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कार्य में कुशलता का योग

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अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

, मंगलवार, 15 मार्च 2011 (14:28 IST)
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तस्माद्योगाय युज्यस्व योग: कर्मसु कौशलम्'-गी. 2-50 अर्थात कर्मो में कुशलता को ही योग कहते हैं। सुकर्म, अकर्म और विकर्म- तीन तरह के कर्मों की योग और गीता में विवेचना की गई है। कर्म में कुशलता की तीन स्टेप हैं:- कर्म को समझो, अच्‍छे कर्म या कार्य का अभ्यास करो, उक्त दोनों से कर्म में कुशलता आएगी जो सफलता दिलाएगी। यदि आपके पास सब कुछ है, लेकिन जीवन में सुकून नहीं है तो आप असफल व्यक्ति हो।

कुछ भी नहीं कर रहे हैं तब भी आप जाने-अनजाने ऐसा कर्म कर रहे हैं जिससे शरीर, मन और आसपास का वातावरण रोग ग्रस्त हो रहा है। कर्म को जानने का अर्थ है कि आप जो भी कर रहे हैं उसकी समीक्षा करते रहने से यह समझ में आएगा कि इससे कितना लाभ और कितना नुकसान। अब आप खराब आदतें और बुरे कर्म-कार्य की जगह अच्छी आदतें और अच्‍छे कर्म-कार्य का अभ्यास करें। निरंतर अभ्यास करने से कर्म में कुशलता आती है।

कर्म में कुशलता : कर्मवान अपने कर्म को कुशलता से करता है। कर्म में कुशलता आती है कार्य की योजना से। योजना बनाना ही योग है। योजना बनाते समय कामनाओं का संकल्प त्यागकर विचार करें। तब कर्म को सही दिशा मिलेगी। कामनाओं का संकल्प त्याग का अर्थ है ऐसी इच्छाएँ न रखे जो केवल स्वयं के सुख, सुविधाओं और हितों के लिए हैं। अत: स्वयं को निमित्त जानकर कर्म करो जिससे कर्म का बंधन और गुमान नहीं रहता। निमित्त का अर्थ उस एक परमात्मा द्वारा कराया गया कर्म जानो।

कर्म का महत्व : कर्म बंधन से मुक्ति की साधन योग बताता है। कर्मों से मुक्ति नहीं, कर्मों के जो बंधन है उससे मुक्ति ही योग है। कर्म बंधन अर्थात हम जो भी कर्म करते हैं उससे जो शरीर और मन पर प्रभाव पड़ता है उस प्रभाव के बंधन से मुक्त होना आवश्यक है। जहाँ तक अच्छा प्रभाव पड़ता है वहाँ तक सही है किंतु योगी सभी तरह के प्रभाव बंधन से मुक्ति चाहता है। इस मुक्ति से बुद्धि और शरीर अविचलित रहता है। भय और चिंता से व्यक्ति न तो भयभित होता है और न ही उस पर वातावरण का कोई असर होता है।

क्या होता है कर्म से : आसक्तिभाव (मोह) और अनासक्ति (निर्मोह) भाव से किए कर्म का परिणाम अलग-अलग होता है। कर्म से चित्त पर 'बंध' बनता है- इसे कर्मबंध कहते हैं। यही बंध मृत्यु काल में बीज रूप बनकर अगले जन्म में फिर जड़ें पकड़ लेता है। जीवन एक चक्र है तो इस चक्र को समझना जरूरी है। आपकी सोच और आपके कर्म से निकलता है आपका भविष्य। इस कर्म चक्र को जो समझता है वही कर्म में कुशल होने की भी सोचता है। कर्म में कुशल होने से ही जीवन में सफलता मिलती है।

बुरे कर्म का चक्र : यदि आप धर्म और समाज द्वारा निषिद्ध कर्मों को करते आए हैं तो निश्चित ही उसको करते रहने के अभ्यास से उसकी आदत आपसे छूट पाना मुश्किल होगी। चित्त पर किसी कर्म के चिपक जाने से उसका छूटना मुश्किल होता है। यदि किसी व्यक्ति के साथ बुरे से बुरा ही होता रहता है तो इस चक्र को समझो। निश्‍चित ही कतार में खड़ी प्रथम साइकल को हम गिरा देते हैं तो इसकी सम्भावना बन जाती है कि आखिरी साइकल भी गिर सकती है।

कैसे बने कर्म में कुशल : कुछ भी प्राप्त करने के लिए कर्म करना ही होगा और कुछ भी प्राप्त करने की इच्छा न रहे इसके लिए भी कर्म करना ही होगा। योग और गीता हमें यथार्थ में जीने का मार्ग दिखाते हैं। ज्यादातर लोग अतीत के पछतावे और भविष्‍य की कल्पना में जीते हैं। योग कहता है कि वर्तमान में जीने से सजगता का जन्म होता है। यह सजगता ही हमारी सोच को सही दिशा प्रदान करती है। इसी से हम सही कर्म के लिए प्रेरित होते हैं। कर्म में कुशल होने के लिए योग के यम के ‍सत्य और नियम के तप और स्वाध्याय का अध्ययन करना चाहिए। क्रिया योग से कर्म का बंधन कटता है।

संदर्भ : योग सूत्र और गीता

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