स्वामी विवेकानंद का पत्र
एक अज्ञान संन्यासी के रूप में हिमालय से कन्याकुमारी की यात्रा करते हुए स्वामी विवेकानंद ने जनता की दुख-दुर्दशा का अपनी आंखों से अवलोकन किया था। अमेरिका की सुविधाओं तथा विलासिताओं के बीच सफलता की सीढ़ियों पर उत्तरोत्तर चढ़ते हुए भी, भारतीय जनता के प्रति अपने कर्तव्य का उन्हें सतत स्मरण था। बल्कि इस नए महाद्वीप की संपन्नता ने, अपने लोगों के बारे में उनकी संवेदना को और भी उभारकर रख दिया।
वहां उन्होंने देखा कि समाज से निर्धनता, अंधविश्वास, गंदगी, रोग तथा मानव कल्याण के अन्य अवरोधों को दूर करने के लिए मानवीय प्रयास, बुद्धि तथा निष्ठा की सहायता से सब कुछ संभव बनाया जा सकता है।