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क्या था गांधारी की शक्ति का राज, जानिए...

हमें फॉलो करें क्या था गांधारी की शक्ति का राज, जानिए...

अनिरुद्ध जोशी

गांधारी गांधार देश के 'सुबल' नामक राजा की कन्या थीं। गांधार की होने के कारण उसे गांधारी कहा जाता था। गांधार आज के अफगानिस्तान का एक क्षेत्र था जिसे आज कंधार कहा जाता है। गांधारी के भाई का नाम शकुनि था। शकुनि दुर्योधन का मामा था।

यह हस्तिनापुर के महाराज धृतराष्ट्र की पत्नी और दुर्योधन आदि कौरवों की माता थीं। अपने पति धृतराष्ट्र के अंधा होने के कारण विवाहोपरांत ही गांधारी ने भी आंखों पर पट्टी बांध ली तथा उसे आजन्म बांधे रहीं।

संसार की पतिव्रता और महान नारियों में गांधारी का विशेष स्थान है। एक पतिव्रता के रूप में गांधारी आदर्श नारी मानी जाती है। उसके त्याग की महिमा का आज भी वर्णन किया जाता है। लेकिन गांधारी की आंखों में ऐसी कौन सी शक्ति थी जिसके चलते उसके देखने मात्र से दुर्योधन का शरीर वज्र के समान कठोर हो गया था। आओ जानते हैं अगले पन्ने पर...

 

जब गांधारी ने दुर्योधन से कहा निर्वस्त्र आने के लिए...अगले पन्ने पर

 


महाभारत का युद्ध शुरू होने के पूर्व गांधारी ने अपने बेटे दुर्योधन की सुरक्षा के लिए उससे एक दिन कहा कि वह गंगा में स्नान करने के पश्चात उसके सामने नग्न अवस्था में उपस्थित हो जाए।

दुर्योधन ने अपनी माता की आज्ञा का पालन किया और वह गंगा स्नान के लिए चला गया। जब स्नान करने के बाद वह माता गांधारी के समक्ष नग्न अवस्था में जा रहा था तब अचानक कृष्ण ने कहीं से आकर उसे रोका और कहा- क्या तुम्हें लज्जा नहीं आती। इस अवस्था में तुम अपनी मां के महल की ओर जा रहे हो, आखिर मामला क्या है?

दुर्योधन सकुचाया और कुछ कहता इससे पहले ही कृष्ण ने कहा, अच्छा अब समझा। दुर्योधन तुम छोटे थे तो चलता था किंतु अब तुम ही सोचो कि तुम इतने बड़े हो गए हो। क्या फिर भी तुम माता गांधारी के समक्ष नग्न होकर जाना पसंद करोगे। क्या यह ‍अनुचित आचरण नहीं है। माता के समक्ष नग्न जाने पर तुम्हें लज्जा आनी चाहिए।

इस पर दुर्योधन ने अपनी जंघा पर पत्ते लपेट लिए और गांधारी के समक्ष उपस्थित हो गया। जब गांधारी ने अपने नेत्रों से पट्टी खोलकर व उसे देखा तो उसकी दिव्य दृष्टि जंघा पर नहीं पड़ सकी, जिस कारण दुर्योधन की जंघाएं वज्र की नहीं हो सकीं।

कृष्ण की योजना और बहकावे के कारण दुर्योधन का समस्त शरीर वज्र का नहीं हो सका। अपने प्रण के अनुसार ही महाभारत के अंत में भीम ने गदा से दुर्योधन की जांघ पर प्रहार किया और दुर्योधन मारा गया।

अगले पन्ने पर... गांधारी को कहां से मिली दिव्य दृष्टि...


गांधारी भगवान शिव की परम भक्त थीं। शिव की तपस्या करके गांधारी ने भगवान शिव से यह वरदान पाया था कि वह जिस किसी को भी अपने नेत्रों की पट्टी खोलकर नग्नावस्था में देखेगी, उसका शरीर वज्र का हो जाएगा।

महाभारत के युद्ध में सभी कौरव मारे गए, केवल दुर्योधन ही अब तक जीवित बचा हुआ था। ऐसे में गांधारी ने अपनी आंखों की पट्टी खोलकर दुर्योधन के शरीर को वज्र का करना चाहा, लेकिन कृष्ण के बहकावे के कारण दुर्योधन ने अपने गुप्तांग को पत्तों से छिपा लिया था जिसके चलते उसके गुप्तांग और जांघें वज्र के समान नहीं बन पाए।

अगले पन्ने पर, गांधारी का भाई था कौरवों का दुश्मन..


महाभारत की गाथा में कुटिल भूमिका के लिए विख्यात गांधारी के भाई शकुनि कौरवों के ‘शकुनि मामाश्री’ थे। इन्हें कौरवों के शुभचिंतक माना जाता था लेकिन असल में यह कौरवों के दुश्मन थे। कौरवों को छल व कपट की राह सिखाने वाले शकुनि उन्हें पांडवों का विनाश करने में पग-पग पर मदद करते थे लेकिन उनके मन में कौरवों के लिए केवल बदले की भावना थी। क्यों?

शकुनि गांधार नरेश राजा सुबल के पुत्र थे व उनकी बहन गांधारी का विवाह महाराज धृतराष्ट्र से हुआ था जिसके पश्चात उनका रिश्ता हस्तिनापुर से जुड़ा था। गांधारी से महाराज धृतराष्ट्र को 100 पुत्रों की प्राप्ति हुई थी जो आगे चलकर कौरवों के नाम से दुनिया भर में प्रसिद्ध हुए थे।

गांधारी एक विधवा थीं। अर्थात उसका धृतराष्ट्र से पहले किसी दूसरे से विवाह हो गया था। यह सच्चाई जब महाराज धृतराष्ट्र व कौरवों के समक्ष आई तो वे बहुत क्रोधित हो उठे। धृतराष्ट्र के पुत्र दुर्योधन ने गांधारी के पिता राजा सुबल यानि अपने नाना को पूरे परिवार सहित कारागार में डाल दिया। कारागार में उन्हें खाने के लिए केवल एक मुट्ठी चावल दिए जाते थे। जब राजा सुबल को यह ज्ञात हुआ कि यह उनके परिवार का विनाश करने की साजिश है तो उन्होंने यह निर्णय लिया कि वह एक मुट्ठी चावल केवल उनके सबसे छोटे पुत्र (शकुनि) को ही दिए जाएं ताकि उनके परिवार में से कोई तो जीवित बच सके।

जब कौरवों में वरिष्ठ राजकुमार दुर्योधन ने यह देखा कि केवल शकुनि ही जीवित बचे हैं तो उन्होंने उसे क्षमा करते हुए अपने देश वापस लौट जाने या फिर हस्तिनापुर में ही रहकर अपना राज देखने को कहा। इसके पश्चात शकुनि ने कौरवों के बीच रहकर ही अपने पिता और परिवार की मृत्यु का बदला लेना का मन ही मन निश्चय किया।

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