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जानें जीवन का रहस्य

स्वाध्‍याय, धारणा और ईश्वर प्राणिधान

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अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

आज आप जो भी हैं वह आपके पिछले विचारों का परिणाम है-भगवान बुद्

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वैज्ञानिक कहते हैं मानव मस्तिष्क में 24 घंटे में लगभग 60 हजार विचार आते हैं। उनमें से ज्यादातर नकारात्मक होते हैं। नकारात्मक विचारों का पलड़ा भारी है तो फिर भविष्य भी वैसा ही होगा और यदि ‍मिश्रित विचार हैं तो मिश्रित भविष्य होगा।

जो भी विचार निरंतर आ रहा है वह धारणा का रूप धर लेता है। ब्रह्मांड में इस रूप की तस्वीर पहुँच जाती है फिर जब वह पुन: आपके पास लौटती है तो उस तस्वीर अनुसार आपके आसपास वैसे घटनाक्रम निर्मित हो जाते हैं।

विचार ही वस्तु बन जाते हैं। इसका सीधा-सा मतलब यह है कि हम जैसा सोचते हैं वैसे ही भविष्य का निर्माण करते हैं। यही बात 'दि सीक्रेट' में भी कही गई है। इसी संदर्भ में जानें स्वाध्याय, धारणा और ईश्वर प्राणिधान के महत्व को।

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स्वाध्याय :
स्वाध्याय का अभ्यास आपको मनचाहा भविष्य देता है। स्वाध्याय का अर्थ है स्वयं का अध्ययन करना। अच्छे विचारों का अध्ययन करना और इस अध्ययन का अभ्यास करना।

आप स्वयं के ज्ञान, कर्म और व्यवहार की समीक्षा करते हुए पढ़ें, वह सब कुछ जिससे आपके जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता हो साथ ही आपको इससे खुशी ‍भी मिलती हो। तो बेहतर किताबों को अपना मित्र बनाएँ।

जीवन को नई दिशा देने की शुरुआत आप छोटे-छोटे संकल्प से कर सकते हैं। संकल्प लें कि आज से मैं बदल दूँगा वह सब कुछ जिसे बदलने के लिए मैं न जाने कब से सोच रहा हूँ। अच्छा सोचना और महसूस करना स्वाध्याय की पहली शर्त है।

धारणा :
जो विचार धीरे-धीरे जाने-अनजाने दृढ़ होने लगते हैं वह धारणा का रूप धर लेते हैं। यह भी कि श्वास-प्रश्वास के मंद व शांत होने पर, इंद्रियों के विषयों से हटने पर, मन अपने आप स्थिर होकर शरीर के अंतर्गत किसी स्थान विशेष में स्थिर हो जाता है तो ऊर्जा का बहाव भी एक ही दिशा में होता है। ऐसे चित्त की शक्ति बढ़ जाती है, फिर वह जो भी सोचता है वह घटित होने लगता है। जो लोग दृढ़ निश्चयी होते हैं, अनजाने में ही उनकी भी धारणा पुष्ट होने लगती है।

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ईश्वर प्राणिधान:
सिर्फ एक ही ईश्वर है जिसे ब्रह्म या परमेश्वर कहा गया है। इसके अलावा और कोई दूसरा ईश्वर नहीं है। ईश्वर निराकार है यही अद्वैत सत्य है। ईश्वर प्राणिधान का अर्थ है, ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण। ईश्वर के प्रति पूर्ण विश्वास। न देवी, न देवता, न पीर और न ही गुरु घंटाल।

एक ही ईश्वर के प्रति अडिग रहने वाले के मन में दृढ़ता आती है। यह दृढ़ता ही उसकी जीत का कारण है। चाहे सुख हो या घोर दुःख, उसके प्रति अपनी आस्था को डिगाएँ नहीं। इससे आपके भीतर पाँचों इंद्रियों में एकजुटता आएगी और लक्ष्य को भेदने की ताकत बढ़ेगी। वे लोग जो अपनी आस्था बदलते रहते हैं, भीतर से कमजोर होते जाते हैं।

विश्वास रखें सिर्फ 'ईश्वर' में, इससे बिखरी हुई सोच को एक नई दिशा मिलेगी। और जब आपकी सोच सिर्फ एक ही दिशा में बहने लगेगी तो वह धारणा का रूप धर उसकी तस्वीर ब्रह्मांड में ईश्वर के पास पहुँच जाएगी। ईश्वर उस तस्वीर को मूर्त रूप देकर आपके पास लौटा देगा। ब्रह्मांड में दूरस्थ स्थित ब्रह्म ही सत्य है।

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