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गिरावट का खेल दस अक्‍टूबर के बाद

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, बुधवार, 19 सितम्बर 2007 (18:42 IST)
-कमल शर्मा
अमेरिकी अर्थव्यवस्था की स्थिति को देखते हुए फैडरल रिजर्व के ब्याज दरों में अपेक्षित चौथाई फीसदी के बजाय आधा प्रतिशत कटौती कर दुनिया भर के शेयर बाजारों को तगड़ी ऊँचाई की ओर बढ़ा दिया है।

डॉव जोंस भी वर्ष 2002 के बाद मंगलवार को पहली बार एक ही दिन में 336 अंक उछला। भारतीय शेयर बाजार बीएसई ने अपनी पिछली ऊँचाई 15869 को पीछे छोड़ते हुए 16 हजार अंक को पार किया और इस समय यह 16261 अंक चल रहा है। इस समय तक सेंसेक्‍स में 591 अंक का जोरदार इजाफा। निवेशक झूम रहे हैं कि सेंसेक्‍स दौड़ गया लेकिन मिड कैप और स्‍मॉल कैप की कितनी कंपनियों के शेयरों में उछाल आया है।

आज की दौड़ का आम निवेशक को जो मझौली और छोटी कंपिनयों में पैसा लगाता है, कोई फायदा नहीं हुआ। कौन-से शेयर दौड़ रहे हैं, जरा यह सोचिए। क्‍या आज आपको शेयर बाजार से सेंसेक्‍स की तुलना में बड़ा फायदा हुआ है। अधिकतर निवेशकों का इस पर नकारात्‍मक जवाब है। जब आम निवेशक को लाभ नहीं हुआ है तो मौजूदा तेजी किसके हित में।

विदेशी संस्‍थागत निवेशक, घरेलू बड़े संस्‍थागत निवेशक और म्‍युचुअल फंड इस मलाई के भागीदार बने हैं। इस समय सभी जगह यह बात आ रही है कि अमेरिकी कदम से शेयर बाजारों को खूब लाभ होगा और तेजी जारी रहेगी। आम निवेशक को पैसा निवेश करना चाहिए। लेकिन आम निवेशक तो मझौली व छोटी कंपनियों में पैसा लगाता है और जब ये शेयर बढ़ते नहीं तो उसे क्‍या फायदा।

हाँ, खूबसूरत पिक्‍चर खड़ी कर छोटे निवेशकों की जेब से पैसा निकालने के लिए जमकर राय देना संस्‍थागत निवेशकों के लिए कारोबार करने वाले विश्‍लेषकों के लिए जरूर मुनाफे का सौदा है। ये ही विश्‍लेषक चंद दिनों पहले कह रहे थे कि शेयर बाजार का बंटाढार हो जाएगा।

केवल अमेरिका ने ब्‍याज दरों में कटौती की और दुनिया भर की अर्थव्‍यवस्‍था सुधर गई। ऐसा कोई जादुई कदम हर देश क्‍यों नहीं उठा लेता ताकि सभी जगह खुशहाली दिखाई दे। अमेरिका ने ब्‍याज दरों में जो कटौती की है, उसके परिणाम तत्‍काल दिखाई नहीं देंगे और अर्थव्‍यवस्‍था में सुधार भी नहीं होगा। सबप्राइम का मामला केवल इस कदम से ठीक हो सकता है तो पहले यह कदम क्‍यों नहीं उठा लिया गया।

हम आम निवेशक को कहना चाहेंगे कि मृगमरीचिका में न फँसे और अपने विवेक का उपयोग कर ही नया निवेश करें। अमेरिका में भी अर्थव्‍यवस्‍था की समीक्षा इस साल के अंत में होगी तभी यह पता चल पाएगा कि ब्‍याज दर में जो कमी की गई है क्‍या वाकई वह लाभकारी रही। ऐसा न हो कि साल के आखिर में अमेरिकी अर्थव्‍यवस्‍था कमजोर हो जाए। अमेरिका पिछले लंबे समय से अर्थव्‍यवस्‍था में आई कमजोरी से उबरने का हर संभव प्रयास कर रहा है, लेकिन वह मंदी के दलदल में फँसता ही जा रहा है।

भारतीय शेयर बाजार के बारे में : क्रूड तेल इस समय तकरीबन 81 डॉलर प्रति बैरल बिक रहा है, जो काफी ऊँचा भाव कहा जा सकता है। क्रूड के दाम इसी तरह ऊँचाई पर जमे रहे तो देश में पेट्रोल व डीजल के दाम बढ़ना तय है और यह बढ़त इतनी ज्‍यादा होगी कि आम आदमी पर भारी पड़ेगी। पेट्रोल व डीजल के दाम बढ़ने की मार चौतरफा पड़ेगी।

भारत व अमेरिका परमाणु करार पर वामपंथी फिर से हलचल में आ गए हैं। इस करार पर समिति बनने के बाद लग रहा था कि राजनीतिक स्थिरता आ जाएगी। लेकिन माकपा महासचिव प्रकाश कारत का कहना है कि इस करार को छह महीने के लिए स्‍थगि‍त करो अन्‍यथा राजनीतिक संकट के लिए तैयार रहो। इस तरह के बयान मार्केट के मूड को बिगाड़ने के लिए पर्याप्‍त हैं।

अब तमिलनाडु के मुख्‍यमंत्री करुणानिधि जो एक जमाने में भाजपा के दोस्‍त थे रामसेतु पर यूपीए में जूतमपैजार करने जा रहे हैं। कांग्रेस अलग राग अलाप रही है और डीएमके अलग। भारत-अमेरिका परमाणु करार ओर रामसेतु के मुद्‍दे मौजूदा केंद्र सरकार के लिए कष्‍टकारी रहेंगे ओर हो सकता है‍ कि कांग्रेस को मध्‍यावधि चुनाव के लिए मन बनाना पड़े।

दस अक्‍टूबर के बाद भारतीय कार्पोरेट जगत के दूसरी तिमाही के नतीजे आने शुरू हो जाएँगे। नतीजों के उस मौसम में आईटी कं‍पनियों से बेहतर नतीजों की उम्‍मीद नहीं की जा सकती। आईटी के साथ कुछ और सेक्टर की कंपनियों के नतीजे भी अच्‍छे नहीं आएँगे, जो शेयर बाजार के मूड को बिगाड़ेंगे।

इन सभी कारणों से बीएसई सेंसेक्‍स दस अक्‍टूबर के बाद एक हजार से बारह सौ अंक लुढ़क जाए तो अचरज नहीं होना चाहिए। हालाँकि जो निवेशक लंबा खेल खेलना चाहते हैं उन्‍हें चिंतित होने की जरूरत नहीं है। यह गिरावट इंट्रा-डे कारोबार करने वालों के माथे पर चिंता की लकीर खींचेगी। (सौजन्य : वाह! मनी)

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