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सत्ता के लिए भाजपा की क्षेत्रीय आधार रणनीति

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यूपी में सत्ता हासिल करने के लिए भाजपा ने अलग-अलग इलाकों के हिसाब से रणनीति तैयार की है और ऐसा करते समय भाजपा द्वारा पश्चिमी उत्तरप्रदेश में जहां कैराना से पलायन और मुजफ्फरनगर दंगे जैसे मुद्दों पर वोटरों को गोलबंदी की जाएगी, वहीं राज्य के पूर्वी हिस्से में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की विकास से जुड़ी छवि का प्रचार किया जाएगा। 
 
राज्य की 12 सीटों पर राज्य की खराब कानून-व्यवस्था का मुद्दा छाया रहेगा, क्योंकि ये सीटें सत्तारूढ़ दल के विधायकों के पास थीं। इसके जरिए तकरीबन 50 फीसदी वोट बैंक पर निशाना साधा जाएगा और इस प्रक्रिया में 2014 के लोकसभा चुनावों के प्रदर्शन को दोहराने की कोशिश की जाएगी, जहां पार्टी 337 विधानसभा सीटों पर नंबर वन रही थी। लेकिन इस बार विभिन्न कारकों के आधार पर हार और जीत तय होगी और स्थानीय मुद्‍दों पर जोर रहेगा।
 
पूरे प्रदेश को 6 इलाकों में बांटा : क्षेत्रीयता के आधार पर रणनीति के टुकड़ों को जोड़ने के लिए एक प्रमुख दैनिक ने जमीनी स्तर पर जुड़े करीब एक दर्जन नेताओं से चुनावी ऊंट की करवट की संभावना टटोला है। वोटरों को पक्ष में लाने के लिए पार्टी ने समूचे प्रदेश को 6 क्षेत्रों में बांटकर प्रचार करने की रणनीति बनाई है। इसके तहत पश्चिमी उत्तरप्रदेश, ब्रज, कानपुर, अवध, गोरखपुर और काशी के आसपास के इलाके को चिन्हित किया गया है। भाजपा चाहती है कि उसे पश्चिमी उत्तरप्रदेश, अवध और गोरखपुर व काशी में ज्यादा से ज्यादा सीटें मिलें। 
 
विदित हो कि इन इलाकों में विधानसभा की कुल 204 सीटें हैं, जबकि राज्य में सीटों की कुल संख्या 403 है। मोदी की अपील और संघ के सिपहसालारों की मेहनत और नोटबंदी के बावजूद यूपी में सत्ता हासिल करने को लेकर बीजेपी की उम्मीदें बढ़ गई हैं। पार्टी चाहती है कि चुनावी हवा पश्चिमी उत्तरप्रदेश से पूर्वांचल की ओर चले। इस रणनीति को सफल बनाने के लिए क्षेत्रीय अध्यक्षों और उनके सह-प्रभारियों को भी तैनात किया गया है।
 
प्रदेश के प्रत्येक क्षेत्र के लिए संघ की पृष्ठभूमि वाले 1-1 महामंत्री को नियुक्त किया गया है। बीजेपी इस बात से भी खुश है कि इन 6 क्षेत्रों को आधार बनाकर चुनाव आयोग ने मतदान का कार्यक्रम भी तय किया है। मतदान पश्चिमी यूपी से शुरू होकर पूर्वी उत्तरप्रदेश में समाप्त होगा। ठीक ऐसा ही 2014 के लोकसभा चुनावों में हुआ था। इस दौरान पार्टी ने राज्य की कुल 80 लोकसभा सीटों में से 73 पर अपना कब्जा जमाया था।
 
50% वोटों पर निगाह : पार्टी नेताओं का कहना है कि वे बाकी पार्टियों के उलट तकरीबन आधे वोटरों के सबसे बड़े वोट बैंक को टारगेट कर रहे हैं। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि हम 50 फीसदी वोट की राजनीति कर रहे हैं। 10 फीसदी ब्राह्मण वोट, 33 फीसदी गैर-यादव ओबीसी वोट और 7 गैर-जाटव वोट। मतदाताअओं का यह वर्ग ऐसा है, जो कि सपा और बसपा का प्रतिबद्ध मतदाता नहीं है। 
 
समाजवादी पार्टी सिर्फ 40 फीसदी वोटरों की राजनीति पर निर्भर है, क्योंकि उसने निशाने पर 20 फीसदी यादव और 19 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं। बीएसपी और भी कम यानी 30 फीसदी वोटरों की राजनीति कर रही है और बहनजी का मानना है कि अगर बसपा को 13 फीसदी जाटव और 19 फीसदी मुस्लिमों के वोट मिल जाते हैं तो वे सरकार बनाने के करीब पहुंच सकती हैं।
 
कानून व्यवस्था का सबसे बड़ा मुद्दा : भाजपा पूरे राज्य में कानून-व्यवस्था की खराब हालत और समाजवादी पार्टी के विकास के नाम पर फर्जी दावे तथा गुंडागर्दी की चरम सीमा को उठाएगी। पार्टी नेताओं का कहना है कि हाल ही में हर बड़े शहर और रीजन में लॉ एंड ऑर्डर से जुड़ी 2-3 बड़ी घटनाएं हुई हैं, चाहे वह बुंदेलखंड रेप केस हो या इलाहाबाद में हाल में दिनदहाड़े हुई डॉक्टर की हत्या। इन क्षेत्रों में ऐसा कोई भी जिला नहीं है, जहां समाजवादी पार्टी के नेता और उसकी गुंडागर्दी आम आदमी के लिए समस्या नहीं रही हो। 
 
पश्चिमी यूपी में धार्मिक आधार पर वोटों का बंटवारा : पश्चिमी यूपी की करीब 70 सीटें बीजेपी के लिए अहम हैं, जहां पहले चरण में चुनाव होने हैं। पार्टी ने इस जाट बहुल इलाके में अजित सिंह की आरएलडी (रालोद) से समझौता कर रखा है। हालांकि भाजपा ऊपरी तौर पर कहती है कि वह धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण के खिलाफ है लेकिन दल के प्रमुख नेता गोपनीय तौर पर स्वीकार करते हैं कि इस इलाके में धार्मिक ध्रुवीकरण करना उनकी रणनीति का अहम हिस्सा है। लोकसभा चुनावों में पार्टी को ऐसे ही सफलता मिली थी।
 
विदित हो कि पार्टी के कई नेता कैराना से हिन्दुओं के पलायन का मुद्दा बना चुके हैं। केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह जैसे पार्टी के बड़े नेताओं ने भी बार-बार कहा है कि मुस्लिम आबादी के कारण यहां के हिन्दू असुरक्षित हैं और वे यहां से पलायन करने को मजबूर हैं। यह सभी जानते हैं कि मुजफ्फरनगर दंगों के आरोपी भाजपा सांसद संजीव बालियान और सुरेश राणा को क्रमश: केंद्रीय मंत्री और राज्य बीजेपी का उपाध्यक्ष बनाया गया। जाट और मुस्लिमों के बीच खाई पश्चिमी उत्तरप्रदेश में एक हकीकत है, जो बयां करती है कि इस इलाके में धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण हो चुका है।
 
मोदी बनाम अखिलेश की लड़ाई : पूर्वांचल में पार्टी द्वारा मोदी की लोकप्रियता और क्षेत्र के विकास को मुद्दा बनाया जाएगा। काशी और गोरखपुर में मोदी की लोकप्रियता के मद्देनजर विकास के मुद्दे को भुनाया जाएगा। मोदी वाराणसी से सांसद भी हैं। पार्टी के गोरखपुर क्षेत्र के अध्यक्ष उपेन्द्र शुक्ल ने बताया कि दोनों रीजनों में विधानसभा की कुल 130 सीटें हैं। 
 
पार्टी मुलायम सिंह यादव के लोकसभा क्षेत्र आजमगढ़ में विकास की खराब हालत की तुलना मोदी के क्षेत्र वाराणसी से करेगी। पूर्वांचल की हालत थोड़ी विचित्र भी है, क्योंकि महंत आदित्यनाथ के प्रभाव के कारण बीजेपी हमेशा गोरखपुर क्षेत्र में मजबूत रही है, जबकि काशी रीजन में वह कमजोर थी। दोनों इलाकों में गैर-यादव ओबीसी की बड़ी मौजूदगी (34 फीसदी आबादी) है, जिस पर बीजेपी की नजर है। 
 
बीजेपी ने पूर्वांचल से इसी समुदाय के एक खास नेता और बहनजी के पूर्व विश्वस्त केशव प्रसाद मौर्य को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया है। उनका कहना है कि मोदी के वाराणसी से चुनाव लड़ने से कहानी बदल गई है। पूर्वांचल में विकास की भूख है और लोगों को यह पता है कि सिर्फ मोदीजी ही इसे पूरा कर सकते हैं।
 
बुंदेलखंड से भी उम्मीद : बीजेपी को बुंदेलखंड के साथ कानपुर रीजन में भी शानदार प्रदर्शन की उम्मीद है। बीजेपी के कानपुर रीजन के अध्यक्ष मानवेंद्र सिंह का कहना है कि समाजवादी पार्टी यहां पानी की कमी और अवैध माइनिंग जैसे मुद्दों से निपटने में नाकाम रही है। गैंगस्टर अतीक अहमद को समाजवादी पार्टी ने कानपुर कैंट से टिकट दिया है। इसकी कीमत उन्हें चुकानी पड़ेगी। बुदेलखंड में भी सपा नेताओं की गुंडागर्दी कम नहीं रही है और इससे बहनजी के भक्त इस कमी को पूरा करते रहे हैं। 
 
बीच में है सबसे बड़ी चुनौती : 82 सीटों के साथ अवध के बड़े इलाके में 82 सीटें हैं और 65 सीटों वाला ब्रज क्षेत्र बीजेपी के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। इनमें से कई इलाकों में समाजवादी पार्टी की मजबूत पकड़ है। 2012 के विधानसभा चुनावों में पार्टी अवध रीजन की 82 सीटों में से सिर्फ 6 पर ही जीत हासिल कर पाई थी। 65 सीटों वाले ब्रज इलाके में बीजेपी यादवों के जुल्म का राग अलाप रही है। इस इलाके को लेकर भाजपा नेताओं का कहना है कि इसके तहत बदायूं और मैनपुरी जैसे इलाकों पर नेताजी के समाजवादी परिवार के 2 होनहार सांसदों (धर्मेंद्र यादव और तेज प्रताप यादव) जैसे समाजवादी पार्टी का दिल्ली में प्रतिनिधित्व करते हैं, जो लोगों की नजरों में असामाजिक तत्वों से कम नहीं हैं।

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