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पैर स्नान : एक श्रेष्ठतम प्रयोग

प्राकृतिक चिकित्सा : अनमोल चिकित्सा

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डॉ. सुनिता जोशी
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प्राकृतिक चिकित्सा एक अनमोल चिकित्सा है जो रोग के मूल कारणों को दूर करती है। प्राकृतिक चिकित्सा में मौसम व रोगी प्रकृति के अनुसार ठंडे व गर्म प्रयोग को करके आशातीत लाभ प्राप्त कर सकते हैं। गर्म प्रयोगों में गर्म पानी का पैर स्नान है, उक्त प्रयोग कफ जनित रोगों में चमत्कारिक लाभ नहीं देता है, वरन श्रेष्ठ स्वास्थ्य प्रदान करता है। पैर स्नान वाष्प स्नान का श्रेष्ठ विकल्प है।

सामान्य अवस्था में शरीर से प्रतिदिन 650 मिली पसीना निकलता है, किंतु व्यायाम नहीं करने व कुछ रोम छिद्रों के बंद होने की वजह से शरीर से पूर्ण क्षमता से पसीना नहीं निकलता है व शरीर में निरंतर गंदगी इकट्ठा होती रहती है, इससे विजातीय द्रव्यों के शरीर में अत्यधिक जमाव होने से रोगी हो जाता है।

प्राकृतिक चिकित्सा मतानुसार मनुष्य शरीर रोगी तभी होता है जब उसमें विजातीय द्रव्यों का जमाव हो जाता है व परिणामस्वरूप मनुष्य अनेक रोगों का शिकार हो जाता है। गर्म पैर स्नान से शरीर के विजातीय द्रव्यों के निष्कासन में सहायता मिलती है और शरीर रोगमुक्त होने लगता है।

पैर स्नान के द्वारा शरीर में पसीना आता है जिससे शरीर के रोम छिद्र खुल जाते हैं व पसीने के माध्यम से विजातीय द्रव्य शरीर के बाहर होने लगते हैं। पैर स्नान के प्रयोग के द्वारा शरीर के निचले भाग आँतें, मूत्राशय व पेडु व अन्य कटि प्रदेश के अंगों में रक्त का तेज प्रवाह होता है व पेट के ऊपरी शारीरिक अंगों फेफड़े, हृदय व मस्तिष्क में रक्त का प्रवाह कम होता है, गर्म पानी का पैर स्नान करने से हृदय, मस्तिष्क व फेफड़ों में रक्त का प्रवाह कम होता है व शरीर आराम का अनुभव करता है।

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वर्तमान में चल रही चिकित्सा के साथ-साथ व आहार-विहार (विचारों) में संयम रखते हुए गर्म पानी का पैर स्नान करते हैं तो चमत्कारिक लाभ मिलता है। यदि रोगी की नाक बहती है और उसे गर्म पानी का पैर स्नान करा दिया जाए तो बहती नाक कुछ ही समय में बहना बंद हो जाती है। तीव्र सर्दी, माइग्रेन, अस्थमा, हृदय रोग व थकान की अवस्था में गर्म पानी का पैर स्नान जादू सा असर करता है। सामान्य अवस्था में इस प्रयोग को करने से शरीर स्फूर्ति का अनुभव करता है।

इस प्रयोग को अस्थमा रोग की तीव्र अवस्था में भी कराया जाए तो अस्थमा रोगी को तुरंत लाभ मिलता है। अस्थमा रोगी वर्तमान चल रही चिकित्सा को बंद न करें। माइग्रेन (आधाशीशी) दर्द की प्रारंभिक स्थिति में इस प्रयोग को किया जाए तो आशातीत लाभ मिलता है। शारीरिक रूप से थकने पर यदि पैर स्नान किया जाए तो थकान में बहुत राहत मिलती है।

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विधि : दो से ढाई फुट ऊँचाई वाले स्टूल पर बैठ जाएँ व पिंडली की ऊँचाई तक गुनगुने पानी की बाल्टी में पैर रखें। ध्यान रहे कि पानी अत्यधिक गर्म नहीं होना चाहिए, पानी इतना गर्म होना चाहिए कि पैर उसे आसानी से सहन कर सकें, अर्थात पानी का तापमान सामान्य से थोड़ा अधिक होना चाहिए। गर्दन के निचले भाग को कंबल से ठीक प्रकार से लपेट लें, शरीर को इस प्रकार से लपेटें कि गर्दन के निचले हिस्से के अंगों में हवा का प्रवेश न हो सके। सिर पर ठंडे पानी का नैपकीन अवश्य रखें।

गर्म पानी का पैर स्नान करते समय पास में तेज गर्म पानी रखें व पैर की सहने की क्षमतानुसार धीरे-धीरे पानी बढ़ाते रहें, ताकि शरीर का तापमान बढ़ता रहे व पसीना पर्याप्त मात्रा में आए। इस प्रकार 15 से 30 मिनट तक गर्म पानी में पैर रखें, यदि इसके पूर्व भी जी घबराने लगे व अच्छा न लगे तो तुरंत गर्म पानी पैर से हटा दें। कंबल व नैपकीन हटा दें व 3 मिनट ठंडे पानी में पैर को पिंडली के स्तर तक रखें। 3 मिनट बाद ठंडे पानी के नैपकीन से संपूर्ण शरीर को पोंछ लें। इस क्रिया को करने के बाद 45 मिनट तक हवा में न जाएँ।

सावधानी : अत्यधिक सर्दी की अवस्था में सिर पर गीला नैपकीन न रखें। उक्त प्रयोग को किसी चिकित्सा विशेषज्ञ के मार्गदर्शन में करना चाहिए। अत्यधिक रक्तचाप बढ़ा होने, बुखार की अवस्था में, खाली पेट ही इसे करें। भोजन करने के 3-4 घंटे बाद इस प्रयोग को कर सकते हैं। अत्यधिक सर्दी व ठंडक की अवस्था में सिर पर गीले पानी से भीगा नैपकीन न रखें।

लाभ :इस क्रिया को करने से रक्त संचार पैरों की ओर होने से हृदय व फेफड़ों व मस्तिष्क की ओर रक्त प्रवाह कम होता है और शरीर रोगों से मुक्त हो जाता है। पैर स्नान करने से पैरों का रक्त संचार पर्याप्त होता है व पैरों का दर्द व थकान भी दूर होती है।

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