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अस्पताल से गायब हो रहे मरीज!

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मंदसौर , मंगलवार, 17 जनवरी 2012 (22:56 IST)
जिले के सबसे बड़े अस्पताल में अब तक चिकित्सकों व नर्सों की मनमर्जी सुखिर्यों में रही है परंतु अब यहाँ नया मामला देखने में आ रहा है। जिला अस्पताल के 12 विभिन्ना वार्डों में प्रतिमाह भर्ती होने वाले 4500-6000 मरीजों में से 10-15 मरीज हर माह गायब हो रहे हैं। अस्पताल प्रशासन इसके बावजूद चेतने को तैयार नहीं है। उसे शायद किसी बड़े हादसे का इंतजार है।


यह कोई चमत्कार नहीं अपितु मरीजों की मनमर्जी है। मरीज यहाँ बीमारियों से छुटकारा पाने आते हैं। भर्ती होते हैं और थोड़ा सा स्वस्थ होते ही बिन बताए रफू-चक्कर हो जाते हैं। स्थिति यह है कि इसकी जानकारी न तो चिकित्सकों को रहती है और न ही आसपास के मरीजों को। लिहाजा यह सिलसिला लगातार बढ़ता जा रहा है। इधर अस्पताल प्रबंधन मामले की जानकारी होने के बाद भी हाथ पर हाथ धरे बैठा है। उसका मानना है कि मरीज अपनी मर्जी से आ रहा है और मर्जी से जा रहा है। इसमें प्रबंधन कुछ नहीं कर सकता। ऐसे में जिला अस्पताल प्रबंधन की लापरवाही से मरीजों की मर्जी से कभी उसकी जिंदगी दांव पर लग जाए तो जिम्मेदारी किसकी होगी? संबंधित चिकित्सक की, ऑफिस स्टॉफ की, अस्पताल प्रबंधन की या फिर मरीज और उनके परिजनों की? यह भी स्पष्ट नहीं है।


गंभीर मामले ही

पहुंॅचते हैं थाने

जिला अस्पताल के जिम्मेदारों की मानें तो हर माह 10-15 मरीज जो बिन बताए या बिना लिखित आदेश के चले जाते हैं, उनके लिए चिकित्सक लीव विदॉउट/अगेंस्ट मेडिकल एडवाइज (लामा) तैयार करते हैं। इसके बाद चिकित्सक व अस्पताल प्रबंधन की मरीज के प्रति जिम्मेदारी समाप्त हो जाती है। वहीं पुलिस प्रक्रिया के दौरान अस्पताल में भर्ती मरीजों के भागने के मामले में संबंधित थाने पर सूचना दी जाती है। ऐसे मामले माह में 2-3 होते ही हैं। इन्हें 'एब्सकॉन्डेड' कहा जाता है।


'हमारी नहीं सुनते'

मरीज कविता चौहान ने बताया कि जिला अस्पताल की व्यवस्था से परेशानी भी होती है। डॉक्टर राउंड पर आते हैं लेकिन हमारी समस्या तक नहीं सुनते। मरीज ठीक हो जाए तो भी उसे रोका जाता है। ऐसे में वे बिना बताए चले जाते हैं।


एक अन्य रोगी बालाराम मेहर ने बताया कि अस्पताल में व्यवस्थाएंॅ तो ठीक है। लेकिन नर्से कुछ ज्यादा ही परेशान करती है। गरोठ में नसबंदी बिगड़ गई थी। ऐसे में यहांॅ दोबारा ऑपरेशन कराया है। ये बात सही है कि कुछ मरीजों पर दबाव बनाया गया था तो वे बिना बताए चले गए थे।


गार्ड की व्यवस्था भी अप्रभावी

जिला अस्पताल में वैसे तो मुख्य गेट पर सुरक्षा गार्ड की व्यवस्था की गई है परंतु ये गार्ड भी ऐसे मरीजों की रोकटोक नहीं कर पाते। प्रबंधन का कहना है कि गार्ड केवल मरीजों के परिजनों की आवाजाही की देखरेख के लिए हैं। बहरहाल गार्ड यह कार्रवाई भी ठीक से नहीं कर पा रहे। शाम 5 बजे बाद अस्पताल के किसी भी गेट पर न तो गार्ड तैनात रहते हैं और न ही कोई सुरक्षा व्यवस्था रहती है। ऐसे में प्रबंधन केवल कागजी कार्रवाई कर औपचारिकता पूरी कर रहा है। -निप्र




**हम लामा लिखते हैं

मरीजों के बिन बनाए अस्पताल से चले जाने के मामले माह में 10-15 होते हैं। ऐसे में हम लामा (लिव विदॉउट/ अगेंस्ट मेडिकल एडवाइज) लिखते हैं। इसके बाद मरीज के प्रति हमारी जवाबदारी समाप्त हो जाती है। वह अपनी मर्जी से जा रहा है तो हम कुछ नहीं कर सकते।


- डॉ. एसएस वर्मा

सिविल सर्जन, जिला अस्पताल



**मरीज शिकायत करते हैं

जिला अस्पताल का समय-समय पर दौरा किया जाता है। कई बार चिकित्सकों या नर्सों की मरीज शिकायत करते हैं। उनका निराकरण भी किया है। अब मरीजों के ही भागने का मामला है तो इसमें अस्पताल प्रबंधन अपने स्तर से कार्रवाई करता है।


- लक्ष्मी गामड़, रेडक्रॉस सचिव

एवं अनुविभागीय अधिकारी



** इन कारणों से भागते हैं मरीज



*अस्पताल में निःशुल्क उपचार।

*परिजनों द्वारा मरीज का अन्य अस्पताल में उपचार कराना।


*एमएलसी मरीज (पुलिस मामले) भागते हैं।

*अस्पताल का वातावरण सूट नहीं होना।

*चिकित्सकों या नर्सों द्वारा किसी बात को लेकर दबाव बनाना।


*नसबंदी ऑपरेशन का दबाव बनाना।

*मरीज के स्वस्थ होने पर स्वयं की मर्जी से भागना।

*अधिकांश मरीजों का स्थानीय होना।

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