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शोभा सोमनाथ की जैसे सीरियल बनना चाहिए : सदाशिव अमरापुरकर

हमें फॉलो करें शोभा सोमनाथ की जैसे सीरियल बनना चाहिए : सदाशिव अमरापुरकर

समय ताम्रकर

गुजरात में वापी के निकट 8 एकड़ के क्षे‍त्र में जी टीवी पर प्रसारित होने वाले धारावाहिक ‘शोभा सोमनाथ की’ का विशाल सेट लगाया गया है। लगभग 12 करोड़ रुपये की लागत और पाँच सौ कारीगरों की पाँच महीने तक किए गए परिश्रम से यह सेट तैयार हुआ है। यह एक ऐतिहासिक ड्रामा है जिसमें शोभा की गाथा दिखाई जाएगी। शोभा ने मोहम्मद गजनी के हमलों का सामना दृढ़तापूर्वक किया था, लेकिन इतिहास में उसका ज्यादा उल्लेख नहीं मिलता है। इस धारावाहिक की खास बात यह है कि इसमें प्रसिद्ध अभिनेता सदाशिव अमरापुरकर भी नजर आएँगे जिन्होंने दुष्ट पुजारी रुद्रभद्र का किरदार निभाया है। पेश है सदाशिव से बातचीत :


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कई दिनों से आप अभिनय की दुनिया से दूर हैं। इसकी वजह?
एक जैसे रोल और एक जैसी फिल्में कर मैं ऊब गया था। मुझे लगा कि इस चक्र से बाहर आना चाहिए तभी मेरा बतौर अभिनेता और इंसान के विकास हो सकेगा। मैंने दो वर्ष का ब्रेक ले लिया। पूरा भारत घूमा। विदेश गया। आम आदमी से मिला। फिर मुझे समझ आया कि मैंने अब तक क्या किया है और क्या करना चाहिए। यह ब्रेक बहुत जरूरी था।

वापसी के लिए टीवी ही क्यों चुना?
मैंने दो फिल्में भी साइन की हैं। जहाँ तक टीवी का सवाल है ‍तो यह बहुत आगे निकल चुका है। जी टीवी जैसा चैनल डेढ़ सौ से ज्यादा देशों में देखा जाता है। पूरी दुनिया के लोग आपके काम को देखते हैं। सप्ताह के पाँच दिन आप लोगों की निगाहों के सामने रहते हैं, जबकि फिल्म कुछ चुनिंदा लोग ही देखते हैं।

लेकिन टीवी धारावाहिकों की तुलना में फिल्म लंबे समय तक याद रखी जाती हैं?
आपकी बात से सहमत हूँ। धारावाहिक अखबार की तरह होते हैं, जबकि फिल्में किताबों की तरह होती हैं, लेकिन टीवी की पहुँच ज्यादा दर्शकों तक होती है।

‘शोभा सोमनाथ की’ को स्वीकारने की वजह?
मेरा किरदार रुद्रभद्र भले ही नकारात्मक है, लेकिन मुझे इसमें अलग रंग दिखाने को मिले हैं। फिल्मों में मेरी एक खास इमेज बन गई थी, जिसकी वजह से हर फिल्म में मुझे समान रोल मिल रहे थे। यह ऐतिहासिक सीरियल है जिसे बड़ी मेहनत से बनाया जा रहा है। सेट, कास्ट्यूम, संवाद, परम्परा और रीति-रिवाजों पर रिसर्च की गई है। धारावाहिक को देख आपको लगेगा कि हम सभी 11वीं सदी में पहुँच गए हों। मेरा मानना है कि ऐतिहासिक सीरियल बनना चाहिए ताकि सभी लोग अपने पूर्वजों द्वारा किए गए त्याग और लड़ी गई लड़ाइयों से परिचित हों।

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