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झूठ लोचन समारोह यानी 'सच का सामना'

हमें फॉलो करें झूठ लोचन समारोह यानी 'सच का सामना'

अनहद

जिस दिन अदालतें बंद रहती हैं, उस दिन पचास प्रतिशत झूठ कम बोला जाता है। जिस दिन बाज़ार भी बंद रहते हैं, उस दिन झूठ बोले जाने का प्रतिशत गिर जाता है। सन्नााटा हो जाने पर जब सारे लोग सो जाते हैं, तब बिलकुल भी झूठ नहीं बोला जाता।

झूठ हमारी जिंदगी में ऑइल और ग्रीस का काम करता है। झूठ की चिकनाई न हो, तो जिंदगी के बहुत से पुर्जे जाम हो जाएँ या सच की ज़ंग खाकर टूट जाएँ। बुधवार रात से स्टार प्लस पर शुरू हुआ रियलिटी शो "सच का सामना" झूठ लुंचन समारोह है। जिस तरह जैन साधु सबके सामने अपने शरीर के बाल नोंचकर खुद को साफ करते हैं, उसी तरह ये टीवी शो सार्वजनिक रूप से झूठ को नोंचकर अलग करता जाता है।

जिस मशीन से इस शो में सच-झूठ का फैसला किया जाता है, वो लाई डिटेक्टर मशीन है। इस मशीन का उपयोग मुलजिमों से पूछताछ में किया जाता है। मगर अदालत में इसे मान्यता नहीं है। जाँच एजेंसी यह नहीं कह सकती कि जुर्म से इनकार करने वाले की बात को मशीन झूठ बता रही है, लिहाजा सज़ा दी जाए। इस मशीन के नतीजे पुलिस अपनी जाँच में इस्तेमाल कर सकती है, पर अदालत में सबूत की तरह नहीं रख सकती। अदालत में यूँ भी इतने सच की ज़रूरत नहीं होती।

तरकीब यह है कि मशीन पर आदमी को बैठाकर कुछ तार दिल की रगों से जोड़ दिए जाते हैं। फिर कुछ महत्वहीन सवाल पूछे जाते हैं, जिनके बारे में झूठ बोलने की कोई वजह नहीं हो सकती। फिर मुद्दे की बात पूछ ली जाती है। जब फालतू बातों के सच जवाब दिए जाते हैं तो दिल की धड़कनें एक ढंग से चलती हैं, पर जब ये पूछा जाता है कि बताओ तुमने हत्या की या नहीं तो इस बारे में सहज ढंग से सच नहीं बोला जा सकता, लिहाजा दिल की धड़कनों की रफ्तार में फर्क आ जाता है। कहते हैं कुछ आदतन झूठे इस मशीन को भी चकमा दे चुके हैं। खैर...।

ये शो कह रहा है कि झूठ से मनोरंजन बहुत हुआ, आइए अब थोड़ी देर सच से खेलकर देखते हैं और सच खतरनाक होते हैं। करोड़ रुपए जीतने चला प्रतियोगी अपने दोस्तों और संबंधियों को खो सकता है। पहले ही दिन एक महिला इस सवाल पर चित हुई कि अगर गारंटी हो कि पति को मालूम नहीं पड़ेगा, तो क्या वह दूसरे मर्द से संबंध बनाएगी? महिला ने कहा नहीं और मशीन ने कहा कि महिला झूठ बोल रही है। दस लाख रुपए जीतने के करीब से महिला शून्य पर आ गई और शायद पति से उसके ताल्लुकात भी कुछ खट्टे पड़ जाएँगे।

इससे पहले जो सवाल पूछे गए, उनसे पता चलता था कि उसे माँ से बहुत शिकायत है कि माँ ने उससे सौतेला व्यवहार किया। बचपन से ही उसके मुकाबले भाई को अधिक चाहा। शादी के बाद भाई के बच्चों को ज्यादा पे्रम दिया। अमेरिकी रियलिटी शो "मोमेंट ऑफ ट्रूथ" की हूबहू नकल इस कार्यक्रम की ज्यादा ज़रूरत यकीनन इसी देश में है। अपने यहाँ पाखंड ज्यादा है और सच बोलने की हिम्मत कम। इनाम के लालच में ही सही, लोग सच बोलने की हिम्मत तो कर रहे हैं। अगर सच नहीं बोलेंगे, तो मशीन सच सामने ले आएगी।

छोटी-सी फिल्म "आमिर" से चर्चा में आए राजीव खंडेलवाल इस शो को होस्ट कर रहे हैं और उनके जुमलों में दोहराव पहले ही एपिसोड से नज़र आ रहा है। देखना है ये शो और क्या-क्या गुल खिलाता है। इससे भी बड़ी बात ये देखने की है कि कितने लोगों को सच हजम नहीं होता।

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