एक रिश्ता अपने आप से
क्या आपका है अपने आपसे रूहानी रिश्ता?
नारी। हां, मैं नारी हूं। किसी की पत्नी। किसी की बहू। किसी की बेटी, किसी की बहन, किसी की मां। किसी की ननद। किसी की भाभी। ना जाने कितने मीठे, मोहक रिश्तों को अपने आंचल में बांधे मैं ढूंढती हूं खुद को। मैं मिलती हूं खुद से। रिश्तों के इतने सुरीले-सुरम्य आंगन में खड़ी मैं बनाती हूं एक रिश्ता अपने आप से।
जी हां, मेरा एक रिश्ता और है और वह है मेरा मुझसे। खुद का खुद से। स्वयं का स्वयं से। अपना सबकुछ देने के बाद भी मैं बचा कर रखती हूं खुद को खुद के लिए। मैं नहीं भूलती उस खूबसूरत रिश्ते को जो मेरा मुझसे है।
यह रिश्ता मुझसे मेरा परिचय करवाता है। यही रिश्ता मुझे कहता है मुझमें ही झांकने के लिए। कितने मधुर सपने हैं मेरे भीतर जो साकार होने के लिए कसमसा रहे हैं। यह रिश्ता मुझे चुनौती देता है, ऐसा क्या है जो तुम नहीं कर सकती? फिर यही कहता है मुझसे-सब कुछ तो कर सकती हो।
यह रिश्ता मुझ पर मेरा विश्वास स्थापित करता है... और मैं जीत जाती हूं दुनिया की हर जंग। मैं अपने आप से लड़ती भी हूं, मैं अपने आप से प्यार भी करती हूं। मैं अपने आप का सम्मान करती हूं-यही रिश्ता बतलाता है मुझे। क्या आपका है अपने आपसे यह रूहानी रिश्ता? आज इस दिन बस यही कहना है ढेर सारे रिश्तों के बीच बनाएं एक गहरा रिश्ता अपने आप से