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देह की सुंदरता

सहज सौंदर्य का उपाय

हमें फॉलो करें देह की सुंदरता

अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

IFM
सुंदर दिखने की चाह सबकहोती है। कहते हैं कि शरीर की सुंदरता से क्या होता है, मन सुंदर होना चाहिए जबकि यह तर्क पूर्णत: सही नहीं लगता। मन की सुंदरता की पहली सीढ़ी है देह की सुंदरता। आओ जानें की योग इसमें आपकी क्या सहायता कर सकता है।

ज्यादातर लोग चेहरे को ही सुंदर बनाने की जुगत में लगे रहते हैं और उनके उपाय सिर्फ ऊपर से लीपा-पोती के अलावा कुछ भी नहीं, जिससे स्थायी या सहज सौंदर्य की आशा करना व्यर्थ है। सिर्फ चेहरे की ओर मत देखो।

तब क्या करें :
प्राणायम : श्वास लेने और छोड़ने का झंझावात खड़ा कर दें। ऐसा जो आपके तन-मन को झकझोर दे। फिर चीखें, चिल्लाएँ, नाचें, गाएँ, रोएँ, कूदें, हँसें या फिर पूरी तरह से पागल हो जाएँ। सिर्फ 10 मिनट के लिए और तब 10 मिनट का ध्यान करें। यह रेचक प्रक्रिया है, जिससे जो कुछ भी दमित है वह बाहर हो जाता है। ‍इससे अनावश्यक चर्बी घटकर बॉडी फिट रहती है और भीतर जो भी दूषित वायु और विकार हैं, उसके बाहर निकलने से चेहरे और शरीर की कांति बढ़ती है।

मालिश : इससे माँस-पेशियाँ पुष्ट होती हैं। दृष्टि तेज होती है। सुख की नींद आती है। शरीर में शक्ति उत्पन्न हो शरीर का वर्ण सोने के समान हो जाता है। मालिश से रक्त संचार सुचारू रूप से चलता है। स्वच्छ खून जब धमनियों में दौड़ने लगता है तो वह शरीर को कांतिमय बना देता है। इससे तनाव, अवसाद भी दूर होता है। तब पूरे बदन का घर्षण, दंडन, थपकी, कंपन और संधि प्रसारण के तरीके से मालिश कराएँ।

शरीर से प्यार : क्या आपने कभी स्वयं के शरीर से प्यार किया है? यदि नहीं तो करें। उसे निहारें और सचमुच ही उसका सम्मान करें। उसे हर तरह के कष्टों से बचाने का प्रयास करें। खासकर मन के कष्टों से वह बहुत प्रभावित होता है। योग में कहा गया है कि क्लेश से दुख उत्पन्न होता है दुख से शरीर रुग्ण होता है। रुग्णता से स्वास्थ्य और सौंदर्य नष्ट होने लगता है।

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गर्दन, चेहरे और आँखों के लिए:-
गर्दन, चेहरे और आँखों का सुंदर दिखने में महत्वपूर्ण योगदान है। इसके लिए ब्रह्म मुद्रा करें, जिससे गर्दन में लचीलापन आएगा और गर्दन सुराही जैसी सुंदर दिखने लगेगी। अब गर्दन स्थिर रखते हुए आँखों को दाएँ-बाएँ, उपर-नीचे घुमाएँ, फिर गोलाकार दाएँ से बाएँ, फिर बाएँ से दाएँ घुमाएँ। इससे आँखें स्वस्थ्‍य और सुंदर बनी रहेगी।

अब हाथ के अँगूठे को कान के छिद्रों पर, मध्यमा को नासिका पुटों पर तथा शेष दो अँगुलियों को होठों पर जमाएँ। नाक के छिद्रों को ढीला रखते हुए गहरी श्वास लें। फिर सभी अँगुलियों को दबाते हुए मुँह हवा से फुलाएँ। अब ढोड़ी को कंठ से लगाते हुए हवा का दबाव पूरे चेहरे पर महसूस करें। अँगुलियों का दबाव बनाते हुए आसानी से ‍जितना रुक सकें रुकें। फिर धीरे से श्वास बाहर छोड़ दें। यह पूरी प्रक्रिया तीन से पाँच बार करें। इससे चेहरे की प्रफुल्लता व कांति बढ़ेगी।

आहार : पानी का अधिकाधिक सेवन करें, ताजा फलों के जूस, दही की छाछ, आम का पना, इमली का खट्टा-मीठा जलजीरा, बेल का शर्बत आदि तरल पदार्थों को अपने भोजन में शामिल करें। ककड़ी, तरबूज, खरबूजा, खीरा, संतरा, बेल तथा पुदीने का भरपूर सेवन कारते हुए मसालेदार या तैलीय भोज्य पदार्थ से बचें।

योगा पैकेज : नौकासन, हलासन, ब्रह्म मुद्रा, पश्चिमोत्तनासन, सूर्य नमस्कार। प्राणायम में शीतली, भ्रामरी और भस्त्रिका या यह नहीं करें तो नाड़ी शोधन नियमित करें। सूत्र और जल नेति का अभ्यास करें। मूल और उड्डीयन बंध का प्रयोग भी लाभदायक है। पाँच मिनट का ध्यान अवश्य करें।

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