शास्त्रों में मनुष्य के तीन ऋण कहे गए हैं- देव ऋण, गुरु ऋण व पितृ ऋण। इनमें से पितृ ऋण को श्राद्ध करके उतारना आवश्यक है।
शास्त्रों में कहा गया है कि जिन माता-पिता ने हमारी आयु, आरोग्यता तथा सुख-सौभाग्य की वृद्धि के लिए अनेक प्रयास किए, उनके ऋण से मुक्त न होने पर हमारा जन्म लेना निरर्थक होता है। इसे उतारना आवश्यक होता है।