Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

इंदौर ने बनाया था लिएंडर पेस को 'हीरो'

हमें फॉलो करें इंदौर ने बनाया था लिएंडर पेस को 'हीरो'

सीमान्त सुवीर

आज आप जिस चमकते-दमकते टेनिस सितारे लिएंडर पेस को देख रहे हैं, उसी खिलाड़ी की खेल नींव को मजबूत करने में कहीं न कहीं इंदौर शहर का भी बड़ा योगदान रहा है। स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर, केप्टन मुश्ताक अली की जन्मस्थली और कर्नल सीके नायडू की कर्मस्थली रहा यह शहर प्रतिभाओं को संवारने में अपना योगदान देता रहा है। 16 ग्रैंड स्लैम खिताबों को शान से अपने सीने पर चस्पा करने वाले लिएंडर पेस के टेनिस करियर के लिए इंदौर मील का पत्थर बना। 

 
1988 में लिएंडर पेस 
भारतीय हॉकी टीम का हिस्सा रह चुके डॉ. वेस पेस का बेटा लिएंडर बहुत जिद्दी किस्म का लड़का था। टेनिस के अलावा उसका दिमाग कहीं नहीं चलता था। कैसा विचित्र संयोग है कि विंबलडन में जब पेस ने अपना 16वां ग्रैंड स्लैम खिताब जीता, तब मेरी आंखों के सामने वो 16 साल का सांवला-सा लड़का घूम गया, जो पहली बार इंदौर आया था। अपने 36 साल से ज्यादा के पत्रकारिता करियर में आज तलक मुझे उसका वह जुनूनी चेहरा याद है। 
 
इंदौर में तब मध्यप्रदेश टेनिस के कर्ताधर्ता एस.एस. सलूजा हुआ करते थे, जो अब दिवंगत हो चुके हैं। यह बात 1988 के दिसंबर की है, जब सलूजा साहब इसको लेकर परेशान थे कि मध्यप्रदेश को सैटेलाइट टेनिस के तीन लीग चरण कहां कराएं जाएं क्योंकि टेनिस वालों के पास खुद का कोर्ट नहीं था...
webdunia
2015 में भारतीय टेनिस सितारे लिएंडर पेस 
 
सलूजा की परेशानियां यशवंत क्लब के तत्कालीन सचिव रहे भोलू मेहता ने दूर कर दी। भोलू खुद भी खेलों से अगाध प्रेम रखते थे, लिहाजा सैटेलाइट टेनिस में आने वाले मेहमान‍ खिलाड़ियों के लिए उन्होंने मुफ्त में न केवल लॉजिंग-बोर्डिंग की सुविधा मुहैया करवा दी, बल्कि खुद खड़े होकर अंतरराष्ट्रीय स्तर के चारों टेनिस कोर्ट तैयार करवाए। 
 
सैटेलाइट मुकाबलों के दौरान मैंने लिएंडर पेस को देखा बल्कि उससे साक्षात्कार भी लिया। यह लड़का इस लिए भा गया था क्योंकि खेल में उसका समर्पण देखते बनता था। मैच में कोई शॉट मिस करने पर वह खुद पर इतना झल्लाता कि देखने वालों को लगता यह तो पागल है... तब किसे पता था कि खेल में उसका यही पागलपन उसे आज का सितारा बना देगा, जो 42 साल की उम्र में आकर भी जवानों जैसा खेल दिखाकर 'रॉयल बॉक्स' के ठीक सामने 16वां ग्रैंड स्लैम खिताब जीतने का करिश्मा कर डालेगा।
 
1988 में इंदौर में सैटेलाइट टेनिस लीग के तीन चरण हुए थे, इसी में पेस 'हीरो' बनकर निकला। आप इसकी प्रतिभा का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि जब क्रिकेट के अलावा सभी तमाम दूसरे खेल गरीबी के दामन में सिकुड़े पड़े थे, तब लिएंडर पेस का सिक्का बोल रहा था। 1991 में जिवाजी क्लब में माधवराव सिंधिया ने एक टूर्नामेंट में जब पेस को खेलने बुलाया था, तब उन्हें 10 लाख 50 हजार का मेहनताना अदा किया गया था। 
 
बात फिर इंदौर की कर ली जाए... इस शहर की मिट्‍टी में पता नहीं कैसा जादू है कि वह खिलाड़ी ही नहीं, विविध कला के कमजोर घड़ों को अपने हाथों से गढ़ती है और कालचक्र के हाथों में सौंप देती है। फिर यही कलाकार अपनी मेहनत और लगन के बूते पर जब शीर्ष पर पहुंचते हैं तो उनके साथ अपना भी सीना चौड़ा हो जाता है। याद आया... राहुल द्रविड़ और सलमान खान ने भी इसी शहर में अपनी आंखें खोलीं थीं और न जाने कितने नाम होंगे जो दुनियाभर में फैले हैं और गाहेबगाहे कभी तो इस शहर को याद करके पुरानी यादों में खो जाते होंगे... 
 
बहरहाल, लिएंडर आज 42 साल के हैं और टेनिस कोर्ट पर उनकी चीते जैसी चपलता विरोधी खिलाड़ी को हैरत में डाल देती है। टेनिस का खेल देखने में जितना लुभावना दिखता है, कोर्ट पर खिलाड़ी के लिए उतना ही मुश्किल होता है। लिएंडर पावर के साथ माइंड गेम खेलते हैं और यही आज के समय की जरूरत भी है। उम्मीद की जानी चाहिए कि वे आगे भी भारत को जश्न मनाने के मौके मुहैया करवाते रहेंगे। आमीन!

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi