Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

सुरक्षा की नहीं सही सोच की जरूरत है...

सवाल वेबदुनिया के जवाब आपके...

हमें फॉलो करें सुरक्षा की नहीं सही सोच की जरूरत है...
महिला दिवस को मनाए जाने के पूर्व वेबदुनिया टीम ने हर आम और खास महिला से भारत में नारी सुरक्षा को लेकर कुछ सवाल किए। हमें मेल द्वारा इन सवालों के सैकड़ों की संख्या में जवाब मिल रहे हैं। हमारी कोशिश है कि अधिकांश विचारों को स्थान मिल सके। प्रस्तुत हैं वेबदुनिया के सवाल और उन पर मिली मिश्रित प्रतिक्रियाएं....

FILE


प्रस्तुलंदन से प्रखलेखिका व सी‍नियफिजियोथेरेपिस्प्रज्ञा मिश्रा कविचा

यह दिवस मनाने का रिवाज़ ही गलत है। आखिर महिला दिवस क्यों मनाया जाता है? पूरी दुनिया में अगर आदमी और औरत के अनुपात को नाप जाए तो लगभग बराबरी का ही मामला है। थोड़ा कहीं कम और थोड़ा कहीं ज्यादा। लेकिन जब अगर बात बराबरी की है, दुनिया इन्हीं दो हिस्सों में बंटी हुई है तो फिर किस बात का महिला दिवस? इस धरती पर उतनी ही महिलाएं हैं जितने के आदमी फिर उनका दिवस क्यों नहीं मनाते??

यह दिन आता नहीं कि लोग महिला या स्त्री की बराबरी की बातें करने लग पड़ते हैं। लेकिन यह आया कहां से कि वो पुरुष से कमतर है ??? और आया तो आया इसे इस कदर कट्टरता से माना क्यों गया?? और आज भी क्यों माना जाता है ??? पुरुष में ऐसे कौन से गुण हैं जो महिलाओं में नहीं .....शारीरिक अंतर को अलग कर दें तो कोई ऐसी बात नहीं है जो किसी को श्रेष्ठ या कमतर करती हो .....

लेकिन जो सबसे बड़ी मुश्किल है वो है खुद महिलाओं को ही इसका एहसास नहीं है। वह भी यही मांग करती रहती है कि हमें बराबर समझो बजाय इसके अगर वह यह सिर्फ मानना ही शुरू कर दें कि हम बराबर हैं तो कई मुश्किलें ख़तम हो जाएं। वह मानती हैं कि हम कमजोर हैं, हमें सहारे की जरूरत है, जब तक खुद में यकीन नहीं हो कोई क्यों भला तुमसे उम्मीद लगाने लगा?


भारतीय नारी इस मामले में खुद को दुखियारी मानती है कि समाज उसे बराबरी का दर्ज नहीं देता। लेकिन ऐसा तो दुनिया के हर कोने में हैं वहां भी जहां महिलाएं ही घर चलाती हैं। अगर इंसानी इतिहास को देखें तो जब आदमी पाषण युग में था तब आदमी शिकार करता था और महिला बच्चे संभालती थी लेकिन उसके बाद से पहिया आ गया और तकनीक आ गई लेकिन आदमी और महिला ने अपने आप को बहुत कम बदला। जिस तेज़ी से उसके आस-पास का माहौल बदला उसी तेज़ी से उनके परिवार और समाज में किरदार नहीं बदले।

जब सवाल किए जाते हैं कि क्या स्त्री आज भी महज देह ही मानी जाती है तो यह मानने वालों में क्या सिर्फ आदमी ही शामिल हैं ?? क्या खुद महिलाएं अपने आप को कोई और दर्ज देने के लिए तैयार हैं ?? महिलाओं के प्रति सम्मान की बात है तो सम्मान आखिर किस से ?? क्योंकि अगर आधी आबादी महिलाओं की ही है तो क्या 50 % सम्मान यूं ही नहीं मिल गया ...अगर हर महिला दूसरी महिलाओं का सम्मान करे।

महिला की सुरक्षा यह बात 16 दिसंबर के बाद से हर जगह मौजूद है और तो और अब महिला बैंक भी बनाने की बात है लेकिन यह महिला सुरक्षा का ढोंग क्यों ?? उन आदमियों की सोच और करतूतों में बदलाव की जरूरत है जो अपने से बराबर इंसान को इस तरह चोट पंहुचा सकते हैं ...

महिलाओं को सुरक्षा की नहीं उस सोच की जरूरत है जो हर बात में उतनी ही बराबरी दे जितनी की प्रकृति से उन्हीं मिली है..हां, यह जरूर शर्मनाक है कि महिला के हर हक के लिए उसे लडाई लड़नी पड़ी है फिर वह चाहे घर के स्तर पर हो या समाज के लिए ...चाहे वोट देने की बात हो या चुनाव लड़ने की ...यह शर्मनाक है कि आधे हिस्से के हकदार को दूसरे आधे हिस्से वाले से कुछ मांगना ही क्यों पड़ता है...जिस तरह इंसान गुफाओं से निकल कर गांव-शहरों में आ बसा और उसका विकास हुआ उसी तरह अब उस आधे भाग के विकसित होने की बारी है जिसे स्त्री या महिला कहा जाता है ......और उस दिन के लिए किसी सुबह का नहीं इंसान को अपने अन्दर के दिए के जलने का इंतज़ार है

प्रस्तुत अभिव्यक्ति संपादित स्वरूप में है।

हमारे साथ WhatsApp पर जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें
Share this Story:

वेबदुनिया पर पढ़ें

समाचार बॉलीवुड ज्योतिष लाइफ स्‍टाइल धर्म-संसार महाभारत के किस्से रामायण की कहानियां रोचक और रोमांचक

Follow Webdunia Hindi