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प्यार का विरोध कब तक ?

दोष नजरों का है नजारे का नहीं

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गायत्री शर्मा

WDWD
'दृष्टि अच्छी तो सृष्टि भी अच्छी' यह बात हम सभी पर भी लागू होती है। हम दुनिया को जिस नजर से देखते हैं, हमें दुनिया वैसी ही नजर आती है। किसी को पानी से भरा गिलास आधा भरा नजर आता है तो किसी को आधा खाली। उसी प्रकार सारा दोष हमारी नजरों का है नजारे का नहीं।

सड़कों पर एक-दूसरे का हाथ पकड़कर घुमते लड़के-लड़कियों को देखकर अक्सर हममें से हर कोई यह सोचता होगा कि ये तो प्रेमी जोड़े हैं, जो बेशर्म होकर सड़कों पर घुमकर समाज को अपने रंग में ढालने की कोशिश कर रहे हैं। फिर चाहे वह भाई-बहन या पति-पत्नी ही क्यों न हो परंतु हमारी दृष्टि ने तो उन्हें प्रेमी युगल ही समझकर उन पर छींटाकशी की।

  प्यार तो मानव की भावनाओं की अभिव्यक्ति है। जब तक यह विरोध होता रहेगा तब तक प्रेमियों को अपने प्यार की कीमत अपनी जान देकर या परिवार से नाता तोड़कर चुकानी पड़ेगी।      
यही कारण है कि वेलेंटाइन डे के दिन सड़कों पर घूमते हर लड़के-लड़की हमें प्रेमी ही नजर आते हैं और उसी रूप में उनकी छवि बनाकर बगैर किसी कसूर के उनकी पिटाई कर दी जाती है। आखिर ये प्रथा कब तक बदस्तूर चलती रहेगी और हमारे समाज में प्रेमी बदनाम होते रहेंगे?

कई बार समाज के ठेकेदार अपने इसी दृष्टिदोष के कारण अपने प्यार करते पति-पत्नी को भी नहीं बख्शते हैं और उन्हें भी हवालात तक पहुँचा देते हैं। आखिर कब तक ये जोर-अजमाइश चलती रहेगी और प्यार का विरोध होता रहेगा?

आखिर प्यार करना कोई गलत काम तो नहीं है। क्या प्यार उसी का नाम है, जो केवल घर की चहारदीवारी में ही कैद रहें। प्यार तो उन्मुक्त है, जो नफरत को मिटाता है व एक सुगंध की तरह वातावरण में फैलकर माहौल को खुशनुमा बनाता है।

प्यार तो मानव की भावनाओं की अभिव्यक्ति है। जब तक यह विरोध होता रहेगा तब तक प्रेमियों को अपने प्यार की कीमत अपनी जान देकर या परिवार से नाता तोड़कर चुकानी पड़ेगी। इस परिवेश को बदलने के लिए हमारे समाज को अपनी संकुचित विचारधारा के दायरे से बाहर निकलकर समाज को एक नई दृष्टि से देखना होगा। जब हम दुनिया को प्यार की नजरों से देखेंगे तब हमें हर नजारा खूबसूरत लगने लगेगा।

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