Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

'करोड़पति' मरियप्पन की मां को साइकल पर नहीं बेचनी पड़ेगी सब्जियां...

हमें फॉलो करें 'करोड़पति' मरियप्पन की मां को साइकल पर नहीं बेचनी पड़ेगी सब्जियां...

सीमान्त सुवीर

रियो ओलंपिक के ठीक बाद रियो डि जेनेरियो में ही 7 सितंबर से पैरालंपिक का आयोजन चल रहा है, जिसका समापन 18 सितंबर को होगा। इसमें दुनियभर के वो एथलीट हिस्सा ले रहे हैं, जो कुदरती तौर पर दिव्यांग (विकलांग) हैं, या फिर किसी दुर्घटना में शरीर का हिस्सा गंवा चुके हैं...इन्हीं एथलीटों में भारत के दो दिव्यांगों ने करिश्माई प्रदर्शन करते हुए स्वर्ण और कांस्य पदक जीते। थंगावेलू मरियप्पन की स्वर्णिम ऊंची कूद साबित हुई जबकि वरुण भाटी ने इसी स्पर्धा में कांस्‍य पदक अपने गले में पहना...गोल्ड मेडलिस्ट मरियप्पन की यह कामयाबी उनके तंगहाल परिवार को करोड़पति बना गई और अब उनकी मां को तमिलनाडु में साइकल पर घर-घर जाकर सब्जियां नहीं बेचनी पड़ेंगी...
थंगावेलू मरियप्पन और वरुण भाटी पदक जीतने के बाद जश्न मनाते हुए 
वाकई ये हकीकत है कि थंगावेलू मरियप्पन नाम के जिस खिलाड़ी ने पैराल‍ंपिक का स्वर्ण पदक जीता है, उसकी मां अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए साइकल पर सब्जी के टोकरे लेकर निकलती हैं और यह नजारा ठीक उसी तरह का होता है, जैसा देश के कई गांववाले साइकलों पर गली-मोहल्लों में आवाज लगाकर सब्जी बेचते हैं, लेकिन जब से इस अम्मा के बेटे ने ब्राजील की धरती पर जाकर स्वर्ण पदक जीता है और देश का गौरव बढ़ाया है, उनके घर में जश्न का माहौल है...
webdunia

ओलंपिक इतिहास में पहली बार पदक वितरण समारोह में भारत के दो ध्वज ऊपर जाते हुए 
 
जश्न होना भी चाहिए कि क्योंकि अम्मा के दिव्यांग बेटे ने न केवल मेडल जीता है, बल्कि उस पर हो रही धनवर्षा से पूरा परिवार गरीबी के दलदल से बाहर भी आने जा रहा है। तमिलनाडु सरकार ने थंगावेलू मरियप्पन के लिए 2 करोड़ रुपए देने का ऐलान किया है, जबकि खेल मंत्रालय की तरफ से उन्हें 75 लाख रुपए का चैक दिया जाएगा। थंगावेलू मरियप्पन के साथ पोडियम पर खड़े कांस्य पदक विजेता 21 साल के वरुण भाटी को भी खेल मंत्रालय 30 लाख रुपए देगा...
 
थंगावेलू मरियप्पन और वरुण भाटी की पारिवारिक पृ‍ष्ठभूमि और जिंदगी की दास्तान भी जुदा-जुदा हैं...मरियप्पन ने गरीबी और अभाव के पलने में अपनी आंखें खोलीं तो वरुण ने मध्यमवर्गीय परिवार में जन्म लिया, लेकिन जन्म के बाद उन्हें पोलियो हो गया...पोलियो को अभिशाप न मानते हुए वरुण ने कुदरत के इस फैसले को चैलेंज किया और अपनी तमाम ताकत ऊंची कूद में लगा दी। इसी चुनौती का उन्हें कांसे के रूप में मीठा फल भी मिला है। आज वरुण की मां राकेशदेवी और पिता हेमसिंह को अपने दिव्यांग बेटे पर नाज़ हैं और उनकी झोली में वरुण ने खुशियां जो इतनी डाल दी है...
 
मरियप्पन का जन्म दिव्यांग के रूप में नहीं हुआ था। जन्म के वक्त गरीब ही सही, लेकिन मां ने अपने सब अरमान पूरे किए। जब मरियप्पन पांच साल का हुआ, तब पैदल अपनी अम्मा के साथ जा रहा था लेकिन निर्दयी बस ने उसके पैरों को कुचल दिया। एक पैर खराब होने के बाद भी मरियप्पन ने खेल का दामन थामा और जीतने का यही जज्बा उन्हें स्वर्ण पदक की मंजिल तक ले गया। 
 
ओलंपिक को खेलों का 'कुंभ' माना जाता है...ग्रीष्मकालीन ओलंपिक, शीतकालीन ओलंपिक और पैरालंपिक...इन तीनों में जो भी खिलाड़ी पदक जीतता है, उसकी खुशी किसी एवरेस्ट फतह से कम नहीं होती, क्योंकि ओलंपिक में सिर्फ खिलाड़ी ही हिस्सा नहीं लेता, बल्कि वहां उसका देश मौजूद रहता है। रियो डि जेनेरियो में भारतीय ओलंपिक इतिहास ने एक ऐसा सुनहरा पल देखा, जब पोडियम पर मेडल सेरेमनी के दौरान भारत के दो खिलाड़ी मौजूद थे और तीन में से दो ध्वज तिरंगे थे, जो देश की राष्ट्रीय धुन के साथ हौले-हौले ऊपर जा रहे थे...
 
भारत ने आज तक किसी भी ओलंपिक के एक खेल में कभी भी एक साथ दो पदक नहीं जीते...पैरालंपिक में ऐसा पहली बार हुआ, जब हाई जंप में स्वर्ण और कांस्य के पदक पर भारतीय एथलीटों के नाम रहे...मरियप्पन और वरुण की इस कामयाबी पर मीडिया भी मेहरबान हुआ और प्रधानमंत्री मोदी भी...मोदी ने ट्‍वीट करके दोनों को बधाई दीं तो बॉलीवुड ने भी सोशल मीडिया पर दोनों खिलाड़ियों की पीठ थपथपाई...
 
मरियप्पन और वरुण एक मिसाल हैं, खासकर उन दिव्यांगों के लिए जो विकलांगता को अभिशाप मानकर कुछ कर गुजरने का हौसला खो देते हैं, जीत की जिद एक दिव्यांग को कंगाल से करोड़पति बना देती है, थंगावेलू मरियप्पन इसका जीता जागता प्रमाण हैं...स्वदेश लौटने पर इन दोनों की ठीक वैसे ही अगवानी होनी चाहिए जैसी कि पीवी सिंधु और साक्षी मलिक की हुई थी। 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

यूपीसीए ग्रीनपार्क में पूर्व कप्तानों को करेगा सम्मानित