ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा के दिन वट सावित्री का व्रत रखकर पूजा करते हैं, जानिए कैसे करें पूजा।
इस दिन बरगद का पूजन होता है। इस व्रत को स्त्रियां अखंड सौभाग्यवती रहने की मंगलकामना से करती हैं।
प्रातःकाल घर की सफाई कर नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नान करें। तत्पश्चात पवित्र जल का पूरे घर में छिड़काव करें।
इसके बाद बांस की टोकरी में सप्त धान्य भरकर ब्रह्मा की मूर्ति की और उनके वाम पार्श्व में सावित्री की मूर्ति स्थापित करें।
इसी प्रकार दूसरी टोकरी में सत्यवान तथा सावित्री की मूर्तियों की स्थापना करें। इन टोकरियों को वट वृक्ष के नीचे ले जाकर रखें।
इसके बाद ब्रह्मा तथा सावित्री का पूजन करें। तत्पश्चात सावित्री तथा सत्यवान की पूजा करके बड़ की जड़ में पानी दें।
पूजा में जल, मौली, रोली, कच्चा सूत, भिगोया हुआ चना, फूल तथा धूप का प्रयोग करें।
जल से वटवृक्ष को सींचकर उसके तने के चारों ओर कच्चा धागा लपेटकर तीन बार परिक्रमा करें।
अंत में सत्यवान सावित्री की कथा सुनें। पूजा समाप्ति पर ब्राह्मणों को वस्त्र तथा फल आदि वस्तुएं बांस के पात्र में रखकर दान करें।
दान में सूती वस्त्र, मटकी, सुराही, कलश या अन्य पात्र, पंखा या छाता, रसीले फल- तरबूज, नारियल, संतरा, खीरा आदि, शीतल जल, सत्तू आदि दान दें।
सुहाग के व्रत वट सावित्री पर्व की शुभकामनाएं
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