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नानक देव की महानता

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माता तृप्ता देवीजी और पिता कालू खत्रीजी के सुपुत्र गुरु नानक देव जी का अवतरण संवत्‌ 1526 में कार्तिक पूर्णिमा को ननकाना साहिब में हुआ। 
 
सतगुरुजी की महानता के दर्शन बचपन से ही दिखने लगे थे। नानक देव जी ने रूढ़िवादिता के विरुद्ध संघर्ष की शुरुआत बचपन से ही कर दी थी। उन्हें 11 साल की उम्र में जनेऊ धारण करवाने की रीत का पालन किया जा रहा था। 
 
जब पंडितजी बालक नानकदेवजी के गले में जनेऊ धारण करवाने लगे तब उन्होंने उनका हाथ रोका और कहने लगे- 'पंडितजी, जनेऊ पहनने से हम लोगों का दूसरा जन्म होता है, जिसको आप आध्यात्मिक जन्म कहते हैं तो जनेऊ भी किसी और किस्म का होना चाहिए, जो आत्मा को बांध सके।

आप जो जनेऊ मुझे दे रहे हो वह तो कपास के धागे का है जो कि मैला हो जाएगा, टूट जाएगा, मरते समय शरीर के साथ चिता में जल जाएगा। फिर यह जनेऊ आत्मिक जन्म के लिए कैसे हुआ?

...और उन्होंने जनेऊ धारण नहीं किया।' 

 

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