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(द्वादशी तिथि)
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गुरु नानक की नीति कथा : खुदा का घर

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गुरु नानक तीर्थाटन करते हुए मक्का-शरीफ पधारे। रात हो गई थी, अतः वे समीप ही एक वृक्ष के नीचे सो गए।

सबेरे उठे तो उन्होंने अपने चारों ओर बहुत सारे मुल्लाओं को खड़ा पाया। उनमें से एक ने नानक देव को उठा देख डांटकर पूछा, 'कौन हो जी तुम, जो खुदा पाक के घर की ओर पांव किए सो रहे हो?'

बात यह थी कि नानक देव के पैर जिस ओर थे, उस ओर काबा था। नानक देव ने उत्तर दिया, 'जी, मैं एक मुसाफिर हूं, गलती हो गई। आप इन पैरों को उस ओर कर दें जिस ओर खुदा का घर नहीं हो।'

यह सुनते ही उस मुल्ला ने गुस्से से पैर खींचकर दूसरी ओर कर दिए किंतु सबको यह देख आश्चर्य हुआ कि उनके पैर अब जिस दिशा की ओर किए गए थे, काबा भी उसी तरफ है। वह मुल्ला तो आग बबूला हो उठा और उसने उनके पैर तीसरी दिशा की ओर कर दिए किंतु यह देख वह दंग रह गया कि काबा भी उसी दिशा की ओर है।

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सभी मुल्लाओं को लगा कि यह व्यक्ति जरूर ही कोई जादूगर होगा। वे उन्हें काजी के पास ले गए और उससे सारा वृत्तांत कह सुनाया। काजी ने नानकदेव से प्रश्न किया, 'तुम कौन हो, हिंदू या मुसलमान?'

'जी, मैं तो पांच तत्वों का पुतला हूं'- उत्तर मिला।

'फिर तुम्हारे हाथ में पुस्तक कैसे है?'

'यह तो मेरा भोजन है। इसे पढ़ने से मेरी भूख मिटती है।'

इन उत्तरों से ही काजी जान गया कि यह साधारण व्यक्ति नहीं, बल्कि कोई पहुंचा हुआ महात्मा है। उसने उनका आदर किया और उन्हें तख्त पर बिठाया।

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