Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

अनाहत का आनंद

ॐ से मिटे मन के रोग

हमें फॉलो करें अनाहत का आनंद

अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

ॐ को अनाह्त नाद कहते हैं जो प्रत्येक व्यक्ति के भीतर और इस ब्रह्मांड में सतत गूँजता रहता है। इसके गूँजते रहने का कोई कारण नहीं। सामान्यत: नियम है कि ध्‍वनी उत्पन्न होती है किसी की टकराहट से, लेकिन अनाहत को उत्पन्न नहीं किया जा सकता।

ND
ओ, उ और म। उक्त तीन अक्षरों वाले शब्द की महिमा अव्यक्त है। यह नाभि, हृदय और आज्ञा चक्र को जगाता है। इसे प्रणव साधना भी कहा जाता है। इसके अनेकों चमत्कार है। प्रत्येक मंत्र के पूर्व इसका उच्चारण किया जाता है। योग साधना में इसका अधिक महत्व है। इसके निरंतर उच्चारण करते रहने से अनाहत को जगाया जा सकता है।

विधि : प्राणायाम या कोई विशेष आसन करते वक्त इसका उच्चारण किया जाता है। केवल प्रणव साधना के लिए ॐ का उच्चारण पद्मासन, सुखासन, वज्रासन में बैठकर कर सकते हैं। इसका उच्चारण 5, 7, 10, 21 बार अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं। ॐ जोर से बोल सकते हैं, धीरे-धीरे बोल सकते हैं। बोलने की जरूरत जब समाप्त हो जाए तो इसे अपने अंतरमन में सुनने का अभ्यास बढ़ाएँ।

सावधानी : उच्चारण करते वक्त लय का विशेष ध्‍यान रखें। इसका उच्चारण सुप्रभात या संध्याकाल में ही करें। उच्चारण करने के लिए कोई एक स्थान नियुक्त हो। हर कहीं इसका उच्चारण न करें। उच्चारण करते वक्त पवित्रता और सफाई का विशेष ध्यान रखें।

लाभ : संसार की समस्त ध्वनियों से अधिक शक्तिशाली, मोहक, दिव्य और सर्वश्रेष्ठ आनंद से युक्त नाद ब्रम्ह के स्वर से सभी प्रकार के रोग और शोक मिट जाते हैं। इससे मानसिक बीमारियाँ दूर होती हैं। इससे हमारे शरीर की उर्जा बेलेंस में आ जाती है। इसके बेलेंस में आने पर चित्त शांत हो जाता है।

व्यर्थ के मानसिक द्वंद्व, तनाव और नकारात्मक विचार मिटकर मन की शक्ति बड़ती है। मन की शक्ति बड़ने से संकल्प और आत्मविश्वास बड़ता है। सम्मोहन साधकों के लिए इसका निरंतर जाप करना उत्तम है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi