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शि‍क्षक दिवस संस्मरण : आंखों से आंसू छलक पड़े

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संजय वर्मा "दृष्टि "
स्कूल के दिनों की अनगिनत यादों को आज जब याद करते हैं, तो बचपन की यादों में खोते ही एक मुस्कान चेहरे पर आ जाती है। गुरु अपने ज्ञान और अनुभव को सभी विद्यार्थियों में बांटते थे, तो हम सभी ध्यान पूर्वक पढ़ते और समझते थे।


गुरु जब कक्षा में आते, तो सब खड़े होकर उनका अभिवादन करते जब परिवार के साथ बाजार में जाते समय रास्ते में गुरु मिल जाए, तो पापा- मम्मी के संग गुरु को नमस्कार करते। यही आदर-सम्मान की भावना गुरु से हमसे स्कूली जीवन में सीखी थी, जो आज हमारे दिल में बड़े होने एवं बड़े पद पर विद्यमान होने पर भी सजीव है। 
चुनाव का एक वाक्या याद आता है, जब मुझे पीठासीन अधिकारी पद और मेरे गुरु जिन्होंने मुझे पढ़ाया था, उन्हें मेरे अंडर में पोलिंग अधिकारी नंबर एक पर नियुक्त किया गया। चुनाव में और भी अधिकारी, चुनाव संबंधी सहायता हेतु मेरे साथ थे। चुनाव सामग्री पद के हिसाब से संभालने का दायित्व था और हम सभी अपनी-अपनी सभी सामग्री लेकर बस की और चलने लगे। मैंने देखा की ये तो मेरे गुरूजी हैं, जिन्होंने मुझे पढ़ाया था। वे बुजुर्ग हो चुके थे और उनसे उनकी सभी सामग्री और स्वयं का भारी बैग भी उठाया नहीं जा रहा था। मैंने गुरूजी से कहा- सर ये सब आप मुझे दीजिए में लेकर चलता हूं। गुरूजी ने कहा कि -आप तो हमारे अधिकारी है आप से कैसे उठवा सकता हूं। मैंने कहा- आपने ही तो हमें शिक्षा के साथ सिखाया था- "आदर सम्मान का पाठ"। आप की शिक्षा के बदौलत ही मैं आज बड़े पद पर नौकरी कर रहा हूं, यह क्या कम है ?

मैंने गुरुजी की चुनावी सामग्री और बैग उठा लिया। गुरु की आंखों में आंसू छलक पड़े और मेरे मन में साहस का हौंसला भर गया। मेरे आदरणीय गुरु आज भी मेरे साथ हैं, जिनसे ज्ञान और अनुभव अब भी प्राप्त करता हूं, और आगे भी करता रहूंगा। मेरी यही गुरु सेवा और सहायता अच्छे कार्य हेतु सदैव मेरे साथ रहेगी व प्रेरणा देती रहेगी । 

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