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वह भारत की संस्कृति के दर्शन के लिए आई थी...

हमें फॉलो करें वह भारत की संस्कृति के दर्शन के लिए आई थी...
प्र‍ीति सोनी 
 
क्या हो रहा है हमारे देश में? कहां जा रहा है समाज? कहां जा रही है संस्कृति ? और कहां गई वह सभ्यता जिससे भारत पहचाना जाता है.. वही संस्कृति और सभ्यता जिसकी महक से आकर्षित होकर पश्चिम देशों के अतिथि आज भी यहां आते हैं और यहां आकर जो पाते हैं वह हमें गर्व से सर ऊपर करने के बजाय शर्म से पानी कर देता है।


 
भारत यात्रा पर आई ब्रिटिश महिला लुसी हेमिंग्स के साथ मुंबई में यही तो हुआ... जब वह अपने मन में भारत के प्रति आदर भाव लेकर उत्सुकता भरी आंखों से भारत की परंपरा-संस्कृति-सभ्यता के दर्शन करने यहां आई थी उसे याद रही यहां की पारंपरिक भव्यता जो अतिथि देवो भव के शब्दों में झलकती थी लेकिन हम भूल गए कि हमारे देश में अतिथि को देवता माना जाता है। उसका सत्कार किया जाता है न कि पशुओं की तरह बर्ताव... पाश्चात्य संस्कृति में रची-बसी लूसी कभी अपने देश में भी इस तरह भयभीत नही हुई होगी जितनी वह मुंबई के बस स्टॉप पर निकृष्टतम मानवीय कृत्य को देखकर हुई। 
 
लुसी की तीन महीने की भारत यात्रा में उसके मीठे अनुभवों पर भारी पड़ गया एक कड़वा अनुभव जो उसे कुछ दिन तक सदमे से बाहर नहीं निकाल पाया। वह अपने आसपास के लोगों से बात करने यहां तक कि उनकी तरफ देखने से भी घबराने लगी और आखिरकार इन सारे बुरे अनुभवों की कहानी उसने अपने ब्लॉग पर जाहिर की। 
 
देश का नाम कितना बढ़ा या कितना घटा यह तय करने वाला हर भारतीय है....हम कैसे बताएं उस विदेशी महिला को, कि जहां महिलाएं खुद अपने घर में सुरक्षित न हों वहां तुम अकेली बस स्टॉप पर कैसे आ सकती हो?
 
यहां हर कोई जानता है अतिथि देवो भव का मतलब... लेकिन तुम ठहरी एक औरत, जहां किताबों व कहानियों में देवी का दर्जा देकर घर के बाहर निकलते ही गली-मोहल्लों-चौराहों-बाजारों में औरत को मनोरंजन या अपनी कुंठित मानसिकता को तृप्त करने का साधन मात्र माना जाता हो वहां तुम तो पूरा देश घूमने निकली थीं...  
 
कैसे कहा जाए कि हमें शर्म है उस पर जो तुम्हारे साथ हुआ, जबकि हम खुद को घृणित विचारों के छीटों से बचा नहीं पाते... लेकिन फिर भी हम माफी मांगते हैं उस इंसान और पूरे देश की तरफ से क्योंकि हम भारतीय हैं   और यह देश हमारा घर है। 
 
तुम्हारे साथ यहां बरताव कुछ भी हो , लेकिन कागजों पर तुम देवी ही कहलाओगी। यही हमारी मानसिकता है। निर्भया भी इसी देश की थी और अरुणा शानबाग भी लेकिन यह भी सच है कि नारी सम्मान भी इसी संस्कृति का हिस्सा है और यहां हुए तुम्हारे अनुभवों की अभिव्यक्ति के बाद हम यकीन दिलाते हैं कि अगली बार तुम इस संस्कृति को जी सकोगी... 


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