेश मिलता है। इस कठिनाई, अकर्मण्यता और व्यापारवाद के चलते ही कई लोग स्वयंभू साधु और संत कुकुरमुत्तों की तरह पैदा हो चले हैं। इन्हीं नकली साधु्ओं के कारण हिंदू समाज लगातार बदनाम और भ्रमित भी होता रहा है। हालांकि इनमें से कमतर ही सच्चे संत होते हैं।
 
13 अखाड़ों में सिमटा हिंदू संत समाज पांच भागों में विभाजित है और इस विभाजन का कारण आस्था और साधना पद्धतियां हैं, लेकिन पांचों ही सम्प्रदाय वेद और वेदांत पर एकमत है। यह पांच सम्प्रदाय है-1.वैष्णव 2.शैव, 3.स्मार्त, 4.वैदिक और पांचवां संतमत। वैष्णवों के अंतर्गत अनेक उप संप्रदाय है जैसे वल्लभ, रामानंद आदि। शैव के अंतर्गत भी कई उप संप्रदाय हैं जैसे दसनामी, नाथ, शाक्त आदि। शैव संप्रदाय से जगद्‍गुरु पद पर विराजमान करते समय शंकराचार्य और वैष्वणव मत पर विराजमान करते समय रामानंदाचार्य की पदवी दी जाती है। हालांकि उक्त पदवियों से पूर्व अन्य पदवियां प्रचलन में थी।

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