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महिला दिवस : हर घड़ी होती है परीक्षा की...

हमें फॉलो करें महिला दिवस : हर घड़ी होती है परीक्षा की...
- राजश्री कासलीवाल 


 

 
 
जिंदगी बहुत कशमकश में उलझी हुई हैं। रोजमर्रा की भागती-दौड़ती जिंदगी में और वह भी खासकर जब सिर्फ गृहिणी न होकर उसके साथ-साथ और भी कई जिम्मेदारियाँ हो और रोजमर्रा के जीवन में आने वाली हर छोटी-बड़ी समस्या। जिसे बिना निपटाएँ वह आगे नहीं बढ़ सकती। ऐसे समय उस नारी की सबसे कठिन परीक्षा की घड़ी होती है।
 
पहले घर, फिर ऑफिस, बाजार और फिर सामाजिक इन सब जिम्मेदारियों को निभाते-निभाते जब वह थक भी जाती है। तब भी वह ऊफ... तक नहीं करती। हर नारी करीब-करीब इसी तरह की समस्याओं में घिरी होती है। फिर भी उसके मन में कुछ करने की लगन, और कुछ नया-नया करने की चाह बनी रहती है। और होना भी यही चाहिए। क्योंकि हमें अपने आपको ऊर्जावान बनाए रखने के लिए यह सब बहुत जरूरी है।
 
लेकिन इतना सब करने के बाद भी परिवार वाले, समाज वाले नारी का महत्व कहाँ समझ पाए हैं। भले ही हम इस दिवस को अंतरराष्‍ट्रीय महिला दिवस के रूप में घोषित करें। नारी जाति कितने ही मैडल कमा लें लेकिन समाज और परिवार में आज भी नारी के खिलाफ होने वाले अत्याचार, साजिश सबकुछ जारी है।
 
आज भ‍ी महिलाओं पर अत्याचारों की श्रृंखलाएँ लदी हुई है। नारी भले ही कितनी ही पढ़ लिख जाए। थोड़े समय के लिए समाज का नजरिया उसके प्रति बदल भी जाएँ तब भी आज भी वह अत्याचारों के कैदखाने में बंद ही है। ऐसे कई उदाहरण आज रोजाना हमारी आँखों के सामने घूमते दिखाई देते हैं। जो दिखाई तो स्पष्‍ट रूप से देते है लेकिन फिर भी हम कुछ नहीं कर पातें।
 
जैसे कुछ समय पूर्व ही मैंने अपने एक आलेख के अंतर्गत‍ एक मीडि़या में अच्छी पोस्ट पर बैठी मेरी सहेली का जिक्र किया था कि किस तरह उसकी सास ने उसके पति को बरगला कर उससे (मेरी सहेली नीता से) 3-4 ब्लैंक चैक पर साइन ले लिए और उसकी बैंक की‍ अकाऊंट से उसे 10 से 11 लाख रुपए की चपत दे दी और वह भी मात्र इसलिए कि उनकी खुद की बेटी को मकान के लिए जमीन खरीदनी थी।
 
इतनी पढ़ी लिखी होने के बाद, किसी अच्छे ऑफिस में बड़ी पोस्ट पर बैठी होने के बाद भी वह नारी आज भी अपने खुद के घर में, खुद के परिवारजनों से ही ठगी गई। सास ने सारे पैसे निकालकर अपनी बेटी को दे दिए और डॉक्टर पति भी माँ के बहकावे में आकर कुछ नहीं कर पाया। जब कि वो कमाई उस लड़की की अपनी खुद की थी। और इतना सब होने के बाद भी उसे अपने पति को वापस पाने के लिए, और अपने 4 साल के बेटे के प्यार के खातिर अपनी हार मानकर चुप बैठना पड़ा और वह मात्र अपना मन मारकर रह गई.... कुछ भी नहीं कर पाई।
 
यह एक बहुत ही सच्चा किस्सा है। जो मेरी सहेली के साथ घटि‍त हुआ (नाम का जिक्र यहाँ नहीं कर रही हूँ) । आज वह जो मा‍नसिक त्रास झेल रह‍ी है। उससे उसके परिवारजनों को कोई फर्क नहीं पड़ता। ऐसे में नारी दिवस मनाना और एक दिन के लिए नारियों को खुश करके बाकी दिनों उन पर जुल्म करना, अत्याचार करना, तरह-तरह के उलाहने देकर जलील करते रहने कहाँ तक उचित है।
 
यहाँ मैं सिर्फ एक शादीशुदा बेटी या एक ‍महिला की बात नहीं कर रही हूँ। इसमें वो युवतियाँ, वो बच्चियाँ भी शामिल है जो रोजाना इन सब बातों का शिकार होती रहती है। और चाह कर भी वो फिर एक अबला नारी के रूप में उभर कर हमारे सामने आती है। और हम उसे असहाय नारी समझकर समाज की, परिवारजनों की तरफ से दी जाने वाली यातनाएँ झेलने के लिए छोड़ देते हैं।
 
लेकिन आखिर कब तक? चाहे वो अनपढ़ हो तब भी, कम पढ़ी-लिखी हो तब भी, और एक प्रोफेशनल नारी हो तब भी.....! यह नारियों के प्रति चलता आ रहा अन्याय का दौर कब खत्म हो पाएगा। पता नहीं?
 
नारी के लिए तो जन्म लेने से मृत्यु तक इसी सफर को तय करना होता है। उसके लिए हर दिन, हर पल, हर समय, हर साल, हर उम्र के बढ़ते उस दौर में भी परीक्षा की कठिन घड़ी होती है। जिससे मुकाबला करके उसे हर कदम आगे ही आगे चलना होता है। और हर परीक्षा को पार करके अपने जीवन की इस यात्रा को समाज, परिवार में सार्थक बनाना होता है। जय हो.... ऐसी नारियों की।
 
लेकिन ये पर‍ीक्षा की घड़ी से पार पाना इतना आसान नहीं होता फिर भी वह एक वीरांगना की तरह अपनी मुश्किलों को पीछे छोड़ते हुए कठिन परीक्षा की उस घड़ी से कुछ समय के लिए ही सही निजात पा लेती हैं। ऐसी दुनिया की सारी नारियों के प्रति मेरी प्रति मेरा मन शत् शत् नमन करने को करता है। फिर भी मैं उम्मीद करती हूँ कि एक न दिन नारी के प्रति बह रही इस धारा को थाह मिलेगी और हमारा महिला दिवस मनाना सही साबित होगा।
 
आप सभी को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की शुभकामनाएँ।

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