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ग़ालिब के मशहूर अशआर और उनका मतलब (2)

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शौक़ हर रंग रक़ीब-ए-सर-ओ-सामाँ निकला
क़ैस तस्वीर के परदे में भी उरयाँ निकल

इश्क़ किसी रंग में भी सामने आए साज़-ओ-सामान की उसको कोई परवाह नहीं होगी। यहाँ तक के मजनूँ की जो तस्वीर खींची जाती है वो भी उरयाँ, बरेहना यानी साज़-ओ-समान से बेनियाज़ होती है।

ज़ख़्म ने दाद न दी, तंगिएदिल की यारब
तीर भी सीना-ए-बिसमिल से पुरअफ़शाँ निकला

मेरा दिल छोटा था और उसमें ज़ख़्म बड़ा और उस पर ये भी ग़ज़ब हुआ के जब तीर को निकाला गया तो उसने भी अपने पर खोल दिए, इस तरह ज़ख़्म और बड़ा हो गया।

बू-ए-गुल, नाला-ए-दिल, दूद-ए-चिराग-ए-मेहफ़िल
जो तेरी बज़्म से निकला वो परेशाँ निकला

फूलों की ख़ुश्बू हो या आशिक़ के दिल का नाला या मेहफ़िल की शम्मा का धुआँ, जो कोई भी तेरी मेहफ़िल में जाता है वो वहाँ से परेशान होकर ही निकलता है।

दिल-ए-हसरत ज़दा था मायदा-ए-लज़्ज़त-ए-दर्द
काम यारों का बक़द्र-ए-लब-ओ-दनदाँ निकला

हसरतों से भरा हुआ मेरा दिल, दर्द की लज़्ज़त का बहुत बड़ा दस्तरख़्वान था। यार लोगों ने अपने होंट, अपने दाँतों के ज़र्फ़ के हिसाब से उस दर्द का ज़ाएक़ा चखा।

है नोआमूज़-ए-फ़ना, हिम्मत-ए-दुश्वार पसन्द
सख़्त मुश्किल है के ये काम भी आसाँ निकला

मेरी हिम्मत को मुश्किलें पसन्द थीं लेकिन वो नई होने के बावजूद फ़ना की दुश्वारियों से आसानी से गुज़र गईं। बता अब क्या करूँ? फ़ना से ज़्यादा और कौन सी मुश्किल मंज़िल तलाश करूँ कि तेरे हौसले पूरे हों।

दिल में फिर गिरया ने इक शोर उठाया ग़ालिब
आह! जो क़तरा न निकला था सो तूफ़ाँ निकला

पहले जब कभी हमने आँसू बहाए थे तो कोई बूँद दिल में रह गई थी अब उस इक बूँद ने तूफ़ान बरपा कर रखा है।

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