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ख़ुशामद की जीत...

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- अनह
जिसे कहती है दुनिया कामयाबी वाए नादानी
उसे किन क़ीमतों पे कामयाब इंसान लेते हैं (फ़िराक़)

WD
तो बिग बॉस में आख़िरकार कामयाब रहे आशुतोष कौशिक। आशुतोष उन लोगों में से हैं, जिनके मन में पैसे वालों के प्रति एक तरह का भक्तिभाव होता है; ऐसे लोग अमीर लोगों की चापलूसी बेहिचक करते हैं। दरअसल, आप मन की गहराइयों से उन्हीं का सम्मान करते हैं जिनके जैसे होना चाहते हैं। आशुतोष राहुल महाजन के पैर दबाया करते थे, कॉफी बनाकर पिलाते थे और हर तरह की सेवा में खुद को ऐसे प्रस्तुत करते थे, जैसे जेल में बड़े बदमाश की चाकरी टुच्चे अपराधी किया करते हैं।

आशुतोष दरअसल इतने सीधे भी नहीं हैं, जितने दिखते हैं। उनके बेंडेपन, उनकी बदतमीज़ी भरी गाली-गलौज को उनका भोलापन समझना शायद ठीक नहीं है। उनके इस नक़ाब के पीछे बेहद काइयां चापलूस छिपा था। याद रहे कि आशुतोष डायना के जाने पर नहीं रोए, पर राहुल के जाने पर फूट-फूट के रोए। आशु जानते थे कि ये सीन दिखाए जाएँगे और "बड़े दिल वाले" राहुल अपनी "वोटिंग मशीनरी" का इस्तेमाल उन्हें जिताने में करेंगे। राहुल ने यह किया भी। इसीलिए जीतने के बाद आशु ने कहा कि ये जीत राहुल महाजन की जीत है। इसका मतलब यह हुआ कि आशु अभी राहुल से कुछ और फ़ायदे उठाएंगे। यह संबंध सबसे सटीक है। राहुल को ख़ुशामदियों और "हाँ में हाँ" भरने वालों की जरूरत है और आशुतोष ऐसा गॉड फादर चाहते हैं, जो मुंबई में उन्हें जमवा दे। राहुल यदि पायल रोहतगी के लिए कुछ कर सकते हैं तो आशु को भी निश्चित फ़ायदा पहुँचा सकते हैं।

राजा मार खा गए अपनी ख़ुद्दारी के चलते। या यूँ कहे कि लड़ाई-झगड़ों से उन्होंने जो अपनी टीआरपी बनाई, वो उन्हें यहाँ तक ही ला सकती थी। इससे आगे तो सिर्फ ख़ुशामद ही ले जा सकती थी, जो राजा के स्वभाव में नहीं है। कई बार राहुल ने राजा से भी पैर दबाने को कहा, पर राजा ने नहीं दबाए। हाँ, जुल्फ़ी ने जरूर भाईचारे के नाते या बीमार समझकर सेवा कर दी।

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ख़ैर... हैरत की बात यह है कि आशु ने टीवी पर डायना को अपनी माँ जैसी बोल दिया और पुरानी दोस्त के पास जाने की ख़्वाहिश ज़ाहिर की। बेशक डायना का दिल टूटा होगा। काश कि आशु उन्हें दोस्त के दर्जे पर ही रखता। आशु की जीत कांइयापन और ख़ुशामद की जीत है। उनके व्यक्तित्व को ग़ौर से देखे जाने की जरूरत है। "बिग बॉस" ने हमें दिखाया कि इंसानी फ़ितरत यानी उसकी प्रकृति क्या होती है। कोई कहानी, कोई उपन्यास भी इंसान के मन को ऐसा क्या टटोल पाता, जैसा "बिग बॉस" जैसे गेम शो ने टटोल लिया है। बस आपके पास वो नज़र होना चाहिए कि आप लोगों की हरकतों से उनके मन में झाँक सकें।

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