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कौन है हिंदुओं का ईशदूत?

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अधिकतर हिंदू यह जानते नहीं है कि हमारा ईशदूत कौन है। कुछ ही जानते हैं उनमें भी मतभेद इसलिए हैं कि उन्होंने शास्त्र पूरी तरह से पढ़े नहीं हैं। यदि पढ़े भी हैं तो उनमें से ज्यादातर पुराणपंथी लोग हैं।

ईशदूत का अर्थ : वह व्यक्ति जो ईश्वर का संदेश लेकर जनसाधारण तक पहुंचाए। जैसे हजरत मुहम्मद अलै. ने फरिश्तों के माध्यम से अल्लाह के संदेश को जनसाधारण तक पहुंचाया। उनसे पहले ईसा और मूसा ने परमेश्वर के संदेश को फैलाया। इस्लाम का ईशदूत पैगंबर मुहम्मद अलै. हैं, ईसाई के ईशदूत ईसा मसीह हैं और यहूदियों के ईशदूत हज. मूसा हैं, लेकिन हिंदुओं का ईशदूत कौन?

हिंदू ईशदूत : हर धर्म का एक धर्मग्रंथ होता है उसी प्रकार हिंदुओं का धर्मग्रंथ है वेद। पुराण, रामायण, गीता, मनुस्मृति या महाभारत हिंदुओं के धर्मग्रंथ नहीं हैं।

सबसे प्रथम धर्मग्रंथ : वेद की वाणी को ईश्वर की वाणी कहा जाता है। वेद संसार के सबसे प्राचीन धर्मग्रंथ हैं। वेद को 'श्रुति' भी कहा जाता है। 'श्रु' धातु से 'श्रुति' शब्द बना है। 'श्रु' यानी सुनना। कहते हैं कि इसके मंत्रों को ईश्वर (ब्रह्म) ने प्राचीन तपस्वियों को अप्रत्यक्ष रूप से सुनाया था जब वे गहरी तपस्या में लीन थे।

सर्वप्रथम ईश्वर ने चार ऋषियों को वेद ज्ञान दिया:- अग्नि, वायु, अंगिरा और आदित्य। ये चार ऋषि ही हिंदुओं के सर्वप्रथम ईशदूत है।

वेद तो एक ही है लेकिन उसके चार भाग हैं- ऋग, यजु, साम और अथर्व। वेद के सार या निचोड़ को वेदांत और उसके भी सार को 'ब्रह्मसूत्र' कहते हैं। वेदांत को उपनिषद भी कहते हैं। वेदों का केंद्र है- ब्रह्म। ब्रह्म को ही ईश्वर, परमेश्वर और परमात्मा कहा जाता है।

प्रथम ईशदूत:- अग्नि, वायु, अंगिरा और आदित्य।
मध्य में : स्वायम्भु, स्वरोचिष, औत्तमी, तामस मनु, रैवत, चाक्षुष।
वर्तमान ईशदूत:- वैवश्वत मनु।

ऋग्वेद की ऋचाओं में लगभग 414 ऋषियों के नाम मिलते हैं जिनमें से लगभग 30 नाम महिला ऋषियों के हैं। इस तरह वेद सुनने और वेद संभालने वाले ऋषि और मनु ही हिंदुओं के ईशदूत हैं।

(अब सवाल यह उठता है कि जब वैदिक ऋषि और मनु है ईशदूत तो शिव, राम, कृष्ण और बुद्ध कौन है? इसका जवाब फिर किसी आलेख में)

वैवस्वत मनु : वैवस्वत मनु के काल में सुर, असुर, यक्ष, किन्नर और गंधर्व थे। सुर अर्थात देव और असुर अर्थात दानव, यक्ष, किन्नर और गंधर्व की उत्पत्ति के अलग-अलग कारण थे।

वैवस्वत मनु के दस पुत्र थे- इल, इक्ष्वाकु, कुशनाम, अरिष्ट, धृष्ट, नरिष्यन्त, करुष, महाबली, शर्याति और पृषध पुत्र। इन्हीं पुत्रों और उनकी पुत्रियों से धरती पर मानव का वंश बढ़ा। जल प्रलय के समय वैवस्वत मनु के साथ सप्त ऋषि भी बच गए थे और अन्य जीव, जंतु तथा प्राणियों को भी बचा लिया गया था।

वैवस्वत मनु मूल रूप से हिंदुओं के कलि काल के ईशदूत हैं। देवता और अवतारी हिंदुओं के ईशदूत नहीं हैं। जल प्रलय के बाद उन्होंने ही वेद की वाणी को बचाकर उसको पुन: स्थापित किया था।

गीता में अवतारश्रीकृष्ण के माध्यम से ईश्वर कथन: - मैंने इस अविनाशी ज्ञान को सूर्य (आदित्य) से कहा था, सूर्य ने अपने पुत्र वैवस्वत मनु से कहा और मनु ने अपने पुत्र राजा इक्ष्वाकु से कहा। इस प्रकार परंपरा से प्राप्त इस योग ज्ञान को राजर्षियों ने जाना, किंतु उसके बाद वह योग बहुत काल से इस पृथ्वी लोक में लुप्तप्राय हो गया।

अगले पन्ने पर, क्यों छूट गए हिंदुओं से अपने ईशदूत?


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पहला कारण : महाभारत काल में जहां भगवान कृष्ण ने हिंदू धर्म को एक छत्र के ‍नीचे लाने का प्रयास किया, वहीं वेद व्यास ने पुराण लिखकर हिंदुओं के समक्ष भिन्न-भिन्न देवी-देवताओं को पूजने का उल्लेख कर दिया। पुराणों और पुराणकारों के कारण वेदों का ज्ञान खो गया। वेव्यावेदोखंड-खंदिएवेदों के ज्ञान के खोने से वेद के संदेश वाहक भी खो गए। तथाकथित विद्वान लोग वेदों की मनमानी व्याख्याएं करने लगे और पुराण ही मुख्य धर्मग्रंथ बन गए।

दूसरा कारण : जैन और बौद्ध काल के उत्थान के दौर में जैन और बौद्धों की तरह हिंदुओं ने भी देवताओं की मूर्तियां स्थापित कर उनकी पूजा-पाठ और आरतियां शुरू कर दी। सभी लोग वैदिक प्रार्थना, यज्ञ और ध्यान को छोड़कर पूजा, पाठ और आरती जैसे कर्मकांड करने लगे। उसी काल में ज्योतिष विद्या को भी मान्यता मिलने लगी थी जिसके कारण वैदिक धर्म का ज्ञान पूर्णत: लुप्त हो गया।

तीसरा कारण : एक हजार वर्ष की मुस्लिम और ईसाई गुलामी ने हिंदुओं को खूब भरमाया और उनके धर्मग्रंथ, धर्मस्थल, धार्मिक रस्म, सामाजिक एकता आदि को नष्ट कर उन्हें उनके गौरवशाली इतिहास से काट दिया। इस एक हजार साल की गुलामी ने हिंदुओं को पूरी तरह से जातियों और कुरीतियों में बांटकर उसे एक कबीले का धार्मिक समूह बनाकर छोड़ दिया, जो पूरी तरह आज वेद विरुद्ध है। यही कारण रहा कि धर्मांतरण तेजी से होने लगा। ऐसा धर्मांतरण के लिए भी किया गया। इसके अलावा वर्तमान दौर के हमारे राजनेता और धार्मिक नेता मिलकर इस धर्म और ज्यादा विरोधा‍भाषिक बनाकर लोगों को गफलत में डाल रहे हैं।
-शतायु

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