Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

वेलेंटाइन संत के बहाने मनाएं वसंत

हमें फॉलो करें वेलेंटाइन संत के बहाने मनाएं वसंत
webdunia

रीमा दीवान चड्ढा

ऋतुराज राज बसंत का आगमन ! आह कैसा अनोखा जीवन सुख है। पतझर की गहन नीरवता के बाद मीठे कंठ का सुरीला गायन। उदासी के सारे सूखे पत्ते नयी कोंपलों के आगमन से दूर छिटक गए हैं और ऋतुराज की तरह ,धरती की तरह ,जंगल की तरह ,फूल की तरह जीवन.....मुस्कुराने लगा है .सच ,अदभुत है ये जीवन का ऋतु चक्र और अद्भुत है ऋतु चक्र का यह वासंती उपहार .......
पेड़ की शाखों से नई कोंपलें फूट पड़ी हैं। टहनियों पर कलियां चटकने लगीं हैं। बागों में फूल गदराने लगे हैं, खेतों पर हरियाली मुस्कुराने लगी है, सरसों अपनी पीली चुनरिया लहराने लगी है, टेसू पलाश दूर से चमकने लगे हैं ....प्रियंवदा कोकिल कूकने लगी है .......प्रकृति के आंगन में बासंती बयार बहने लगी है....गली गली में लोगों की मुस्कान से फूटता उत्साह गीत कहता है सचमुच ऋतुराज बसंत आ गया है। 
 
ऋतुओं के देश भारत में ऋतुराज बसंत का आगमन !! वह देश जहां ऋतुओं के बदलने से जीवन के मायने बदल जाते हैं। जिस देश में धर्म,सभ्यता,लोक संस्कार और आध्यात्मवाद भी ऋतुओं से जुड़कर ही आकार ग्रहण करता है वहां रंगीले,मनभावन,मदन मित्र बसंत का आगमन नि: संदेह निराला पर्व होता है। इस उल्लासदायिनी ऋतु के आगमन से गमन तक का हर क्षण धरा के कण कण को खुशियों से सराबोर कर देता है। 
 
संसार भर में बसंत का मौसम उल्लास का काल माना जाता है। भारत के लिए तो यह उत्सवों के उत्सव का चरम का चरम आनंद है। ऋतु का परिवर्तित होना ,जड़ चेतन सबके अंतरतम में आनंद का शतदल प्रस्फुटित होना और उसपर मनुष्य के मदिर चित्त से निकली हुई कल्पनाओं का साकार होना .....एक अलौकिक सुख प्रदान करता है ...
 
अति प्राचीन काल से हमारे यहां बसंतोत्सव मनाने की परंपरा रही है....कभी अशोक दोहद के रूप में,कभी मदन देवता की पूजा के रूप में,कभी कामदेवायन - यात्रा के रूप में ,कभी आम्र तरू और माधवी लता के विवाह के रूप में ,कभी नवान्न खादनिका के रूप में,कभी अभ्यूब खादनिका तो कभी होली के हुड़दंग के रूप में ,कभी सरस्वती पूजा के रूप में तो कभी श्रीपंचमी के रूप में .....समूचा बसंत काल उत्सव का ही पर्याय नज़र आता है... 
 
प्राचीन काल का यह वसंत उत्सव ही आज की आधुनिक संस्कृति में प्रेमी दिवस वेलेंटाइन डे के रूप में मनाया जाता है। संत वेलेंटाइन के नाम पर हर वर्ष 14 फरवरी को प्रेम की अभिव्यक्ति के दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व दरअसल ल्यूपरकेलिआ के पैगन पर्व से जन्मा था। देवी फैबरूटा जूनो की उपासना में इसे विवाह योग्य युवक युवतियां मनाया करते हैं। 
 
मान्यता तो यह थी कि पक्षियों के जोड़े 14 फरवरी को बनेंगे और इन जोड़ों की तरह हर युवा दिल भी जुड़ेंगे ....नैरोविच की सड़कों पर आज भी 14 फरवरी को जगह-जगह लिखा मिलता है गुड मारोअ टू यू वेलेंटाइन और शाम को दिल के आकार के मीठे केक के साथ युवा स्वर गूंज उठते हैं..
यू विल बी माइन 
एंड आई विल बी दाइन 
एंड सो गुड मारो वेलेंटाइन
    
भारतीय सभ्यता में इसे बसंतोत्सव कहें या पाश्चात्य सभ्यता के अनुसार वैलेंटाइन डे वस्तुत: यह पर्व प्रकृति के परिवर्तन का द्योतक है जो यह बतलाता है कि धरती सूर्य से मिलने को उससे एकाकार होने को आतुर है और इसलिए प्रकृति के कण कण से संगीत फूट रहा है। ऋतु स्वयं छंद हो गई है और उसका प्रभाव इतना मादक है कि सारी प्रकृति खिल गई है ....
 
कविवर पद्माकर बसंत पर कहते हैं.....
 
कूलन में केलि में कछारन में कुंजन में।
क्यारिन में कलिन में कलीन किलकंत है।।
कहे पद्माकर परागन में पौनहू में।
पानन में पीक में पलासन पगंत है।।
द्वार में दिसान में दुनी में देस-देसन में।
देखौ दीप-दीपन में दीपत दिगंत है।।
बीथिन में ब्रज में नवेलिन में बेलिन में।
बनन में बागन में बगरयो बसंत है...।।
 
आप इस वेलेंटाइन डे पर अपने प्रियजनों को फूल भेजें या उपहार .....मूल स्वर है प्रेम ....प्रेम की अभिव्यक्ति का यह व्यापक आयोजन व्यर्थ नही है। 
समय के चक्र ने जीवन के मायने बदल दिए हैं। भारतीय संस्कृति शायद अपनी विरासत को ज़्यादा दिन तक सहेजकर चलना अब पसंद नहीं करती .अब यहां के उत्सव और त्योहार पूर्व की तरह नहीं मनाए जाते पर ह्रदय पर हाथ रख यदि हम सब अपने अंतरमन को टटोलें तो क्या सचमुच हमारे भीतर का अनुराग वसंत को नकार पाएगा ?? संवेदनाओं के धरातल पर अभी स्पंदन शेष है ......
 
देखिए.....ज़रा गौर से देखिए.......आज बसंत फिर हमारी देहरी तक आ पहुंचा है। कानों से सुनिए कोकिला अब भी कूक रही है.....वह देखिए धरती और सूर्य के प्रेम का उत्सव अब भी चल रहा है ......प्रेम ही जीवन का मूल स्वर है .....आत्मोत्सर्ग ही सुख का जन्मदाता है .......जीवन के इस महायज्ञ की महत्ता तभी है जब श्रम साधना से सत्य को निचोड़ लिया जाए और स्वयं को धरती की तरह उदार बना दिया जाए.....
webdunia
सृष्टि का यह इतना व्यापक आयोजन व्यर्थ नहीं है .....वसंत का आगमन केवल ऋतु का परिवर्तन ही नहीं है. वेलेंटाइन एक दिवस के रूप में नहीं एक विशेष दिवस के रूप में सचमुच विशेष है .....आइए......स्वागत करें इस प्यारी ऋतु का .......पूरी ऊष्मा ,पूरी ऊर्जा से ......प्रकृति के साथ यह पर्व मनाएं .......प्रेम की निर्मल,पावन अनुभूतियों को जीवन का आधार बनाएं........हंसे ,मुस्कुराएं ,खिलखिलाएं ..........जीवन को जीवंत बनाएं........

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

वेलेंटाइन डे पर कविता : वेलेंटाइन के मौसम में