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गुरु गद्दी दिवस के 300 वर्ष

मानस की जात सबै एकै पहिचानबौ

हमें फॉलो करें गुरु गद्दी दिवस के 300 वर्ष
- सतमीत कौ

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श्री गुरुनाक देव जी से ले के सारे गुरु साहिब जी ने मानव जाति को ये संदेश दिया 'अवल अलह नूर उपाइआ कुदरति के सभ बंदे
एक नूर ते सभ जग उपजिआ कउन भले को मंदे' हर मनुष्य को एक ही परमात्मा ने बनाया है सभी उस परमात्मा के बंदे हैं फिर कौन भला और कौन मंदा।

जब गुरु साहिब जी ने देखा कि एक वर्ग के लोगों को नीच कहा जाता है उन्हें अपवित्र और अछूत माना जाता है। उन्हें किसी प्रकार का कोई हक नहीं है तो गुरु साहिब जी ने ये समझाया कि 'मानस की जात सबै एकै पहिचानबौ'। हर मनुष्य की एक ही जात होती है कोई ऊँचा या नीचा नहीं होता।

गुरु जी ने सती प्रथा पर रोक लगाई। जो लोग औरतों को गुलाम समझ के उनके साथ बुरा बर्ताव करते थे उन्हें ये शिक्षा दी ‍क‍ि 'सो किउ मंदा आखिए जितु जंमहि राजान'। तुम उस नारी जाति को क्यों बुरा कहते हो जिसने तुम्हें जन्म दिया।

इस जा‍त-पाँत के भेद को मिटाने के लिए गुरु जी ने लोगों को कर्मकांड करने से रोका। उन्हें समझाया ‍कि हाथ में माला पकड़कर माथे पर ‍ तिलक लगाने से तुम ऊँचे नहीं हो जाते।

वह सबसे ऊँचा और पवित्र है। जिसके हृदय में परमात्मा का वास होता है। इस तरह दूसरे के साथ दुर्व्यवहार करके परमात्मा की प्राप्ति नहीं होती क्योंकि परमात्मा तो सभी का है। 'एक पिता एकस के हम बारिक' वो ईश्वर तो सभी का पिता है और हम सब उसके बच्चे हैं।

गुरु साहिब जी ने लंगर की प्रथा शुरू की जिसमें हर वर्ग के लोगों को एक ही कतार में नीचे बैठकर एक साथ खाना परोसा जाता है। इसमें कोई भेदभाव नहीं होता।

श्री हरमिंदर साहिब (अमृतसर) के चार दरवाजे ये शिक्षा देते हैं कि प्रभु के दर्शन के लिए हर व्यक्ति को इजाजत है किसी भी वर्ग का व्यक्ति यहाँ दर्शन के लिए आ सकता है। ये किसी विशेष वर्ग मात्र के लिए नहीं है।

इसी प्रकार इस जात-पाँत, रंग-लिंग के भेद को खत्म करते हुए एक बहुत ही बड़ा उपहार सारी मानस जाति को 'श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी' के रूप में मिला।

जिसमें छे गुरु जी की वाणी के अलावा भगतों की वाणी जिनमें प्रमुख है भगत फरीद जी, भगत नामदेव जी, भगत रामानंद जी, रविदास जी, कबीर जी, सूरदास जी, भीखण जी के अलावा 11 अरशी भेंटों को वाणी और तिन गुरु सिखों की वाणी को शामिल किया है।

ये वाणी सिरफ इनके प्रभु प्रेम को देखकर ली गई है इसमें जात-पाँत, लिंग, रंग का भेद कोई मायने नहीं रखता।

जब इस वाणी का संकलन किया गया तो किसी की जात नहीं देखी इसलिए इसमें रविदास (चमार) नामदेव (छीमा) जी आदि की बाणी को लिया गया। क्यों‍कि श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी यही तो संदेश देते हैं कि प्रभु के भगतों की कोई जात नहीं होती।

गुरु साहिब जी के अनुसार
प्रभु का नाम जपो मेहनत करके कमाई करो और मिल बैठ के खाओ। आपस में प्रेम करो 'जिन प्रेम किओ तिन ही प्रेम पाइओ है' जिन्होंने प्रेम किया परमात्मा से उन्होंने ही उसे पाया है। बाकी श्रेष्ठ कहलवाने से प्रभु की प्राप्ति नहीं होती।

1708 ईस्वी में श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने गुरु ग्रंथ साहिब जी में श्री गुरु तेग बहादुर जी की बाणी का भी संकलन कर इन्हें संपूर्ण किया और सिखों को आदेश दिया कि यही आज से आपके गुरु हैं।

'गुरबाणी इस जग महि चानणु करीम वसै मन आए'

तो आइए हम भी गुरु साहिब जी से ये शिक्षा धारण कर लें कि हम सब एक पिता के बच्चे हैं।

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