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यहां मिलेंगे आपको साक्षात देवी और देवता

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हिन्दू धर्म में परमेश्वर (ब्रह्म) को सर्वोच्च शक्ति माना गया है। इसके बाद त्रिदेव और फिर अन्य देवी और देवताओं का स्थान है। उल्लेखनीय है कि 33 प्रकार (करोड़ नहीं) के देवी और देवता होते हैं। ऐसा माना जाता है कि महाभारत काल में देवी और देवता धरती पर विचरण करते थे। कलियुग के प्रारंभ के बाद देवी और देवताओं की विग्रह रूप में पूजा या दर्शन होने लगे।
विग्रह रूप का अर्थ मूर्ति नहीं। जैसे शिव का विग्रह रूप शिवलिंग और विष्णु का विग्रह रूप शालिग्राम। इसी तरह प्रत्येक देवी और देवताओं के विग्रह रूप हैं जिसमें वे विराजमान रहते हैं।
कहते हैं कि अब देवी और देवता सूक्ष्म रूप में अपने-अपने धाम में रहते हैं। इसके अलावा वे भक्तों की पुकार सुन कहीं भी उपलब्ध हो जाते हैं। हालांकि संतों की मानें तो वे अभी भी धरती के एक मुख्‍य स्‍थान के संपर्क में रहते हैं और वहां वे भक्तों को साक्षात दर्शन देते हैं। लेकिन इसके लिए तीन बातें आपके चरित्र में विद्यमान होना जरूरी है:- पहली सत्य बोलना, दूसरी ईश्‍वर प्राणिधान और तीसरी प्रतिदिन संध्यावंदन। आओ जानते हैं कि आखिर देवी और देवता हमें कहां दर्शन दे सकते हैं अगले पन्ने पर...
 

देवात्म हिमालय : प्राचीनकाल से ही ऋषि और मुनि हिमालय में तपस्या करने के लिए आते-जाते रहे हैं। आज भी ऐसे कई संत हैं तो हिमालय में रहते हैं। भारतीय दर्शन और धर्म में हिमायल के महत्वपूर्ण योगदान रहा है। हिमालय से ही धर्म और दर्शन निकला है।
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पुराणों अनुसार प्राचीन काल में हिमालय में ही देवी और देवता रहते थे। यहीं पर ब्रह्मा, विष्णु और शिव का स्थान था और यहीं पर नंदनकानन वन में इंद्र का राज्य था। इंद्र के राज्य के पास ही गंधर्वों और यक्षों का भी राज्य था। स्वर्ग की स्थिति दो जगह बताई गई है: पहली हिमालय में और दूसरी कैलाश पर्वत के कई योजन ऊपर।
 
विस्तार से जानने के लिए नीचे दी गई लिंक पर क्लिक करें...
 
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मुण्डकोपनिषद् के अनुसार सूक्ष्म-शरीरधारी आत्माओं का एक संघ है। इनका केंद्र हिमालय की वादियों में उत्तराखंड में स्थित है। इसे देवात्मा हिमालय कहा जाता है। इन दुर्गम क्षेत्रों में स्थूल-शरीरधारी व्यक्ति सामान्यतया नहीं पहुंच पाते हैं।
 
अपने श्रेष्ठ कर्मों के अनुसार सूक्ष्म-शरीरधारी आत्माएं यहां प्रवेश कर जाती हैं। जब भी पृथ्वी पर संकट आता है, नेक और श्रेष्ठ व्यक्तियों की सहायता करने के लिए वे पृथ्वी पर भी आती हैं। 
 
भौगोलिक दृष्टि से उसे उत्तराखंड से लेकर कैलाश पर्वत तक बिखरा हुआ माना जा सकता है। इसका प्रमाण यह है कि देवताओं, यक्षों, गंधर्वों, सिद्ध पुरुषों का निवास इसी क्षेत्र में पाया जाता रहा है। इतिहास पुराणों के अवलोकन से प्रतीत होता है कि इस क्षेत्र को देवभूमि कहा और स्वर्गवत माना जाता रहा है। आध्यात्मिक शोधों के लिए, साधनाओं सूक्ष्म शरीरों को विशिष्ट स्थिति में बनाए रखने के लिए वह विशेष रूप से उपयुक्त है। 
 
ध्यान और तपस्या करने वाले संतों की एक टोली देवात्म हिमालय में कुछ दिन गुजारती है। यदि आप यहां जाना चाहें तो उत्तराखंड की यात्रा में बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री एवं यमुनोत्री इन चारों धामों की यात्रा करें। उनकी पावन यात्रा हरिद्वार, ऋषिकेश से बाकायदा सड़क मार्ग से हो सकती है।

सिद्ध पुरुषों के कई स्तर हैं, जिनमें यक्ष, गन्धर्व प्रमुख हैं। खलनायकों की भूमिका निभाने वालों को दैत्य या भैरव कहते हैं। यक्ष राजर्षि स्तर के होते हैं तथा गन्धर्व कलाकार स्तर  के। सिद्ध पुरुष तपस्वी योगी जनों की ही एक विकसित योनि है। भूलोक की मानवी समस्याओं को सुलझाने में प्रायः सिद्ध पुरुषों का ही बढ़ा-चढ़ा योगदान रहता है। ईश्वर की अनंत शक्तियों को अपनी-अपनी विशेषताओं के कारण ‘देव’ नाम से भी जाना जाता है। वे अदृश्य होती हैं। - पं. श्रीराम शर्मा आचार्य (गायत्री परिवार)

संदर्भ : अध्यात्म चेतना का ध्रुव केन्द्र 'देवात्मा हिमालय' (पं. श्रीराम शर्मा आचार्य)

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