प्रखर मुख्यमंत्री की सघन छांव तले मध्यप्रदेश की महिलाएं सुरक्षा को लेकर कभी उतनी चिंतित नहीं थी जितनी आज दिखाई दे रही है। मुख्यमंत्री जी से शायद आज भी उन्हें कोई व्यक्तिगत शिकायत नहीं है। ना ही उनकी प्रतिबद्धता पर कोई शंका, लेकिन जब अपनी ही धरती पर अपनी ही आबरू कलंकित हो जाए तो भला न्याय की गुहार लेकर वे किसके पास जाएं?
सवाल तब और गहन हो जाता है जब बड़े-बड़े मंचों से माननीय मंत्री जी सरकार की तरफ से मनभावन योजनाओं का गुणगान करते हैं। इस बानगी से शुरुआत करते हैं:
''मध्यप्रदेश में हर दिन महिला दिवस होगा। विकास की पहली शर्त महिलाओं का सम्मान है। वह परिवार, समाज, प्रदेश और देश कभी प्रगति नहीं कर सकता जहां पर महिलाओं का आदर नहीं होता है। प्रदेश को इस बात का गर्व है कि यहां पर बिना किसी भेदभाव के हर दिन, हर पल माताओं, बहनों और बेटियों के विकास के प्रयास हो रहे हैं।''
मध्यप्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री श्री शिवराजसिंह चौहान ने यह बात प्रदेश सरकार की तरफ से 2011 के 8 मार्च को भोपाल स्थित समन्वय भवन में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में कही थी। आइए अब 8 मार्च 2014 के आते-आते स्थितियों का मुआयना करते हैं।
लगातार होते गैंग रेप, छेड़छाड़ की निरंतर बढ़ती घटनाएं, दिन प्रति दिन असुरक्षित होता मध्यप्रदेश। बेटमा सामूहिक बलात्कार, देपालपुर मूक-बधिर महिला से बलात्कार, इंदौर के समीप गैंग रैप जैसे किस्सों ने हर आठ दिन के अंदर इसी मध्यप्रदेश में दस्तक दी है।
विश्व महिला दिवस पर मुख्यमंत्री जी ने यह भी कहा था कि वे माता, बहनों और बेटियों के चेहरे पर आंसू नहीं मुस्कान बिखेरने को संकल्पित है। यह उनका मिशन है कि माता-पिता के लिए बेटियां बोझ नहीं रहें। इसीलिए जन्म से लेकर अंतिम संस्कार तक के सभी शुभ-अशुभ अवसरों और जिम्मेदारियों में सरकार महिलाओं के साथ है। इतने महिला दिवस के आने तक मुख्यमंत्री कटघरे में खड़े बस यह कहते दिखाई दिए कि दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा।
मुख्यमंत्री जी ने पिछले महिला दिवस पर गिनाया था कि जन्म लेने वाले बच्चों में कन्याओं की संख्या बढ़ रही है। मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में कमी आई है। संस्थागत प्रसव की दर जो पहले प्रति 100 पर मात्र 24 थी अब बढ़कर 81 हो गई है। पंचायत और नगरीय निकायों में 56 प्रतिशत महिला प्रतिनिधि है।
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प्रदेश में योजना अंतर्गत 6.56 लाख बेटियों को लाड़ली लक्ष्मी बनाया जा चुका है। लाड़ली लक्ष्मी योजना पर साल में करीब 430 करोड़ रूपए व्यय किए गए। लाड़ली लक्ष्मी योजना के बाद मध्यप्रदेश सरकार ने बड़े-बड़े होर्डिंग्स से लेकर रिक्शा जैसे छोटे वाहनों तक में 'बेटी बचाओ अभियान' का बिगुल बजाया। लेकिन नग्न हकीकत के झटकों के समक्ष प्रदेश सरकार बेबस नजर आई।
विडंबना देखिए कि मुख्यमंत्री जी सारे प्रदेश की कन्याओं से 'मामा' कहलाया जाना पसंद करते हैं। कन्यादान की रस्मों में बढ़-चढ़ कर भाग लेते हैं वही मामा अब अपने ही प्रदेश में अपनी भांजियों की अस्मत लूटे जाने पर कोई ठोस कदम नहीं उठा पा रहे हैं।
शिवराज मामा, जो हर जन-मंचीय कार्यक्रमों में किसी छोटी कन्या को गोद में लेना नहीं भूलते, उनके बीच जाकर ठहाका लगाना नहीं भूलते और उनके लिए आरंभ लुभावनी लोकरंजक लाड़ली लक्ष्मी योजना के गुणगान करना कहीं भूलते वही मामा अब अपने ही इलाके में अपनी 'भांजियों' के साथ हुए अन्याय पर मुस्तैदी से सामने नहीं आ पा रहे हैं।
क्या सच में प्रदेश में महिलाओं की सुरक्षा का घेरा टूटा है या फिर ऐसा कोई घेरा कभी था ही नहीं?
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मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की जनमानस में बैठी उज्ज्वल-स्वच्छ छवि हमें बाध्य करती रही है कि महिलाएं उनसे अपनी सुरक्षा और सम्मान को बचाए रखने की आस लगाए। शिवराज महज 'नेता' होते तो शायद हम ऐसा कोई जोखिम ना उठाते लेकिन वे 'मामा' हैं प्रदेश की बच्चियों के और 'भाई' हैं प्रदेश की महिलाओं के इसलिए यह सहज अपेक्षा थी कि वे ऐसी कोई वारदात नहीं होने देंगे और अगर हुई तो न्याय के लिए तत्पर दिखाई देंगे।
लेकिन हुआ क्या? ना तो मामा के राज में भांजियां सुरक्षित रहीं ना ही न्याय के लिए मामा बेकल दिखाई पड़े? भाई कहे जाने वाले 'प्रदेश प्रमुख' से प्रदेश की बहनें मात्र 'सुरक्षा' का नैसर्गिक अधिकार मांग रही है और मामा उपलब्ध ही नहीं है। क्या मुख्यमंत्री के लिए 'रक्षा का सूत्र' बस बांध कर खोलने के लिए था या उस नाजुक धागे से नारी अस्मिता की कोई सौंगध भी लिपटी थी? महिला दिवस के अवसर पर प्रदेश की बहनें यही पूछ रही है।
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क्या भाई बने मुख्यमंत्री देंगे कोई जवाब? क्या इस बार मंच से वे अपने दावों और वादों की सच्चाई को बुंलदी से रख पाएंगे? मुख्यमंत्री जी, प्रदेश सरकार की तरफ से जवाब दीजिए...! पिछला महिला दिवस याद कीजिए और इस महिला दिवस पर महिला सुरक्षा का ठोस हिसाब दीजिए।