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विवाह हेतु जासूसों की मदद कितनी उचित?

हमें फॉलो करें विवाह हेतु जासूसों की मदद कितनी उचित?

गायत्री शर्मा

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'सर्तकता में ही सुरक्षा' यह बात कल तक कायदे-कानून व अधिकारों के परिप्रेक्ष्य में की जाती थी परंतु अब यही बात विवाह के विषय में भी दोहराई जाती है। क्योंकि आज के दौर में विवाह करना भी किसी जुआ खेलने से कम रिस्की नहीं है। जिसमें जीत की रकम जीवनभर की खुशियाँ हैं और हार की रकम जीवनभर का पछतावा।

आधुनिकता की आँधी में बहकर आज जिस तरह से हमने अपने संस्कार व मान-मर्यादा का परित्याग कर दिया है, उसी तरह से हमने 'लिव इन रिलेशनशिप' व 'समलैंगिक संबंधों' जैसे रिश्तों को अपनाकर 'विवाह' की पवित्रता को भ‍ी चुनौती दे दी है। यही कारण है कि आजकल प्रेम विवाह, लिव इन रिलेशनशिप, समलैंगिक और तलाक जैसे संबंध सामान्य हो गए हैं।

समाज में संबंधों के विघटन ने ही वर्तमान में 'डिटेक्टिव एजेंसियों' की महत्ता को बढ़ा दिया है। महानगरों में तो वक्त बचाने व जानकारियाँ जुटाने के लिए जासूसों का ही सहारा लिया जाता है, जो आपको घर बैठे जानकारियाँ लाकर देते हैं। इन्फॉर्मेशन के मामले में जासूसों की विश्वसनीयता को देखते हुए आजकल विवाह से पूर्व भावी वर-वधुओं के चाल-चलन के बारे में पता करने के लिए भी इन्हीं जासूसों का सहारा लिया जा रहा है।

रिश्ते की बुनियाद, प्रेम और विश्वास :
हर रिश्ते की बुनियाद प्रेम और विश्वास पर रखी जाती है। कोई भी रिश्ता टूटने या तोड़ने की मंशा से नहीं बनाया जाता है, बल्कि जीवनभर निभाने के लिए कायम किया जाता है। 'विवाह' भी एक ऐसा ही बंधन है, जो दो स्त्री-पुरुष में पति-पत्नी के संबंधों का सृजन करता है। यदि इस संबंध में विश्वास और प्रेम को सात जन्मों तक बनाए रखना हो तो क्यों न इस रिश्ते में बँधने से पहले अपने भावी जीवनसाथी के बारे में गहराई से खोजबीन कर सोच-विचार किया जाए?

किसी के बारे में खोजबीन करने की हमारी इसी जिज्ञासा ने जासूसों के कार्य को सक्रियता प्रदान की। यही कारण है कि कल तक चोर, डकैतों व आतंकवादियों की गतिविधियों की जानकारी जुटाने वाले जासूस अब किसी के पति, प्रेमिका, दोस्त, बहन, भाई या बेटी के चरित्र की 'डिटेल्स' एकत्र करने में लग गए हैं।

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बाद में पछतावा नहीं :
आधुनिक युग में जहाँ हम बड़ी ही शीघ्रता से मॉर्डन जीवनशैली को अपना रहे हैं, वहीं हम रिश्तों की अहमियत को भी दरकिनार करते चले जा रहे हैं। यही कारण है कि अब विवाह भी हम अपनी मर्जी से करते हैं और तलाक भी अपनी ही मर्जी से लेते हैं। कल तक जिस 'तलाक' शब्द पर समाज अँगुलियाँ उठाता था और परिवारों को जोड़ने की कवायद में लग जाता था, वहीं 'तलाक' आज हमारे कानों में सुनाई देने वाला जाना-पहचाना शब्द बन गया है।

शादी के बाद पति-पत्नी या दो परिवारों के बीच किसी भी तरह का मनमुटाव न हो तथा किसी भी पक्ष को विवाह के अपने फैसले पर पश्चाताप न हो, इस हेतु विवाह से पूर्व ही वर-वधु के चाल-चलन के बारे में जानकारियाँ खंगालना आवश्यक हो जाता है। ताकि रिश्ते की शुरुआत ही विश्वास की दृढ़ नींव पर हो।

जासूसों की नजर है आप पर :
विवाह पूर्व लड़के या लड़की के बारे में विस्तार से पता करने के लिए जासूसों से उनकी 'चारित्रिक कुंडली' की पड़ताल करवाई जा रही है। इन जासूसों का नेटवर्क देश-विदेशों तक फैला होता है। एक मोटी रकम के बदले में ये लोग किसी भी व्यक्ति के क्रियाकलापों व चाल-चलन का खुला-चिट्ठा लाकर आपके सामने रख देते हैं।

गोपनीयता इन जासूसों के काम की पहली शर्त होती है, जिसका पालन ये काम पूरा होने तक बखूबी करते हैं। हो सकता है कि आपके आसपास भी कोई ऐसा जासूस घूम रहा है, जो आप पर नजर रखे हो। वह कब, कहाँ, किस रूप में आपके सामने प्रकट हो जाए, कोई नहीं कह सकता। इसलिए जरूरत है इन गुप्तचरों से सतर्क रहने की।

हर काम में किराए के जासूस :
व्यापार-व्यवसाय व रिश्तेदारी तथा पार्टनरशिप के काम में विश्वसनीयता की जाँच करने के लिए इन्हीं जासूसों का सहारा लिया जाने लगा है। यही कारण है कि कल तक इक्के-दुक्के व्यक्तियों द्वारा किया जाने वाला कार्य आज बड़ी-बड़ी डिटेक्टिव एजेंसियाँ कर रही हैं, जिनमें हजारों जासूस दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में फैलकर जानकारियाँ जुटा रहे हैं।

विवाह में जासूसी कितनी उचित :
‍'विवाह' एक पवित्र रिश्ता है, जिसकी बुनियाद बहुत मजबूत होती है। हाँ, यह जरूरी है कि इस बंधन में बँधने से पूर्व दोनों पक्षों की सहमति और संतुष्टि की मुहर लगना आवश्यक है किंतु इसका यह मतलब नहीं है कि किसी की जानकारियाँ निकालने के लिए उससे पीछे जासूस ही लगा दिए जाएँ।

'किराए के जासूसों' को किसी लड़के या लड़की के पीछे लगाने में फायदा कम और नुकसान अधिक है। हमेशा याद रखें कि रिश्तों की डोर प्रेम और विश्वास के रेशम से बुनी जाती है, अविश्वास व शक के कच्चे धागों से नहीं। आपको किसी के बारे में जो कुछ भी जानना है, उसकी जानकारी स्वयं उससे लें, न कि किसी जासूस से। ऐसा करने से आपका रिश्ता मजबूत व चिरायु बनेगा क्योंकि इससे आप दोनों एक-दूसरे के सच-झूठ व सुख-दुख के साक्षी होंगे, कोई तीसरा नहीं।

हर किसी का एक अतीत होता है लेकिन अतीत की कालिमा की छाया उसके वर्तमान और भविष्य पर ग्रहण लगाएँ ऐसा जरूरी तो नहीं इसलिए किसी भी रिश्ते की शुरुआत से पूर्व अतीत-वर्तमान के बारे में जासूसों से जानने के बजाय भावी साथी से ही सुनना ज्यादा बेहतर है। जिंदगी आगे बढ़ने का नाम है न कि शक की जंजीरों में उलझकर पीछे रह जाने का। निर्णय आपका है आप किसका चयन करते हैं जासूस का या एक अटूट विश्वास का।

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