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स्‍वामी विवेकानंद जयंती: इतने सालों बाद आज भी क्‍यों यूथ आइकॉन हैं स्वामी जी

हमें फॉलो करें स्‍वामी विवेकानंद जयंती: इतने सालों बाद आज भी क्‍यों यूथ आइकॉन हैं स्वामी जी
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नवीन रांगियाल

(12 जनवरी विवेकानंद राष्‍ट्रीय युवा दिवस विशेष)

पिछले एक- दो दशकों में कई संप्रदायों में धर्म गुरुओं के नाम सामने आए हैं, हालांकि वे अपने दर्शन की वजह से कम ही जाने गए हैं, इसके विपरीत वे विवादों की वजह से ज्‍यादा खबरों में रहे हैं। कुछ मामले तो ऐसे रहे हैं जिनकी वजह से वास्‍तविक  धर्म, दर्शन और आध्‍यात्‍म को इस दौर में खासी ठेस लगी है और कई लोगों का खासतौर से युवाओं को आध्यात्म से मोह ही भंग हो गया है, ऐसे युवाओं के लिए धर्म गुरु सिर्फ एक व्यंग्य बनकर रह गए हैं। लेकिन इसी बीच अभी कोई अज्ञात कड़ी है जिसकी वजह से इस दौर में हजारों आधुनिक युवा आज भी स्वामी विवेकानंद के दर्शन, उनके विचार और साहित्य से जुड़ा हुआ है।

वेबुदुनिया ने चर्चा की कुछ ऐसे ही युवाओं से जो इस संकट के दौर में भी स्वामी विवेकानंद को अपना आदर्श और आध्यात्म का माध्यम मानते हैं।

स्वामी जी के बाद मेरी खोज हुई पूरी
वेस्ट मैनेजमेंट का व्यवसाय करने वाले अमित मेश्राम कहते हैं कि उनका शुरु से ही आध्यात्म और दर्शन की तरफ झुकाव रहा है, इसके लिए वे कई धर्म गुरूओं का हाथ थामने का प्रयास करते हैं, लेकिन जब वे स्वामी विवेकानंद के साहित्य के संपर्क में आते हैं तो उन्हें समझ में आता है कि वास्तविक आध्यात्म और दर्शन क्या है और वे अब तक क्या ग्रहण कर रहे थे। अमित बताते हैं, ‘जब मैंने स्वामी जी का शिकागो वाला भाषण सुना तो उस दिन मेरी अंदर की खोज पूरी हो गई। मुझे महसूस हुआ कि मुझे अपना रास्ता मिल गया। अब मैं वास्तविक गुरु, दर्शन और आध्यात्म में अंतर कर सकता हूं’।

युवा बाबा और गुरु में अंतर जानता है 
सुरेंद्र पाल अंग्रेजी भाषा और पर्सनेलिटी डवलेपमेंट की ट्रैनिंग का अपना इंस्टीटयूट संचालित करते हैं। वे कहते हैं, दरअसल, धर्म और आध्यात्म को लेकर स्वामीजी की एप्रोच प्रैक्टिकल रही है। वे अपनी फिलोसॉफी को वैज्ञानिक तौर पर सिद्ध भी करते हैं। वे उदारहण देते है कि स्वामीजी भी गाय को माता मानते थे, लेकिन गाय और मनुष्य के जीवन में से पहले वे मनुष्य के जीवन को बचाने की बात कहते हैं। सुरेंद्र कहते हैं, जाहिर है आज का युवा फर्जी बाबा और असल गुरु की पहचान कर सकता है।

क्यों स्वामी जी आज भी प्रासंगिक हैं 
फ्रीलॉन्स जर्नलिज्म और राइटर विभवदेव शुक्ला इस बात को थोड़ा और स्पष्ट करते हैं, वे बेहद साफगोई के साथ कहते हैं, देखिए आज जगह-जगह तमाम बाबाओं की सभाएं सजती है, उनमें आपको ज्यादा युवा नजर नहीं आएंगे, जबकि स्वामी विवेकानंद तो अब है नहीं, लेकिन उनके किताबों से आज भी हम जुडे हुए हैं। दरअसल, इस दौर में धर्म को कुछ लोगों ने व्यवसाय बना लिया है। जबकि स्वामी विवेकानंद के मामले में ऐसा नहीं था, इसलिए वे आज भी प्रासंगिक हैं।

ज्यादा हैवी होने की जरुरत नहीं 
अपना व्यवसाय करने वाले विकास राठौर कहते हैं, धर्म या आध्यात्म जैसे भारी भरकम शब्दों को ज्यादा समझने की जरुरत नहीं है, सच और झूठ यह दो ही चीजें हैं हमारे सामने, जिसे हम खुद तय कर सकते हैं, इसके आगे का रास्ता तय करने के लिए हमे गुरु की जरुरत होती है। उस गुरु के तौर में मैं स्वामी विवेकानंद को देखता हूं। और उनके नहीं होने के इतने सालों बाद हजारों दूसरे युवा भी स्वामी जी को ही देखते हैं। कई बाबा आएंगे और कई बाबा जाएंगे, लेकिन गुरु तो एक ही रहेंगे।

उत्तिष्ठ जाग्रत किसी ने नहीं कहा 
बैंकर माया सिंह बताती हैं, वे धर्म, आध्यात्म और दर्शन के बारे में ज्यादा नहीं जानती, लेकिन आज के बाबा वही सब कहते हैं जो हमारे ग्रंथों में लिखा है, लेकिन स्वामी विवेकानंद युवाओं से कनेक्ट कर उनकी बात कहते हैं, इसलिए वे युवाओं की पसंद हैं। उनके अलावा किसी ने नहीं कहा कि उत्तिष्ठ जाग्रत:।

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