मुझे तन चाहिए, ना धन चाहिए बस अमन से भरा यह वतन चाहिए जब तक जिंदा रहूं, इस मातृ-भूमि के लिए और जब मरूं तो तिरंगा ही कफन चाहिए

कभी वतन के लिए सोच के देख लेना, कभी मां के चरण चूम के देख लेना, कितना मजा आता है मरने में यारों, कभी मुल्क के लिए मर के देख लेना...

मैं भारतवर्ष का हरदम अमिट सम्मान करता हूं यहां की चांदनी, मिट्टी का ही गुणगान करता हूं मुझे चिंता नहीं है स्वर्ग जाकर मोक्ष पाने की तिरंगा हो कफन मेरा, बस यही अरमान रखता हूं

ज़माने भर में मिलते हैं आशिक कई, मगर वतन से खूबसूरत कोई सनम नहीं होता, नोटों में भी लिपट कर, सोने में सिमटकर मरे हैं शासक कई, मगर तिरंगे से खूबसूरत कोई कफ़न नहीं होता

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सीने में जुनूं, आंखों में देशभक्ति की चमक रखता हूं, दुश्मन की सांसें थम जाए, आवाज में वो धमक रखता हूं

लिख रहा हूं मैं अंजाम, जिसका कल आगाज आएगा मेरे लहू का हर एक कतरा, इंकलाब लाएगा मैं रहूं या न रहूं पर, ये वादा है मेरा तुझसे मेरे बाद वतन पर मरने वालों का सैलाब आएगा

हम अपने खून से लिक्खें कहानी ऐ वतन मेरे करे कुर्बान हंस कर ये जवानी ऐ वतन मेरे

इमली का पानी गर्मी में देगा शक्ति और नमी

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