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'सच' से सहमा हुआ 'जंगल'

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जब कार्यक्रम शुरू हुआ था, तो लग रहा था कि ये खूब टीआरपी कबाड़ेगा। मगर बाद में "सच का सामना" ने जंगल की हवा टाइट कर दी। "इस जंगल से मुझे बचाओ" को वैसी सफलता नहीं मिल रही जैसी "बिग बॉस" को मिली थी। कारण यह कि उक्त गेम शो अजीब-सा घालमेल है। ये ठीक से साहसिक कार्यक्रम भी नहीं और पूरी तरह "बिग बॉस" जैसा भी नहीं। ये दोनों का संकर है।

यह तीसरी तरह का भी नहीं है कि जंगल में प्रतियोगियों को छोड़ दिया और अब वे अपना खाना खुद जुटाएँ। चाहें तो बंदूक से शिकार करें, चाहें तो मछलियाँ पकड़ें। डिस्कवरी पर इस तरह के कार्यक्रम खासे रोचक लगते हैं। एक समय उन्हें खाने को एक मुट्ठी चावल और सोयाबीन दिए जाते हैं और रात को मुनासिब-सा खाना खाने के लिए कोई अजूबा कर दिखाना होता है।

एक प्रतियोगी ने ़जिंदा मछली हलक में उतार ली, जैसे दमा की दवा देने वाले उतरवाते हैं। फिर बेहद ही घृणित किस्म के पेय उस प्रतियोगी को पिलवाए गए, कीड़े खिलाए गए। इसके बाद दूसरे प्रतियोगी के सिर पर तरह-तरह के कीड़े, साँप और बिच्छू छोड़े गए। बेशक साँप और बिच्छुओं का तो ऐसा इंतज़ाम कर दिया जाता होगा कि वे न तो काटें और न डंक मारें। मगर छोटे कीड़ों का कुछ ठीक नहीं। छोटे कीड़ों ने प्रतियोगी की गर्दन में डंक मारे और फफोले पड़ गए। इसके बाद "जंगलियों" ने बगावत कर दी। बगावत के दौरान एक महिला प्रतियोगी ने सबसे सटीक बात कही कि ये तो सैडिज़्म है। केवल एक ही शब्द से इस कार्यक्रम की व्याख्या करना हो, तो वो शब्द सैडिज़्म है। यानी पीड़ा देने में सुख लेना।

जिसने भी इस शो को सोचा है, वो ज़रूर दूसरों को दुःख देकर सुखी होना वाला व्यक्ति होगा। लोग भूखे रहते हैं, स्वादिष्ट चीज़ों की तलाश में रहते हैं। पेट भर खाना हो, तो कुछ ऐसा करना पड़ेगा कि लोगों की रूह काँप जाए। अमन वर्मा को इसके लिए बंदर के मल में सराबोर होना पड़ा है, मछली की आँतों की गंदगी अपने ऊपर लेना पड़ी है। वीभत्स रस की पराकाष्ठा इस शो में हो रही है। बहरहाल बगावत हो चुकी है और ये झगड़ा भी दिखाया गया।

मलेशिया में हुए इस पंगे की खबर जंगल से होते हुए न्यूज़ चैनल पर खुद नहीं आई, चैनल वालों ने ही खुद पहुँचाई कि झगड़े के चलते ही सही, कुछ तो टीआरपी बढ़े। हो सकता है झगड़ा असली हो, मगर खबर तो ज़रूर ही उन्होंने खुद ले जाकर दी है। "सच का सामना"ने इस शो के सारे दर्शक हथिया लिए हैं।

समय एक साथ लगा होने से राखी का "स्वयंवर" देखने वाले दर्शक "जंगल" देखते हैं और फिर जंगल को आधा छोड़कर "सच" देखने चल पड़ते हैं। मुमकिन है अब कुछ और शिगूफा चैनल वाले छोड़ें। मलेशिया का खर्च तो निकालना ही है।

अनहद

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