शिव औढरदानी, कल्याण के देवता माने गए हैं। सृष्टि निर्माण में एक ही शक्ति तीन रूपों में अपना कार्य संपादन करते हुए दिखाई देती है। ब्रह्मा सृष्टि का निर्माण करते हैं, विष्णु पालन-पोषण करते हैं और शिव संहार करते हैं यानी निर्माण से नाश तक जगत का चक्र परम सत्ता द्वारा निरंतर प्रकृति में चलता रहता है।
वेदों में प्रकृति के उपादानों की उपासना की गई है। हरेक उपादान को देवता का रूप दिया गया है। यह प्रकृति-विज्ञान का सारा प्रपंच बड़ा रहस्यमय है जिसे समझना सामान्यजन के लिए कठिन है। अनादिकाल से ऋषियों ने इन रहस्यों का मनन-चिंतन द्वारा अनुसंधान करने का प्रयत्न किया है।
शिवरात्रि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को आती है। शिवजी इस चतुर्दशी के स्वामी हैं। इस दिन चंद्रमा सूर्य के अधिक निकट होता है। समस्त भूतों का अस्तित्व मिटाकर परमात्मा (शिव) से आत्मसाधना करने की रात शिवरात्रि है। इस दिन जीवरूपी चंद्रमा का परमात्मारूपी सूर्य के साथ योग रहता है, अत: शिवरात्रि को लोग जागरण कर व्रत रखते हैं। शिव की हर बात निराली और रहस्यमय है। उनका सारा क्रियाकलाप विरोधाभासों का भंडार है।
ऋग्वेद के रात्रि सूक्त में रात्रि को नित्य प्रलय और दिन को नित्य सृष्टि कहा गया है। दिन में हमारा मन और हमारी इंद्रियां भीतर से बाहर निकलकर प्रपंच की ओर दौड़ती हैं और रात्रि में फिर बाहर से भीतर जाकर शिव की ओर प्रवृत्त हो जाती हैं। इसीलिए दिन सृष्टि का और रात प्रलय की द्योतक है। आइए पहचानें शिव के प्रतीक और उनका गहन रहस्य-
वृषभ : शिव का वाहन वृषभ शिव का वाहन है। वह हमेशा शिव के साथ है। वृषभ का अर्थ धर्म है। मनुस्मृति के अनुसार 'वृषो हि भगवान धर्म:'। वेद ने धर्म को चार पैरों वाला प्राणी कहा है। उसके चार पैर धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष हैं। महादेव इस चार पैर वाले वृषभ की सवारी करते हैं यानी धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष उनके अधीन हैं।