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फुटबॉल की उपेक्षा ने बनाया चैम्पियन मुक्केबाज

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नई दिल्ली (भाषा) , मंगलवार, 16 जून 2009 (16:47 IST)
एशियाई चैम्पियनशिप में भारत को 15 बरस बाद स्वर्ण पदक दिलाने वाले सुरंजय सिंह असल में फुटबॉलर बनना चाहते थे लेकिन राष्ट्रीय टीम में जगह नहीं मिल पाने से निराश होकर उन्होंने मुक्केबाज रिंग में उतरना बेहतर समझा।

मणिपुर के ही रेनेडीसिंह की तरह फुटबॉलर बनने के इच्छुक 22 बरस के सुरंजय को उनके बड़े भाई और पूर्व मुक्केबाज सूरनजीत ने मुक्केबाज बनने की प्रेरणा दी क्योंकि राष्ट्रीय स्तर पर फुटबॉल खेलने के मौके का इंतजार करते हुए वह थकने लगे थे।

वैसे यह उतना आसान नहीं था और शुरूआत में परिवार को अस्वीकार्य भी लगा। सुरंजय ने कहा मैं फुटबॉलर बनना चाहता था क्योंकि मणिपुर में यह खेल बहुत लोकप्रिय है लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर ब्रेक नहीं मिल पाने से मैं हताश था।

उन्होंने कहा मेरे भाई ने मुझे मुक्केबाजी में उतारा और उस समय मुझे लगने लगा कि व्यक्तिगत खेल में सफलता से मुझे अधिक संतोष और लोकप्रियता मिलेगी। काफी सोच विचार के बाद मुझे यह सही लगा क्योंकि फुटबॉल जैसे खेल में शायद में अपनी पहचान नहीं बना पाता।

फ्लायवेट (51 किलो) के इस मुक्केबाज ने कहा कि मुक्केबाजी चुनने के बाद उनके लिए अपने माता-पिता को मनाना बड़ी चुनौती थी। सुरंजय ने कहा वे बहुत नाराज थे। जब मैने वायएमसीए इंटरनेशनल में पदक जीता तो ही वे मानें।

जूनियर विश्व चैम्पियनशिप 2004 में काँस्य पदक जीतने वाले सुरंजय ने कहा कि सीनियर स्तर पर आने के बाद मुक्केबाजी की शारीरिक जरूरतों के मुताबिक खुद को ढाल पाना आसान नहीं था।

उन्होंने कहा मुझे यही कहा जाता था कि मैं अच्छा मुक्केबाज नहीं हूँ। मुझे किसी अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में मौका नहीं दिया गया। लेकिन वह बहुत पुरानी बात है। मैने खुद से वादा किया कि मैं वापसी करूँगा। मैंने एक मौका माँगा और पिछले साल बठिंडा में राष्ट्रीय चैम्पियनशिप में हिस्सा लिया। उसमें स्वर्ण पदक जीतकर मेरा आत्मविश्वास लौटा।

राष्ट्रीय कोच गुरबख्श सिंह ने सुरंजय की वापसी पर हैरानी जताते हुए कहा यह अद्भुत है। वह मेरे पास आया और बोला सर मुझे एक मौका दीजिए मैं खुद को साबित कर दूँगा। मैंने उसकी बात मान ली और उसने अपना वादा निभाया। अभी तो उसकी शुरुआत है। अभी उसे बहुत कुछ हासिल करना है।

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