देव उठनी एकादशी के दिन शुभ मुहूर्त में तुलसी विवाह का आयोजन किया जाता है। जानिए विधि।
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तुलसी माता की ओर से महिला और शालिग्राम जी की ओर से पुरुष वर्ग एकत्रित होते हैं। हालांकि कोई भी वर या वधु पक्ष से हो सकता है।
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शाम के समय सारा परिवार इसी तरह तैयार हो जैसे विवाह समारोह के लिए होते हैं।
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तुलसी का पौधा एक पटिए पर आंगन, छत या पूजा घर में बिलकुल बीच में रखें। तुलसी के गमले के ऊपर गन्ने का मंडप सजाएं।
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तुलसी देवी पर समस्त सुहाग सामग्री के साथ लाल चुनरी चढ़ाएं। गमले में सालिग्राम जी रखें।
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शालिग्राम जी पर चावल नहीं चढ़ाते हैं। उन पर तिल चढ़ाई जा सकती है। तुलसी और शालिग्राम जी पर दूध में भीगी हल्दी लगाएं।
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गन्ने के मंडप पर भी हल्दी का लेप करें और उसकी पूजा करें। अगर हिंदू धर्म में विवाह के समय बोला जाने वाला मंगलाष्टक आता है तो वह अवश्य करें।
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अत: भाजी, मूली़, बेर और आंवला जैसी सामग्री पूजन में चढ़ाई जा सकती है।
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कपूर से आरती करें और यह मंत्र बोलें (नमो नमो तुलजा महारानी, नमो नमो हरि की पटरानी)
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तुलसी और शालिग्राम को खीर और पूड़ी का भोग लगाएं। 11 बार तुलसी जी की परिक्रमा करें। प्रसाद को मुख्य आहार के साथ ग्रहण करें वितरण करें।
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प्रसाद बांटने के बाद सभी सदस्य एकत्रित होकर भोजन करते हैं। तुलसी जी का विवाह विशेष मंत्रोच्चारण के साथ करना चाहिए।
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