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योगेश्वर ने पिता को समर्पित किया स्वर्ण पदक

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इंचियोन , सोमवार, 29 सितम्बर 2014 (00:52 IST)
इंचियोन। एशियाई खेलों की कुश्ती स्पर्धा में भारत के सोने के तमगे के 28 साल के सूखे को समाप्त करने वाले स्टार पहलवान योगेश्वर दत्त ने इस स्वर्ण पदक को अपने दिवंगत पिता और देशवासियों को समर्पित किया है।
योगेश्वर ने 65 किग्रा फ्रीस्टाइल के फाइनल में ताजिकिस्तान के जालिमखान यूसुपोव को हराकर स्वर्ण पदक जीता। यह भारत का एशियाई खेलों में सोल 1986 में करतार सिंह की खिताबी जीत के बाद पहला स्वर्ण पदक है। 
 
योगेश्वर ने 2006 के अपने प्रदर्शन में सुधार करके भारतीय खेमे में खुशी की लहर दौड़ायी। उन्होंने दोहा एशियाई खेल 2006 में कांस्य पदक जीता था। यह भारतीय पहलवान सेमीफाइनल में एक समय पीछे चल रहा था लेकिन उन्होंने आखिरी क्षणों में वापसी करके फाइनल में जगह बनाई और फिर स्वर्ण पदक जीतने में किसी तरह की कोताही नहीं बरती।
 
इस स्टार पहलवान ने कहा, ‘यह मेरे लिए बड़ा पदक है। मैं इसे अपने पिता और देशवासियों को समर्पित करता हूं। मेरे पिता का छह महीने पहले निधन हो गया था और पिछली बार मैं कांस्य पदक ही जीत पाया था इसलिए यह पदक उनके लिए है।’
 
उन्होंने कहा, ‘मैं काफी खुश हूं कि भारत ने एशियाई खेलों में 28 साल के बाद स्वर्ण पदक जीता। कोरिया मेरे लिए भाग्यशाली रहा है। कोरिया में ही 2008 में मैंने पहली बार एशियाई चैम्पियनशिप का स्वर्ण पदक जीता और फिर 2012 में भी।’
 
आज के तीनों मुकाबलों के बारे में योगेश्वर ने कहा, ‘सभी तीन मुकाबले कड़े थे। मेरी पिंडली की मांसपेशियों में थोड़ी समस्या थी और इसके कारण मेरी मूव करने की क्षमता प्रभावित हुई।’ योगेश्वर ने फाइनल में अपने प्रतिद्वंद्वी ताजिकिस्तान के प्रतिद्वंद्वी की भी तारीफ की। 
 
उन्होंने कहा, ‘‘फाइनल में मेरा प्रतिद्वंद्वी शीर्ष स्तरीय था। मैंने उसका पैर पकड़ने की कोशिश की लेकिन उसका डिफेंस काफी अच्छा था लेकिन मेरा डिफेंस भी काफी अच्छा है इसलिए मैं उसके हमले से बच पाया।’ 
 
इस भारतीय पहलवान ने एशियाई खेलों पर ध्यान लगाने के लिए विश्व चैम्पियनशिप में हिस्सा नहीं लिया था और उन्होंने कहा कि इससे फायदा मिला। उन्होंने कहा, ‘विश्व चैम्पियनशिप के लिए नहीं जाने से फायदा मिला क्योंकि दोनों प्रतियोगिताओं में सिर्फ 10 दिन का अंतर था और इतने कम समय में थकान से उबर पाना मुश्किल था।’ (भाषा)

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