Festival Posters

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

अपराधियों के हौसले बुलंद

Advertiesment
हमें फॉलो करें पुुलिस का खौफ खत्म
रतलाम , मंगलवार, 20 मार्च 2012 (01:14 IST)
रविवार रात पुलिस जवान पर बाजना बस स्टैंड क्षेत्र में अपराधियों द्वारा तलवार से हमला करने, वाहन को नुकसान पहुँचाने व वायरलेस सेट तोड़ने की घटना ने यह सिद्घ कर दिया है कि गुंडों का आत्मबल मजबूत और पुलिस का मनोबल कमजोर है। गत एक वर्ष में बदमाश लगातार पुलिस को चुनौती दे रहे हैं। उनमें पुलिस का खौफ दिखाई नहीं दे रहा है। इससे लगता है कि शहर में गुंडाराज चल रहा है।


यह पहला अवसर नहीं है, जब सार्वजनिक रूप से तलवार लहराकर गुंडों ने स्वयं की सत्ता सिद्ध कर खौफ कायम किया हो। पूर्व की तरह इस बार भी पुलिस को रविवार रात चुनौती मिली। बाजना बस स्टैंड में समाज के लिए नासूर बन चुके अपराधी सार्वजनिक रूप से तलवारें लहरा रहे हैं। पुलिस जवान मौके पर पहुँचे भी, लेकिन उन्हें आंतक का शिकार होकर लौटना पड़ा। इस दौरान उन्होंने स्वयं के वाहन को नुकसान पहुँचवाया और वायरलेस सेट टूटा, सो अलग। इतना कुछ हुआ, लेकिन हमेशा की तरह बड़े अधिकारी घरों में बैठकर रविवार का आनंद लेते रहे। ऐसा कई दिनों से हो रहा है। पिछले दिनों नामली में एक पुलिसकर्मी तलवार के हमले में गंभीर रूप से घायल हो गया था। इस बार जवान बाल-बाल बच गया अन्यथा उसकी जान ही चली जाती।


भोपाल में बैठकर प्रदेश के मुखिया भले ही अपराध और अपराधी को जड़ से नेस्तनाबूत करने के आदेश दें, लेकिन रतलाम में लगता है कि गुंडों के खौफ के चलते पुलिस अपना काम भूल चुकी है। डंडा चलाना, गुंडों का जुलूस निकालना और वर्दी का रुतबा दिखाना अब बीते दिनों की बात हो गई है। शहर के किसी भी चौराहे पर चले जाइए, अपराधी किस्म के युवक देर रात तक झुंड बनाकर खड़े रहते हैं और पुलिस इनसे कभी सामान्य पूछताछ भी नहीं करती। शहर में सार्वजनिक रूप से गोलियाँ चलती हैं, अपराधी अस्पताल में तलवारें लहराते हैं, तोड़फोड़ करते हैं, चौराहों पर अवैध वसूली होती है और किशोरियों से लेकर महिलाओं पर फब्तियाँ कसी जाती है। जिसकी जैसी इच्छा हो, वह कानून को वैसा नाच नचाता है। इतना होने के बाद भी पुलिस कहीं है, यह एहसास ही नहीं होता।


दरअसल पुलिस के जिन आला अधिकारियों को हाथ में डंडा लेकर सड़क पर उतरना चाहिए, वे समाज से कटे हुए हैं। शहर के हालात यह हैं कि बिना वर्दी के पुलिस अफसर किसी मोहल्ले में चले जाए तो उन्हें आमजन पहचानते ही नहीं। शहर में जो अराजकता चल रही है, उसे ठीक करने के लिए जिम्मेदारों को स्वयं मैदान संभालना होगा वरना अभी तो सिपाही पिटा है, क्या पता कल गुंडे अफसरों को ही निशाना बना डालें।


Share this Story:

Follow Webdunia Hindi