हां, मैं नारी हूं। मां, पत्नी, प्रेमिका, मित्र, बहू, बेटी, बहन, ननद, भाभी, देवरानी, जेठानी, चाची, ताई, मामी, बुआ,मौसी, दादी, नानी, बॉस, सहकर्मी....अनंत सूची है। इन मीठे, मोहक रिश्तों को अपने आंचल में बांधे मैं तलाशती हूं खुद को। मैं मिलती हूं खुद से। रिश्तों के इतने सुरीले-सुरम्य आंगन में खड़ी मैं बनाती हूं एक रिश्ता अपने आप से।
जी हां, मेरा एक रिश्ता और है और वह है मेरा मुझसे। खुद का खुद से। स्वयं का स्वयं से। अपना सबकुछ देने के बाद भी मैं बचा कर रखती हूं खुद को खुद के लिए। मैं नहीं भूलती उस खूबसूरत रिश्ते को जो मेरा मुझसे है।
यह रिश्ता मुझसे मेरा परिचय करवाता है। यही रिश्ता कहता है मुझसे, मुझमें ही झांकने के लिए। कितने मधुर सपने हैं मेरे भीतर जो साकार होने के लिए कसमसा रहे हैं। यह रिश्ता मुझे चुनौती देता है, ऐसा क्या है जो मैं नहीं कर सकती? फिर यही कहता है मुझसे-सब कुछ तो कर सकती हो तुम।