Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

बदलने लगी है भूरी की दुनिया

हमें फॉलो करें बदलने लगी है भूरी की दुनिया
- स्‍वाति‍ शैवाल

ND
सुबह के ठीक साढ़े पाँच का वक्त है और शहर के एक छोर पर स्थित उस छोटी-सी... बस्ती में सुगबुगाहट शुरू हो चुकी है। कई महिलाएँ तथा बच्चियाँ "काम" पर निकलने की जुगाड़ में हैं। इसी पूरी भीड़ में एक चेहरा है 'भूरी' का भी। लगभग 45 साल की बेहद दुबली लेकिन सधी काया... और तने हुए चेहरे के साथ वह भी निकल पड़ी है।

कुछ घरों में बर्तन, झाड़ू, पोंछा और उसके बाद कुछ घरों में जच्चा-बच्चा की मालिश का काम...। उसके पास कोई साधन तो है नहीं, इसलिए पैदल ही हर कॉलोनी तक जाना-आना है। 13-14 साल की उम्र में शादी के बाद शहर आई भूरी के पास अब तक अनुभवों का पिटारा इकट्ठा हो चुका है... साथ ही 6 लड़कियों का कुनबा भी।

जी हाँ, बाकी औरतों की ही तरह उससे भी एक अदद वारिस की अपेक्षा तो समाज की पहली शर्त थी ही... इसी चक्कर में ये 6 लड़कियाँ घर में आ गईं और लंबा तथा कठिन शारीरिक एवं मानसिक संताप सहने के बावजूद भूरी इस सारी प्रक्रिया का हिस्सा बनने से खुद को रोक नहीं पाई। परिवर्तन का पहला कदम उसने उठाया छठी बेटी के जन्म के बाद... जब उसकी सहनशीलता का घड़ा पूरी तरह भर गया।

उसे मालूम था कि उसकी स्थिति में दो बच्चों का पालन-पोषण भी कितना कठिन होगा... उस पर छः-छः... इसलिए छठी बेटी के बाद उसने खुद ही अपने ऑपरेशन का निर्णय ले लिया और बात को थोड़ा समझते हुए पति ने भी साथ दे ही दिया, क्योंकि अब भी घर की कमाई का बड़ा हिस्सा भूरी ही ला रही थी।

खैर... बीते 19 सालों में भूरी की जिंदगी में और भी परिवर्तन आए हैं। पति के एक आम 'शौक' पर कुछ शर्तें लागू करवाकर उसने उसे कमाने को प्रेरित किया। जिन घरों में वह काम करती थी उनसे सीखकर बैंक में खाता खोला, बच्चियों को पढ़ने के लिए स्कूल में डाला और अपनी एक बेटी को शहर से दूर एक शासकीय बोर्डिंग स्कूल में डाला।

आज भूरी के घर में सामान्य सुविधाएँ हैं। उसकी एक बेटी इस साल दसवीं की परीक्षा प्राइवेट परीक्षार्थी के रूप में देगी और बाकी की बेटियाँ भी छोटी कक्षाओं में पढ़ रही हैं। दूसरे नंबर की बेटी का मन पढ़ाई में नहीं लगा तो उसने उसे कोई और प्रोफेशनल कोर्स करवाने का निश्चय किया है। बड़ी दो बेटियों की शादी अलग-अलग गाँवों में हो चुकी है और इससे भूरी खुश भी है, क्योंकि बेटियों को अच्छा घर मिला है।

webdunia
ND
खुद भूरी के शब्दों में- 'बई... सर्मिला (बड़ी बेटी) का ससुर नी ओका कह्‌यो कि तू आगे भणवा (पढ़ने) बंद मत कीजे। नी वा तो उनि ए सरपंच का लाने चुनाव मा खड़ा करेगा।' भूरी ने फिलहाल अपनी दूसरी बेटी की शादी इसी शर्त पर की है कि उसके ससुराल वाले गौने की जल्दी नहीं करेंगे। इस बारे में वह कहती है- 'ओ बई... अभी वा 18 की नी हुई। एक साल पाछे भेजूँगा वणीने सासरे।

जब तक छोरी म्हारे कने रेगी। म्हने जो भुगत्यो वा म्हारी छोरी पे नी आन दूँगा। याँ भणेगी तो ठीक नी तो कोई और काम सिखा दूँगा उनीके।'

हालाँकि अब भूरी की सबसे छोटी बेटी को छोड़कर बाकी सभी समझदार हो चुकी हैं और लगभग सभी उसके काम में भी हाथ बँटाती हैं लेकिन इसके कारण उन्हें पढ़ाई छोड़ने की इजाजत नहीं है। भूरी खुद जानती है कि यह थोड़े दिनों की मजबूरी है। घर चलाने के लिए कुछ हाथ, साथ दें तो बुराई ही क्या है।

पर हाँ, लड़कियों का भविष्य उसके जैसा नहीं हो, इसके लिए वह पूरी कोशिश कर रही है। जिन घरों में वह काम करती है वहाँ से बहुत कुछ सीखकर अपने जीवन में उतारने को तत्पर भी रहती है। पिछले ही दिनों उसने एक घर से पुराना ओवन किस्तों पर उठाया और बाकायदा सीखकर अपने बच्चों को केक बनाकर भी खिलाया।

उसकी बेटियों के पास पतियों द्वारा गिफ्टकिए हुए मोबाइल फोन्स हैं जिनपर वे हँस-हँसकर और शर्माकर बातें करती हैं। लड़के-लड़की में भेद मानना भूरी ने अब छोड़ दिया है और अपनी बेटियों को गलत हालात से लड़ना भी सिखाया है।

भूरी और उसके जैसी कई महिलाओं की स्थिति में तेजी से परिवर्तन आया है। पिछले एक दशक में ही ये महिलाएँ आर्थिक तौर पर भी और मजबूत हुई हैं और सामाजिक तौर पर भी। इनकी आँखों में भले ही बहुत भव्य सपने नहीं पल रहे हों लेकिन अपने से एक दशक पुरानी पीढ़ी से ये हर मामले में बहुत आगे हैं। भारत की तंग बस्तियों में रह रही इस आधी आबादी को अब आप उतना पिछड़ा नहीं कह सकते।

उन्हें अपने रास्ते तलाशना आ गया है। यह सच है कि भूरी के नन्हे कदम कोई बड़ी क्रांति नहीं रहे, लेकिन उस क्रांति के बीज तो हैं... उसके इरादे और सोच भले ही किसी महान पुरस्कार की हकदार न हो, न ही उसके सम्मान में किसी बड़े एनजीओ द्वारा आयोजित समारोह में तालियाँ पीटी जाएँ, लेकिन ऐसे किसी समारोह की नींव में तो वह जिंदा रहेगी ही...।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi