वसंतोत्सव बनाम वेलेंटाइन डे!!!
खिलखिलाता वसंत आया है....
हे देवी, वसंत में खिली
लताओं से मंडित,
नाना कमलों से, हंसों की
मंडली से अलंकृत
मलय पवन से आंदोलित
सरोवर में सखियों के
मध्य क्रीड़ा करती हुई मां सरस्वती
तुम्हारा ध्यान करने से
ज्वरजनित पीड़ा दूर होती है।
- आनंद लहरी
वसंत इस एक सुकुमार शब्द के साथ ही ध्वनित होता है स्वर्णिम पीत आभा लिए जगमगाता उपवन, मां सरस्वती के आह्वान का अवसर और आम्र मंजरियों की नशीली रतिगंध का मौसम। ऋतुओं का यशस्वी राजा वसंत मानव-मन पर बड़ी कोमल दस्तक देता है। मन की बगिया में केसर, कदंब और कचनार सज उठते हैं, बाहर पलाश, सरसों और अमलतास झूमने लगते हैं। पछुआ के सर-सर स्पर्श से, खेतों में खर-खर उड़ते दानों और भूसे के स्वर से सहज ही वसंत मुस्कराने लगता है। एक महकता, मदमाता, मस्ती भरा मौसम वसंत कवियों की लेखनी में चपलता से आ बैठता है। यूँ तो हर मौसम एक कविता होता है। और वसंत प्रेम कविता।
'जब पलाश वन में दहके कोमल शीतल अंगारे
निशा टाँकती, सेमल के अंगों पर लाल सितारे
शाम सिन्दूरी याद दिलाती शाकुन्तल - दुष्यंत की
मन के द्वारे पर हौले से दस्तक हुई वसंत की।
- भगवत दुबे
वसंत मन में एक सुरुचिपूर्ण सौंदर्यबोध जगाता है। हवा के बदलते ही मन बदलने लगता है। सहसा राग-बोध उमड़ आता है। देवदारू वृक्ष की श्यामल छाया सघन हो उठती है। अंगूरों की लता रसमयी हो जाती है। अशोक अग्निवर्णी पुष्पों से लद जाता है। पत्तियों के रेशे-रेशे में हरीतिमा गाढ़ी होने लगती है। चारों तरफ नर्म भूरे अंकुर प्रस्फुटित होने लगते हैं और बैंगनी आभा लिए कोमल कोंपलें मुस्करा उठती हैं। एक अव्यक्त सुवासित गंध मन में एक पूरा सुनहरा मौसम खड़ा कर देती है।