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कब मिलेगी भारत के दुश्मनों को सजा?

वेबदुनिया डेस्क

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आखिरकार एक मई 2011 को पाकिस्तान में एक अमेरिकी सैन्य अभियान में पिछले एक दशक से भी अधिक वांछित आतंकवादी ओसामा बिन लादेन को मार दिया गया। ओसामा 11 सितंबर 2001 को अमेरिका में हुए अबतक के सबसे बड़े आतंकी हमले का मुख्य आरोपी था। विश्व इतिहास की सबसे बड़ी खोज अभियान के अंतर्गत अमेरीकी सरकार को लादेन को मार गिराने में 10 साल का समय लगा, लेकिन इस दौरान उसने अपने अभियान को ढीला नहीं पड़ने दिया।

अमेरिका की तरह ही भारत भी कई दशकों से आतंकवाद का शिकार रहा है। 2001 में हुए संसद पर आतंकी हमले से लेकर 26 नवंबर 2008 को आतंवादियों ने लगातार भारत को निशाना बनाया है। 26 नवंबर 2008 को पाकिस्तान से आए 10 आतंकवादियों ने मुंबई के कई इलाकों में एकसाथ हमला किया जिसमें 173 लोग मारे गए और 300 से ज्यादा घायल हो गए। भारतीय सुरक्षाबलों की जवाबी कार्रवाई में एक पाकिस्तानी नागरिक अजमल कसाब को गिरफ्तार कर लिया।

इस घटना के बाद भारत ने पाकिस्तान पर इस हमले को अंजाम देने का आरोप लगाया। 1 दिसंबर 2008 को भारत ने पाकिस्तान के हाईकमिश्नर शाहिद मलिक को समन जारी किया। हालांकि पाकिस्तान ने इस हमले में अपनी भूमिका को लेकर किसी आरोप को स्वीकार नहीं किया।

क्या कदम उठाए अमेरिका ने : 9/11 बाद अमेरिका की पहली प्रतिक्रिया में सबसे बड़ी कार्रवाई अलकायदा के गढ़ अफगानिस्तान पर हमले की रही। अलकायदा को तालिबान के अफगानिस्तान में सरंक्षण की पुष्टि के बाद अमेरिकी सेना ने ब्रिटिश सेना के साथ मिलकर 7 अक्टूबर 2001 को ऑपरेशन इंड्यूरिंग फ्रीडम से अफगानिस्तान युद्ध की शुरुआत की। इस कार्रवाई में अफगान यूनाइटेड फ्रंट (नार्दन एलायंस) ने भी अमेरिका को सहयोग दिया। इस युद्ध में अफगानिस्तान से तालिबान शासन का खात्मा हो गया।

हमले के बाद नाटो परिषद ने घोषणा की कि संयुक्त राज्य अमेरिका पर हुआ कोई भी हमला नाटो चार्टर के अनुच्छेद 5 के अनुरूप सभी नाटो देशों पर हमले के समान है। ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री जॉन हॉवर्ड जो हमले के समय अमेरिका के अधिकृत दौरे पर थे, ने ऑस्ट्रेलिया वापस पहुंच कर एनजस संधि का अनुच्छेद चतुर्थ लागू कर दिया। हमलों के तत्काल बाद ओसामा बिन लादेन तथा अल कायदा को सबक सिखाने और अन्य आतंकवादी नेटवर्क को पनपने से रोकने के स्पष्ट लक्ष्य के साथ बुश प्रशासन ने आतंक के विरुद्ध युद्ध घोषित कर दिया।

इन लक्ष्यों को आतंकवादियों को शरण देने और वैश्विक निगरानी और खुफिया साझेदारी में वृद्धि करने वाले देशों के खिलाफ आर्थिक और सैन्य प्रतिबंध जैसे माध्यमों से पूरा किया गया। अमेरिका के बाहर आतंकवाद के खिलाफ अमेरिकी का दूसरा सबसे बड़ा अभियान का मकसद अफगनिस्तान से तालिबान शासन को उखाड़ फेंकना था।

त्वरित एक्शन : हमले के तुरंत बाद, अमेरिका की फेडरल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन (एफबीआई) ने अमेरिका के इतिहास की सबसे बड़ी पूछताछ 'पेंटबॉम' शुरू की थी। गहन पड़ताल के बाद एफबीआई ने सीनेट को बताया कि हमलों से अल कायदा और बिन लादेन का संबंध होने के "स्पष्ट और अकाट्य" सबूत हैं। एफबीआई की यह रिपोर्ट अफगानिस्तान पर हमले का आधार बनी।

9/11 आयोग : अमेरिका द्वारा अफगानिस्तान पर हमले को दुनिया के कुछ देशों ने आलोचना भी की जिसके बाद अमेरिका ने 9/11 आयोग का गठन किया। 2002 के अंत में हमलों से संबंधित तैयारियों एवं तात्कालिक प्रतिक्रियाओं सहित सभी परिस्थितियों का संपूर्ण लेखा-जोखा तैयार करने के लिए न्यूजर्सी के भूतपूर्व गवर्नर थॉमस कीन की अध्यक्षता में नेशनल कमीशन ऑन टेररिस्ट अटैक्स अपॉन द यूनाइटेड स्टेट्स (9/11 कमीशन) का गठन किया गया था।

22 जुलाई 2004 को आयोग ने रिपोर्ट जारी कर दी थी। हालांकि आयोग और उसकी रिपोर्ट वैश्विक मीडिया में आलोचना के विषय रहे लेकिन अमेरिका ने 11 सितंबर 2001 के बाद अपनी सुरक्षा के लिए आतंकवाद को समूल मिटाना अपनी प्राथमिकता बना लिया।

26/11 के बाद क्या कदम उठाए भारत ने : हमले के बाद भारत सरकार ने जरूरी कदम उठाते हुए नेशनल सिक्यूरिटी गार्ड के अंतर्गत नियमित एंटी टेरिरिस्ट स्क्वाड का गठन किया। केंद्र सरकार ने आतकंवादी घटनाओं की जांच के लिए नेशनल इंवेस्टिगेशन बिल 2008 पारित किया।

इस दौरान दिसंबर 2008 में भारत की संभावित सैन्य कार्रवाई को मद्देनजर रखते हुए पाकिस्तान ने एलओसी पर अपनी सेनाओं की हलचल बढ़ा दी। इस दौरान उसने अपने सैनिकों की छुट्‍टियां निरस्त करके उन्हें फौरन काम पर लौटने का आदेश दिया। दूसरी तरफ भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कार्रवाई का सिर्फ आश्वासन ही मिलता रहा। अजमल कसाब को जेल में डाल कर भारतीय कोर्ट में केस चला, सजा सुनाने के अलावा भारत ने 26/11 के विरोध में कोई ठोस कार्रवाई नहीं की।

इसी तरह मुंबई में 1992 बम विस्फोटों का जिम्मेदार दाऊद इब्राहिम जिसे इंटरपोल ने आतंकवादी मानकर मोस्ट वांटेड लिस्ट में रखा है अब तक भारत की गिरफ्त से बाहर है। सभी जानते हैं कि दाऊद को पाकिस्तान के कराची में पनाह मिली है।

कुल मिलाकर देखें तो आतंक के विरूद्ध कार्रवाई में जो सफलता अमेरिका को मिली है भारत उससे कोसों दूर है। भारत अबतक विश्वसमुदाय के सामने यही रोना रोता आया है कि पाकिस्तान भारत विरूद्ध आतंकी गतिविधियों को प्रश्रय देता है। ढेरों सबूत होने के बावजूद भारत को पता नहीं क्यों आतंवादियों के पाकिस्तान से तार जुड़े होने के लिए अमेरिकी प्रमाणपत्र की जरूरत पड़ती है?

कई रक्षा विशेषज्ञों और विपक्षी पार्टियों द्वारा आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए सरकार पर पाकिस्तान के खिलाफ अपने दम पर कड़ी कार्रवाई करने का दबाव भी बनाया गया। यहां तक की पाक अधिकृत कश्मीर में चल रहे आतंकी कैम्पों पर सर्जिकल स्ट्राइक का भी सुझाव रखा गया पर केंद्र सरकार इस मामले को बातचीत के जरिए ही निपटाने में लगी रही।

26/11 हमले के एकमात्र गिरफ्तार आतंकी कसाब पर भी ट्रायल अभी तक चल रहे हैं। यहां तक की संसद हमले के दोषी अफजल गुरू जिसे फांसी की सजा हो चुकी है, को भी अभी तक सजा नहीं दी जा सकी है। कमजोर इच्छाशक्ति और वोटबैंक के चलते नेता इस मामले पर कोई पक्ष लेने से डरते हैं। यही कारण है कि आतंक के खिलाफ लड़ाई में भारत को अमेरिका जैसी सफलता नहीं मिल सकी।

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